UTTARAKHAND

प्रधानमंत्री से सूबे की नौकरशाही से आजिज वन मंत्री ने कंडी रोड पर हस्तक्षेप करने का किया निवेदन

वनमंत्री ने मौक़ा देखते ही प्रधानमंत्री मोदी को दी जानकारी 

तमाम पुराने दस्तावेजों और अब तक के  प्रयासों की दी जानकारी 

सुप्रीम कोर्ट ने वन भूमि हस्तांतरण के शासनादेश निरस्त करने के आदेश

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : गढ़वाल-कुमाऊं मंडलों को राज्य के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल- लालढांग) पर सूबे की ब्केयूरोक्रेसी द्वारा बार -बार टांग अडाने की कोशिशों से परेशान वन  मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने अब प्रधानमन्त्री मोदी और केंद्र सरकार की चौखट पर दस्तक दी है। उन्होंने इस सम्बन्ध में एक प्रत्यावेदन भी दिया है।   

गौरतलब हो कि वन मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत सहित देश के तमाम  राज्यों के वन महकमें से जुड़े मंत्री और अधिकारी  सोमवार को दिल्ली में बाघ गणना के आंकड़े सार्वजनिक करने के कार्यक्रम में पहुंचे ही इसी दौरान सूबे के वन मंत्री ने मौक़ा देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन सौंपकर वर्षों से रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल- लालढांग सड़क की मांग को तमाम पुराने दस्तावेजों और अब तक किये गये प्रयासों के साथ प्रधानमन्त्री से सम्मुख रखा। इस दौरान डॉ.रावत ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी मुलाकात की।

वन मंत्री डॉ.रावत ने प्रधानमंत्री को सौंपे ज्ञापन में बताया कि कंडी रोड का निर्माण प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। इस मार्ग का उपयोग पिछले 50 वर्षाें से आवागमन के लिए होता आ रहा है। सरकार नियमों के तहत ही इस सड़क का निर्माण करना चाहती है। उन्होंने बताया कि कंडी रोड के निर्माण से गढ़वाल-कुमाऊं की दूरी 85 किमी कम हो जाएगी और यह सड़क उत्तराखंड की जीवनरेखा सिद्ध होगी।

डॉ.रावत ने ज्ञापन में कहा है कि प्रदेश के चहुंमुखी विकास और पर्यावरण, जीव-जंतु संरक्षण के लिए इस मार्ग का बनाया जाना आवश्यक है। प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया है कि वह इस मार्ग के निर्माण के लिए अपने स्तर से हस्तक्षेप करें। डॉ.रावत ने बताया कि उन्होंने सोमवार को ही दिल्ली में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी इस सड़क के संबंध में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का इस सड़क को लेकर रुख बेहद सकारात्मक है। उम्मीद है कि सड़क निर्माण का रास्ता जल्द ही खुल जाएगा।

 

  • तो क्या अब अब नए सिरे से करनी होगी मेहनत 

प्रमुख सचिव वन आनंद वर्धन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति अभी नहीं मिली है। इसका अध्ययन करने के बाद इस मार्ग के संबंध में कदम उठाए जाएंगे।

वहीं दूसरी तरफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित प्रकरण पर सुनवाई करते हुए लालढांग-चिलरखाल मार्ग के लिए वन भूमि हस्तांतरण से जुड़े दोनों शासनादेश निरस्त करने के आदेश दिए। वहीं कोर्ट ने प्रदेश सरकार को नए सिरे से प्रस्ताव तैयार कर इस मार्ग के लिए नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड से क्लीयरेंस लेने के निर्देश दिए हैं।

गौरतलब हो कि कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल-लालढांग) का निर्माण राज्य सरकार की प्राथमिकता में शुमार है। इस कड़ी में सरकार ने पूर्व में इस रोड के 11 किमी लंबे चिलरखाल-लालढांग हिस्से के निर्माण के लिए कवायद शुरू की। इसके लिए पिछले वर्ष दो शासनादेश जारी कर लोनिवि को करीब छह किमी मार्ग निर्माण के लिए वन भूमि हस्तांतरित की गई। साथ ही सड़क के डामरीकरण व तीन पुलों के निर्माण को धनराशि जारी की गई। इस वर्ष मई में एनटीसीए की गाइडलाइन का हवाला देते हुए शासन ने निर्माण कार्य रोक दिया था। राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे क्षेत्र में सड़क निर्माण को लेकर उठी अंगुलियों के बाद सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (सीईसी) ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने बीती 22 जून को सीईसी की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए लालढांग- चिलरखाल मार्ग के निर्माण पर रोक लगा दी थी। साथ ही सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा। उत्तराखंड शासन के जवाब दाखिल करने के बाद 19 जुलाई को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सीईसी को स्थलीय निरीक्षण कर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए।

23 जुलाई को सीईसी टीम ने निरीक्षण करने के बाद कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मार्ग के वन भूमि हस्तांतरण से संबंधित दोनों शासनादेश निरस्त करने के आदेश दे दिए।

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