चौरीचौरा की घटना से आजादी का आंदोलन परिवर्तनकारी सिद्ध हुआ
चौरीचौरा की घटना की तुलना बास्तील के किले पर फ्रांस की जनता के हमले और कब्जे से भी
कमल किशोर डुकलान
चौरीचौरा की घटना से जहां आम जनता में देशप्रेम की भावना का संचार हुआ,वहीं आजादी का आंदोलन परिवर्तनकारी साबित हुआ। इस घटना के बाद महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा। जिससे मोतीलाल नेहरू,चितरंजन दास,लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आदि तमाम आंदोलनकारियों में नाराजगी बढ़ गई। इसका परिणाम यह हुआ कि 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में चितरंजन दास ने स्वराज पार्टी की नींव रख दी।
दरअसल जब 1921 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई उन्हीं दिनों प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत में हर जगह हड़ताल से स्वागत हुआ। कहते हैं कि सरकार गांधी जी से समझौता करना चाहती थी,लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इस प्रकार आजादी के आंदोलन के इतिहास में यह पहला अवसर था जब सभी भारतीय अंग्रेज सरकार का विरोध कर रहे थे। जनता का आंदोलन बन गया था। गांधीजी ने वायसराय को चेतावनी दी कि यदि उन्होंने सात दिनों के अंदर अपनी दमनकारी नीति में परिवर्तन नहीं किया तो ‘कर न दो’ आंदोलन शुरू किया जाएगा।
फरवरी 1922 को चौरीचौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही इकट्ठा हुए। थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे तो तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध घोषित कर दिया। एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया। गांधी टोपी को रौंदता देख एक सत्याग्रही ने विरोध किया तो पुलिस ने फायरिंग कर दी। इसमें तीन सत्याग्रही मौके पर शहीद हो गए, जबकि 50 से ज्यादा घायल हो गए। इसके बाद सत्याग्रहियों ने थाने को घेरकर आग लगा दी, जिसमें 21 सिपाही और एक थानेदार जिंदा जल गए। घटना से नाराज गांधी जी ने आंदोलन वापिस ले लिया। गांधी जी के इस कदम को बहुत से नेताओं ने गलत माना।असहयोग आंदोलन भले ही वापस हो गया,लेकिन लोगों में नई चेतना का संचार बरकरार रहा।भारतीयों में देशप्रेम की भावना हिलोरे लेने लगी।जनता में स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम पैदा होता गया और भारतीय विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने लगे।
सन् 1922 में असहयोग आंदोलन के अचानक स्थगित होने से आजादी के आंदोलन में अनिश्चितता और गतिहीनता आ गई। अधिकतर नेता गांधी जी के इस कार्य से क्षुब्ध थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के शिक्षक प्रो. मुकुंद शरण त्रिपाठी और कुछ सत्याग्रहियों का मत था कि आगामी चुनावों में भाग लेकर काउंसिलों में पहुंच कर अंदर से विरोध किया जाए। वहीं कुछ लोग कांग्रेस की नीति में कोई परिवर्तन नहीं चाहते थे। पहली विचारधारा के नेता चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू तथा वल्लभ भाई पटेल थे। जिन्होंने कांग्रेस की नीति को अस्वीकार किया। परिणामस्वरूप चितरंजनदास और मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर 1923 में स्वराज पार्टी के गठन की घोषणा की। हालांकि, मौलाना आजाद के प्रयासों से 1923 में दिल्ली में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में स्वराज पार्टी के कार्यक्रम को स्वीकार किया।
कई इतिहासकार चौरीचौरा की घटना की तुलना बास्तील के किले पर फ्रांस की जनता के हमले और कब्जे से भी करते हैं। 14 जुलाई 1789 को फ्रांस की विद्रोही जनता ने फ्रांसीसी राजसत्ता के गढ़ बास्तील के किले पर पर कब्जा कर लिया था। इसी घटना ने फ्रांसीसी क्रांति का आगाज किया था।