सुप्रीम कोर्ट की फटकार: 9 साल से न्याय की आस में भटक रही विधवा को उत्तराखंड सरकार दे 1 करोड़ रुपये मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट की फटकार: 9 साल से न्याय की आस में भटक रही विधवा को उत्तराखंड सरकार दे 1 करोड़ रुपये मुआवजा
उत्तराखंड।
सुप्रीम कोर्ट ने एक डॉक्टर की विधवा को मुआवजा नहीं देने के लिए उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है। महिला नौ सालों से मुआवजे के लिए मुकदमा लड़ रही है। महिला के पति की साल 2016 में कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी। उस वक्त की तत्कालीन सरकार ने परिवार के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की थी, जो अब तक नहीं मिला है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि वह उत्तराखंड सरकार की इस बात से नाराज है कि डॉक्टर का परिवार नौ सालों से मुआवजे के लिए मुकदमा लड़ने के लिए मजबूर है इसलिए अब इन सालों के इंटरेस्ट के साथ उन्हें मुआवजा दिया जाए। कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपये देने का आदेश दिया है।
जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच राज्य सरकार की स्पेशल लीव पेटीशन पर सुनवाई कर रही थी, जो उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने साल 2018 में राज्य सरकार को पीड़ित परिवार को 1.99 करोड़े रुपये के मुआवजे का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने याचिका दाखिल किए जाने से फैसला सुनाए जाने तक 7.5 पर्सेंट सालाना ब्याज के साथ विधवा को 1.99 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया था। साथ ही राज्य के मेडिकेयर सर्विस पर्संस एंड इंस्टीटूयशन एक्ट, 2013 के प्रवधानों को लागू करने और परिवार को अतिरिक्त पेंशन लाभ देने के लिए भी कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के चीफ सेक्रेटरी की ओर से 50 लाख रुपये के मुआवजे का प्रस्ताव दिए जाने और मुख्यमंत्री की ओर से उसे अप्रूव किए जाने के बाद भी पीड़ित परिवार को राशि नहीं दी गई, जबकि उनसे कहा गया कि अप्रूवल नहीं मिला है। याचिकाकर्ता का कहना है कि अब तक सिर्फ एक लाख रुपये अनुग्रह राशि के तौर पर परिवार को दिए गए। कोर्ट ने कहा कि यह देखते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया जाता है कि वह नौ सालों के इंटरेस्ट के साथ परिवार को यह राशि देगी, जो कुल एक करोड़ रुपये बनती है।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि परिवार को 11 लाख रुपये पहले ही दिए जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि साल 2021 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर परिवार को छुट्टियों का पैसा, ग्रैचुटी, जीपीएफ, फैमिली पेंशन और जीआईएस दिया गया, जबकि उनके बेटे को हेल्थ डिपार्टमेंट में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर नियुक्ति भी दी गई। राज्य सरकार की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने 1 करोड़ रुपये में से 11 लाख हटाकर मुआवजा राशि 89 लाख रुपये कर दी है।
20 अप्रैल, 2016 को महिला के पति को जसपुर के कम्युनिटी हेल्थ केयर में ड्यूटी के दौरान कुछ हमलावरों ने गोली मार दी थी। पीड़ित परिवार का कहना है कि अगर 2016 में ही 50 लाख रुपये अनुग्रह राशि के तौर पर दे दिए गए होते तो नौ साल तक उन्हें मुकदमा लड़ने की जरूरत नहीं थी।