DEHRADUN : उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में पलायन और जंगली जानवरों के कारण खाली पड़े खेतों पर अब प्रोटीन से भरपूर ”किनोआ” की खेती शुरू की जा रही है। राजधानी से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटी विलायत के नाम से मशहूर ग्रामीण इलाके में हाइफीड द्वारा ग्रामीणों की मदद से इसकी खेती की स्वतंत्रता दिवस पर शुरुआत कर दी गयी है । ग्रामीणों में खासतौर पर महिलाओं में इसकी खेती को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। ग्रामीणों द्वारा कई सालों से खाली और बंजर खेतों को एक बार फिर जुताई ,निराई और गुड़ाई करके खेती योग्य बनाये जाने का कार्य किया जा रहा है।
जिला पौड़ी के यमकेश्वर विकास खंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम मल्ला बनास और किमसार के किसानों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हाईफीड के विशेषज्ञों और गुजरात से आये किनोवा के खेती के विशेषज्ञ मुकेश दवे के दिशा निर्देशन में किनोवा बीज के रोपण की तकनीक सीखने के बाद ग्रामीणों ने किनोवा के बीजों के रोपण की शुरुआत की। किनोवा की यह फसल अगले तीन महीनों में व्यवसायिक उत्पादन के लिए तैयार हो जायेगी।
हाईफीड के निदेशक उदित घिल्डियाल ने बताया कि गढ़वाल हिमालय के किसी गांव में यह पहला प्रयोग है। इसकी सफलता के बाद इसको उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी इलाकों में इसका उत्पादन शुरू किया जाएगा। उन्होंने बताया कि किनोवा बंजर भूमि में भी उगाई जा सकती है और यही कारण है कि किनोवा की फसल को बंजर खेती के नाम से भी जाना जाता है। इस फसल को पशु -पक्षी भी नहीं खाते हैं. इसमें कोई रोग भी नहीं लगता और इस खेती में किसान को कीटनाशक दवाओं का उपयोग भी नहीं करना पड़ता है। उनके अनुसार वर्तमान में किनोवा का अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव 50 हजार से एक लाख रुपए प्रति क्विंटल तक भाव है। ऐसे में यह फसल किसानों के लिए कम खर्च में अधिक मुनाफे वाली फसल साबित हो सकती है, किनोवा की फसल उष्ण कटिबंधीय जलवायु में पैदा होती है।
उदित घिल्डियाल के अनुसार अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया ,जापान, फ्रांस ,इटली,चीन व अन्य देशों में किनोवा को लोग भोजन के रूप में काम लेते हैं। वहां के लोग किनोवा की खिचङ़ी चाव से खाते हैं। किनोवा में आयरन, विटामिन सहित कई पोषक तत्व होने से इसका उपयोग दवा बनाने में भी किया जाता रहा है। किनोवा को बड़ी संख्या में अनाज , चारा, औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए भी उपयग किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में भी किनोवा की मांग काफी बढ़ी है। देश के युवाओं में इसकी पौष्टिकता के गुणों के कारण खासी लोकप्रियता देखी जा रही है।
कुछ ही समय पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी कई अवसरों पर उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में किनोवा की खेती को लेकर काफी उत्सुकता दिखाई थी,और ग्रामीणों को इसकी खेती की ओर प्रोत्साहित भी किया था। यही कारण है कि उत्तराखंड में सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली संस्थाओं से अब इस खेती की तरफ ग्रामीणों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हाईफीड ने ग्रामीणों से उत्पादन के बाद न्यूनतम मूल्य तय करते हुए इसकी खरीद का भी जिम्मा लिया है।
किमसार में उत्तराखंड के पूर्व प्रमुख वन संरक्षक श्रीकांत चंदोला ने बताया कि यदि पर्वतीय इलाकों में किनोवा की खेती से यहाँ के किसानों की आर्थिकी और आजीविका में सुधार आ सकता है। उन्होंने बताया कि प्रयोग के तौर पर यहाँ की जा रही खेती यदि सफल होती है तो यह उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के जंगली जानवरों और पक्षियों के कारण हो रहे नुकसान से किसानो को नया जीवन दे देगी।