UTTARAKHAND

पांच दिवसीय शिशु वाटिका कार्यशाला का हुआ विधिवत समापन

विद्या भारती उत्तराखंड के तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय शिशु वाटिका कार्यशाला हुआ  विधिवत समापन 
 सरस्वती शिशु मंदिर बी.एच.ई.एल सैक्टर-2 रानीपुर हरिद्वार में 16 दिसम्बर से 20 दिसंबर तक चल रही थी  शिशु वाटिका कार्यशाला 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

बदले परिवेश में शिशु शिक्षा चुनौती पूर्ण: भुवन जी संगठन मंत्री विद्या भारती

विद्या भारती उत्तराखंड प्रांत द्वारा सरस्वती शिशु मन्दिर सैक्टर-2 रानीपुर हरिद्वार में आयोजित पांच दिवसीय प्रातीय शिशु वाटिका कार्यशाला में अपना विचार व्यक्त करते हुए श्रीमान भुवन जी संगठन मंत्री विद्या भारती उत्तराखंड ने कहा कि बदले परिवेश में शिशुओं की शिक्षा चुनौती पूर्ण है।
वन्दना सत्र में प्रक्षिर्थियों को सम्बोधित करते हुए प्रांत संगठन मंत्री श्रीमान भुवन जी ने कहां कि जन्म से लेकर पांच वर्ष तक के आयु के बच्चे को शैशव अवस्था कहा जाता है। शिशु शिक्षा केवल मनोरंजन का विषय नहीं अपितु यह अनौपचारिक शिक्षा का विषय है। मनोविज्ञान के अनुसार 3 से 5 वर्ष की आयु में शिशु को ऐसी अनौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है जो संस्कारनिष्ठ हो ।
इस अवस्था में शिशुओं को अक्षर ज्ञान देना शिशु शिक्षा नहीं है अपितु शिशु विकास ही शिशु शिक्षा है। चित्रपुस्तकालय,कार्यशाला,चिड़ियाघर,क्रीडागन,बगी चा, विज्ञान प्रयोगशाला,रंगमंच,वस्तु संग्रहालय, घर,कलाशाला एवं तरणताल आदि 12 शैक्षिक व्यवस्थाओं के सहारे शिशु वाटिका के नौनिहालों का शारीरिक व मानसिक विकास होता है। अखिल भारतीय सदस्य शिशु वाटिका एवं क्षेत्रीय शिशु वाटिका प्रमुख के निर्देशन में अनेक सत्रों में चल रहे कार्यशाला को प्रभावी एवं रोचक बनाया जा रहा है।
कार्यशाला में श्रीमान सत्य प्रसाद बंगवाल (प्रदेश निरीक्षक) शिशु शिक्षा समिति उत्तराखंड, श्रीमान विनोद सिंह रावत (सह प्रदेश निरीक्षक) शिशु शिक्षा समिति उत्तराखंड,श्री मुरलीधर चंदोला शिशु वाटिका प्रमुख,श्री राम प्रकाश सिंह प्रधानाचार्य सरस्वती शिशु मंदिर बी.एच.ई.एल सैक्टर-2 हरिद्वार, श्रीमान अभिषेक वर्मा निर्देशक पृथ्वी कुल उत्तराखंड,श्री सिद्धार्थ नौटियाल प्रचार प्रमुख विद्या भारती उत्तराखंड आदि के संयोजन एवं कुशल मार्गदर्शन में वर्ग सम्पादित हो रहा है।

समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विद्या भारती पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय संगठन मंत्री माननीय डोमेश्वर शाहू ने कहां कि शिशु वाटिका (पूर्व प्राथमिक शिक्षा)भारत में सामान्यता प्राथमिक विद्यालयों में छह वर्ष की आयु पूर्ण होने पर बालक कक्षा प्रथम में प्रवेश लेकर अपने औपचारिक शिक्षा आरम्भ करता है।  तीन वर्ष से छह वर्ष का उसका समय प्रायः परिवार में ही व्यतीत होता है।  प्राचीन काल में भारत में जब परिवार संस्था सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त थी उस समय बालक परिवार के स्नेहपूर्ण वातावरण में रहकर योग्य संस्कार ग्रहण कर विकास करता था। माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती थी।  किन्तु आधुनिक काल में औद्योगिक विकास एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विशेष रूप से नगरों में, परिवारों पर भी हुआ और इसके परिणामस्वरूप दो वर्ष का होते ही बालक को स्कूल भेजने की आवश्यकता अनुभव होने लगी।  नगरों में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए “मोंटेसरी”, “किंडरगार्टन” या नर्सरी स्कूलों के नाम पर विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी।नगरों एवं महानगरों के गली-गली में ये विद्यालय खुल गए और संचालकों के लिए व्यवसाय के रूप में अच्छे धनार्जन करने के साधन तक बन गए।

मोंटेसरी या किंडरगार्टन के नाम पर चलने वाले इन विद्यालयों में कोमल शिशुओं पर शिक्षा की दृष्टि से घोर अत्याचार होने लगा।  भारी-भारी बस्तों के बोझ ने शिशुओं के बचपन को उनसे छीन लिया।  अंग्रेजी माध्यम के नाम पर पश्चिमीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से चलने के कारण विद्या भारती ने देश के लिए घातक इस परिस्थिति को देखकर विद्या भारती ने 1980 में पूर्व प्राथमिक शिक्षा की ओर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जिसके फलस्वरूप भारतीय संस्कृति एवं स्वदेशी परिवेश के अनुरूप शिशु शिक्षा पद्धति “शिशु वाटिका”का विकास किया।

शिशु का शारीरिक,मानसिक, भावात्मक,सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास की अनौपचारिक शिक्षा पद्धति “शिशु वाटिका” के नाम से प्रचलित हुई। अक्षर ज्ञान और अंक ज्ञान के लिए पुस्तकों और कापियों के बोझ से शिशु को मुक्ति प्रदान की गयी। 

खेल, गीत, कथा कथन, इन्द्रिय विकास, भाषा-कौशल, विज्ञान अनुभव,रचनात्मक-कार्य,मुक्त व्यवसाय, चित्रकला-हस्तकला, दैनन्दिन जीवन व्यवहार आदि के अनौपचारिक कार्यकलापों के माध्यम से “शिशु वाटिका” कक्षाएँ शिशुओं की आनंद भरी किलकारियों से गूंजती हैं और शिशु सहज भाव से शिक्षा और संस्कार प्राप्त कर विकास करते हैं.

क्षेत्रीय संगठन मंत्री ने प्रशिक्षार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विद्या भारती ने शिशुओं के साथ उनके माता-पिता एवं परिवारों को भी प्रशिक्षित एवं संस्कारित करने का कार्यक्रम “शिशु वाटिका” के अंतर्गत अपनाया जाए परिवार में शिशु के समुचित विकास में माता का विशेष रूप से दायित्व है। इस दायित्व बोध का जागरण एवं हिंदुत्व के संस्कारों से युक्त घाट का वातावरण निर्माण करने का प्रयास हम सभी प्रशिक्षार्थियों को अपने-अपने स्थानों में जाकर करना है।

पांच दिवसीय शिशु वाटिका कार्यशाला में वृत प्रस्तुत करते हुए शिशु शिक्षा समिति उत्तराखंड के सह प्रदेश निरीक्षक श्री विनोद सिंह रावत ने कहां कि प्रदेश की तेरह जिला इकाइयों में से आठ जिला इकाइयों के 31 प्रतिभागी सहभाग कर रहे हैं। प्रतिदिन छः सत्रों में चली कार्यशाला में प्रशिक्षार्थियों को अखिल भारतीय शिशु वाटिका के सदस्य श्री हुकुम चंद जी एवं क्षेत्रीय शिशु वाटिका प्रमुख श्रीमती सुधा बाना जी के कुशल मार्गदर्शन में शिशु वाटिका के उद्देश्य एवं सैधान्तिक विषयों का प्रतिपादन हुआ। यह वर्ग स्व अनुशासन एवं गुणात्मक था की दृष्टि से उत्साहवर्धन करने वाला रहा। प्रशिक्षार्थियों द्वारा शिशु वाटिका के उद्देश्य एवं समग्र विकास की दृष्टि से 12 आयामों के अन्तर्गत लगाई गई प्रदर्शनी तथा शिशु विकास को आनन्दमूलक मनाने के लिए प्रशिक्षार्थियों का समूहगान उत्साहवर्धन एवं प्रेरणादायक रहा।

कार्यक्रम में श्री भुवन जी प्रांत संगठन मंत्री विद्या भारती उत्तराखंड, अभिषेक वर्मा निर्देशक पृथ्वी कुल हरिद्वार,सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या मंदिर इंटर कालेज बी एच ई एल सैक्टर-2 रानीपुर हरिद्वार की प्रबंध समिति के सदस्य गण,द्वय विद्यालयों के आचार्य गण आदि उपस्थित थे।

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