एक सदी के बाद पहली बार बना हरिद्वार कुम्भ का यह संयोग
हरिद्वार कुंभ मेला ग्रह चाल के कारण 11 वर्ष में हो रहा
इस बार मार्च से अप्रैल के बीच 48 दिनों के बीच ही सिमट जायेगा कुंभ
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून: समुद्र मंथन के बाद कुंभ की यह परंपरा तब शुरू हुई, जब अमृत कलश के लिए देव-दानवों के बीच हुए संघर्ष के दौरान मृत्युलोक समेत अन्य लोकों में 12 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक गईं। इसके बाद से धरती पर हर तीन वर्ष के अंतराल में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। शास्त्रों के अनुसार इनमें से चार स्थान (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन) ही धरती पर हैं। शेष आठ स्थान अन्य लोकों में मौजूद बताए गए हैं। वैसे तो हर 12 साल के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजित होता है लेकिन हरिद्वार में आयोजित होने वाले वर्ष 2021 का यह कुम्भ कुछ ख़ास है इसी लिए यहां कुम्भ 12 नहीं, बल्कि 11 साल बाद आयोजित हो रहा है। वहीं एक और ख़ास बाटी यह भी है कि कोरोना संक्रमण के चलते वर्ष 2021 में होने जा रहा कुंभ इस बार मार्च से अप्रैल के बीच 48 दिनों के बीच ही सिमट जायेगा।
ज्योतिषियों के अनुसार काल गणना के अनुसार गुरु का कुंभ और सूर्य का मेष राशि में संक्रमण होने पर ही कुंभ का संयोग (अमृत योग) बनता है। इसलिए ग्रह चाल के कारण यह संयोग एक वर्ष पहले ही बन गया। इतना ही नहीं एक और खास बात यह है कि कुम्भ का यह संयोग एक सदी के अंतराल में पहली बार बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार बीते एक हजार वर्षों में हरिद्वार कुंभ ठीक इसी तरह वर्ष 1760, 1885 व 1938 के कुंभ 11 वर्ष में हुए थे जबकि आगामी साल के इस कुम्भ का संयोग 83 वर्ष बाद बन रहा है।
ज्योतिषाचायों के अनुसार गुरु 11 वर्ष, 11 माह और 27 दिनों में बारह राशियों की परिक्रमा पूरी करता है। उस हिसाब से बारह वर्ष पूरे होने में 50.5 दिन कम रह जाते हैं। धीरे-धीरे सातवें और आठवें कुंभ के बीच यह अंतर बढ़ते-बढ़ते लगभग एक वर्ष का हो जाता है। ऐसे में हर आठवां कुंभ 11 वर्ष बाद होता है। इससे पहले 20वीं सदी में हरिद्वार मे तीसरा कुंभ 1927 में हुआ था और अगला कुंभ 1939 में होना था। लेकिन, गुरु की चाल के कारण यह 11वें वर्ष (1938) में ही आ गया। इसी तरह 21वीं सदी में आठवां कुंभ 2022 के स्थान पर 2021 में पड़ रहा है। हर सदी में कम से कम एक बार ऐसा संयोग अवश्य बनता है। इस बार कोविड के कारण अधिकारिक मेला अवधि कम होगी।
गौरतलब हो कि वीएस तो कुंभ मेला स्नान मकर संक्रांति से लेकर रामनवमी तक होते रहे हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण को देखते हुए अउ एहतियात बरतते हुए संत समाज और सरकार दोनों ही कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहते हैं, इसके बाद बीते दिन संत समाज के साथ सहमति के बाद सरकार ने मार्च- अप्रैल में पड़ने वाले स्नान को ही अब मुख्य स्नान माना है ताकि कोई कोरोना के कारण हज़ारों लोगों की जान को जोखिम में न डाला जाए। इसके लिए मेला नोटिफिकेशन की तैयारी भी कुम्भ मेला आयोजन समिति ने तैयारी भी करली है, जिसे सरकार को भेजा जायेगा ।
ज्योतिषाचायों के अनुसार के अनुसार कुंभ की गणना एक विशेष विधि से होती है। इसमें गुरु का खास महत्व है। खगोलीय गणना के अनुसार गुरु एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। बारह राशियों के भ्रमण में उसे 12 वर्ष समय लगता है। इस तरह प्रत्येक बारह साल बाद कुंभ उसी स्थान पर वापस आ जाता है। इसी प्रकार कुंभ के लिए निर्धारित चार स्थानों में हर तीसरे वर्ष क्रमवार कुंभ होता है। इन चारों स्थानों में प्रयागराज कुंभ का विशेष महत्व माना गया है। यहां 144 वर्ष के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन होता है, क्योंकि देवताओं का 12वां वर्ष मृत्युलोक के 144 वर्ष बाद आता है।
हरिद्वार कुंभ-वर्ष 2021 में शाही स्नान की तिथियां :-
- 11 मार्च, महाशिवरात्रि पर्व पर पहला शाही स्नान
- 12 अप्रैल, सोमवती अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान
- 14 अप्रैल, बैशाखी पर्व पर तीसरा शाही स्नान
- 27 अप्रैल, चैत्र पूर्णिमा पर चौथा शाही स्नान
कुंभ में अन्य महत्वपूर्ण स्नान
- 14 जनवरी, मकर संक्रांति
- 11 फरवरी, मौनी अमावस्या
- 16 फरवरी, वसंत पंचमी
- 27 फरवरी, माघ पूर्णिमा
- 13 अप्रैल, नव संवत्सर
- 21 अप्रैल, रामनवमी