खबर का असर:आईएफएस चतुर्वेदी को मिली बाघिन की मौत की जांच
- चर्चित एसडीओ कोमल सिंह को किया वन मुख्यालय से अटैच
- वन्य जीव विभाग के तमाम आला अधिकारियों में मचा हडकंप
देहरादून : देवभूमि मीडिया कि खबर का एक बार फिर असर हुआ है । मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक के लाख न चाहते हुए भी भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरैंस कि सरकार ने प्रदेश के हरिद्वार जिले में बाघों के लगातार हो रहे शिकार और मृत होकर मिल रहे बाघों की मौत पर वरिष्ठ आईएफएस संजीव चतुर्वेदी को पूरे प्रकरण कि जांच सौंप दी है।
चतुर्वेदी को जांच मिलने से वन्य जीव विभाग के तमाम आला अधिकारियों में हडकंप मचा हुआ है । हालाँकि उनकी इस जांच को चम्पावत डीएफओ की जांच की तरह तमाम अधिकारियों और सफेदपोश नेताओं के सरकार पर दबाव की तरह ही न दबा दिया जाय इसमें भी कोई शक नहीं लेकिन यदि संजीव चतुर्वेदी की जांच के बाद आये परिणामों पर सरकार ने कोई कार्रवाही की तो यह निश्चित है कोई बड़ा धमाका जरुर निकलकर बाहर आएगा जिसकी जद में वन्यजीव विभाग के वो तमाम आला अधिकारी आ जायेंगे जो अब तक उन्हीं बाघों की खाल के भीतर छिपे हुए थे जिनका शिकार कथित रूप में इनकी निगहबानी में हुआ।
इतना ही नहीं प्रमुख वन संरक्षक ने एसडीओ राजाजी टाइगर रिज़र्व कोमल सिंह को भी शिकायतों के आधार पर देहरादून मुख्यालय में मुख्य संरक्षक मानव संसाधान विकास एवं कार्मिक प्रबन्धन के कार्यालय से सम्बद्ध करने के आदेश मुख्य वन संरक्षक गांगटे द्वारा जारी कर दिए हैं।
गौरतलब हो कि 10 मई को हरिद्वार की श्यामपुर रेंज में बाघिन की लाश मिली थी जिसकी उम्र करीब ढाई साल की बताई गयी थी। कथित रूप से मृत पायी गयी बाघिन की लाश बुरी तरह लहुलुहान थी लेकिन उसके नाखून, दांत सब सही-सलामत थे। बाघिन कैसे मरी, हालाँकि वन विभाग का कहना है उसका शिकार नहीं हुआ है। विभाग के अधिकारियों ने आशंका जताई थी कि बाघों के आपसी झगड़े में उसकी मौत हुई। इनका कहना है अगर शिकार हुआ होता तो शिकारी नाखून-दांत अपने साथ ले जाते।
वहीँ इससे पहले 2016 मार्च में उत्तराखंड एसटीएफ ने वन्यजीवों की खाल और हड्डियां बरामद की हरिद्वार के श्यामपुर गांव में पकड़े गए रामचंद्र की निशानदेही पर उसके गांव उत्तर प्रदेश के बिजनौर गांव में 32 गड्ढों में से बाघों की हड्डियां प्राप्त की। रामचंद्र ने बताया कि लंबे समय से वह लोग टाइगर पोचिंग में लिप्त हैं। प्राप्त खालो की जब जांच की गई तो वह खालें टाइगर कार्बेट रिजर्व क्षेत्र की पाई गई। यह जांच वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा की गई थी। जब सारे गड्ढों में मिली हड्डियों की जांच की गई तो पता चला यह हड्डियां 20 से 25 बाघों की हो सकती है रामचंद्र ने स्वयं भी स्वीकारा कि वह अनेक बाघों की पोचिंग इस क्षेत्र में कर चुका है।
समाचार पत्रों में जब यह मामला उछला वन्यजीव प्रेमियों ने इस विषय में चिंता की तो विभाग ने बाघ बचाने के अभियान के प्रति गंभीरता दिखाने के बजाय इस पूरेमामले को ही दबाने का प्रयास किया और जिन वन्यजीव प्रेमियों ने सरकार से इस विषय में जानकारी मांगी तो उन्हें धमकाया जाने लगा। इसके पहले शिकार और मेरी वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव मेहता जो कि आई ऑफ दि टाइगर संस्था के प्रतिनिधि है और लंबे समय से बाघ बचाओ आंदोलन से जुड़े हैं उनके द्वारा निरंतर हर स्तर पर पत्र व्यवहार करने पर हेड ऑफ द फॉरेस्ट (प्रमुख वन संरक्षक) जयराज ने उन्हें सहयोग करते हुए इस मामले की तह तक जाने का प्रयास किया, किंतु मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक दिग्विजय सिंह खाती द्वारा राजीव मेहता को सहयोग करने के बजाए जान से मारने की धमकी ही नहीं दी गई बल्कि उनकी संस्था को वन क्षेत्र में जाने से प्रतिबंधित किया गया और स्वयं राजीव मेहता पार्क में घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया गया जो की पूर्णता है गैरकानूनी था।
बहरहाल राज्य सरकार ने तमाम दबावों के बाद सरकार ने इस प्रकरण की जांच आईएफएस संजीव चतुर्वेदी से करवाने की वन्यजीव प्रेमियों की मांग को स्वीकार कर दी है। मामले में जांच अधिकारी संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि उन्होंने हरिद्वार वन प्रभाग से बाघिन की मौत से जुड़े दस्तावेज मांगे हैं उनके अध्ययन के बाद वे घटनास्थल का मौक़ा मुआयना करेंगे।