प्रधानमंत्री ने 15 मई तक प्रत्येक प्रदेश को लिखित सुझाव भिजवाने को कहा
लोगों को मनमानी तौर से चलने-फिरने की इजाजद कड़े निर्देशो के तहत नही दी जा सकेगी
सी एम पपनैं
भवाली (नैनीताल)। कोरोना विषाणु संक्रमण की भयावह बढ़ती महामारी की चुनोती के बीच धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए देशव्यापी पूर्णबंदी को खोलने की कवायद देश के मुख्यमंत्रियों, नीति निर्माताओं तथा विशेषज्ञों के वक्तव्यो द्वारा प्रकट होने लगी है। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रैंनसिग के जरिये किए गए संवाद मे उक्त संकेत उभर कर सामने आए हैं।
मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के साथ हुए संवाद में पूर्णबंदी खोलने पर अलग-अलग तर्क सुझाए हैं। जिन पर प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से कहा है, ‘आप जो सुझाव देते हैं, उसके आधार पर हम देश की आगे की दिशा तय कर पायेंगे।’ प्रधानमंत्री ने 15 मई तक प्रत्येक प्रदेश को लिखित सुझाव भिजवाने को कहा है। राज्यो मे स्थापित विपक्षी दलों की सरकारों द्वारा पूर्णबंदी को आगे बढाने का एक जैसा सुझाव सुझाने को राजनीति की दूरदर्शिता की ओर इशारा करती नजर आती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उक्त संवाद मे कहा है, राज्यो के साथ भेदभाव न हो, सब साथ मिलकर काम करेंगे।
मुख्य मंत्रियों द्वारा सुझाए गए मुख्य सुझाओ मे, प्रवासी श्रमिकों की रोजगार की चुनोती, ग्रीन जोनों मे आर्थिक गतिविधियों व पर्यटन शुरू करने की अनुमति, राज्यो के आर्थिक और राजकोषीय सशक्तिकरण की मदद से जनमानस की जिंदगी और जीवन को बचाने की मुहीम इत्यादि को प्रमुखता से आगे रखा गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों के साथ हुए इस वीडियो कांफ्रैंसिंग संवाद में कैबिनेट मंत्रियों मे राजनाथ सिंह, अमित शाह, निर्मला सीतारमण तथा डॉ हर्षबर्धन की मौजूदगी मुख्य रूप में देखी गई। कयास लगाया जा रहा है, सरकार अब फूक-फूक कर कदम आगे बढ़ा कर जारी पूर्णबंदी के बीच देश की अर्थव्यवस्था और आम जनजीवन को पटरी पर लाने के लिए पूरे जिले या शहर मे प्रतिबंध लगाने की जगह केवल संक्रमित इलाको को ही सील करने के विकल्प पर विचार करने हेतु कदम बढायेगी। लोगों को मनमानी तौर से चलने-फिरने की इजाजद कड़े निर्देशो के तहत नही दी जा सकेगी। जरूरी सुरक्षा उपायों पर अमल करते हुए, इससे बचने के प्रयासो पर पूर्णरूप से बल दिए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
तीन चरणों मे पूर्णबंदी करने के बाद देश की अर्थव्यवस्था पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, उसे अब और सहन कर पाना सरकारों के लिए संभव नही लग रहा है। कोरोना महासंकट प्रत्येक क्षेत्र मे चुनोती बन कर खड़ा है। सरकारों के सम्मुख चुनोती संक्रमितो के इलाज और महामारी को फैलने से रोकने की है। जिन क्षेत्रो मे खतरा ज्यादा है, उन्हे छोड़कर देश के बाकी हिस्सों मे अर्थव्यवस्था से जुडी गतिविधियो की अनुमति जारी करने के कयास लगाए जा रहे हैं।
कैट के मुताबिक 24 मार्च से 30 अप्रैल तक भारतीय खुदरा व्यापार में लगभग 5.50 लाख करोड़ रुपयो का व्यापार नही हुआ है। जिससे 20 फीसद व्यापारी कारोबार बंद करने की स्थिति में हैं। बड़े स्तर पर कारोबार बंद होने से बेरोजगारी बढ़ने का महासंकट उभर कर सामने आ रहा है।
कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमैन्ट के प्रबंध निदेशक निलेश साह के कथनानुसार, भारत में लागू पूर्णबंदी से भारतीय कम्पनियों को 47 दिन की पूर्णबंदी के बाद 17 मई को पूर्णबंदी खुलने पर करीब 190 अरब डॉलर के आसपास उत्पादन का नुकसान उठाना पड़ सकता है। बाजार में नकदी प्रवाह, कम बिक्री, मजदूरों की अनुपलब्धता मुख्य समस्याए बन कर उभरेंगी। दुबारा कामकाज आरम्भ करने के लिए काफी लागत उठानी पड़ेगी। भारत की जीडीपी सालाना करीब तीन हजार अरब डॉलर की है। पूर्णबंदी मे एक माह का उत्पादन नुकसान 250 अरब डॉलर होगा। ताजा आंकड़ो के मुताबिक सूचकांक की शीर्ष 10 मे से 8 कम्पनियों का बाजार पूंजीकरण पिछले सप्ताह करोड़ो रुपया घट गया है, जो अति चिंताजनक है।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बा राव के अनुसार चालू वित्त वर्ष में केंद्र और राज्यो का संयुक्त राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 13 से 14 फीसद के स्तर पर पहुच सकता है। लागू पूर्णबंदी मे सरकार द्वारा 26 मार्च को जारी वित्तीय घोषित प्रोत्साहन अपर्याप्त है। लोगों की आजीविका बरकरार रखने तथा अधिक से अधिक लोगों के परिवारों तक मदद पहुचाने की सरकार की कोशिश होनी चाहिए। सर्वविदित है, भारत सरकार द्वारा अभी तक किसी को भी प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान नही किया गया है, जो छोटे कारोबारियों को मदद कर सके। सोमवार को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने संज्ञान लेकर एक दो दिन में राहत पैकेज जारी करने की बात कही है।
नीति आयोग सदस्य डॉ वी के सारस्वत ने अपने बयान में कहा है, हमारे देश को आपूर्ति श्रंखला के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्योगों को कामकाज शुरू करने के लिए विशेष सहायता पैकेज और सस्ते कर्ज की व्यवस्था का होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा है, हमे दुनिया के अन्य देशों की जरूरतों को ध्यान में रख कर उत्पादन का दायरा बढ़ाने की जरुरत है। अर्थव्यवस्था का इंजन कहे जाने वाले छोटे और मझोले क्षेत्र को दोबारा चालू करना बहुत जरूरी है।
बढ़ती आर्थिक मंदी से तंग आकर तमाम औद्योगिक घरानों का दवाब भी सरकार पर बढ़ रहा है। सभी का सोचना है, कड़े नियमो का पालन करते हुए उद्योगों, व्यवसायिक गतिविधियों को शुरू कर देना चाहिए। ऐसे मे सरकार अगर बिना किसी ठोस फार्मूले को सुझाए तथा 4 मई को सभी राज्यो मे शराब की बिक्री को खोलने जैसा निर्णय लेकर, पूर्णबंदी की धज्जियां उड़ाने जैसी उतावली करती है, तो बिना ठोस फार्मूला धरातल पर लाए, लिया गया निर्णय, भविष्य के लिए कितना घातक होगा, समझा जा सकता है।
अवलोकन कर समझा जा सकता है, पूर्णबंदी संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र विकल्प है। लेकिन जनमानस के बीच सवाल उठ रहे हैं, पूर्णबंदी आखिर कब तक? कब तक जनमानस सुरक्षित दूरी का पालन घरों में कैद रह कर करता रहेगा? देखा जा रहा है, कोरोना विषाणु ने सर्वशक्तिमान इंसान को भी अपने आगे झुका दिया है। प्रकृति को चुनोती देने के विज्ञान के दंभ को इसने तोड़ा है। वैश्विक फलक पर यह एक रहस्यमय संक्रमण बना हुआ है। कौन कब संक्रमित हो जाए, कोई नहीं जानता है। चंगा व्यक्ति भी कोरोना विषाणु संक्रमित पाया जा रहा है।
धरातल पर तीसरी पूर्ण बंदी से लाभ कम और नुकसान ज्यादा आंका गया है। दरअसल गृह सचिव के दसख्वत वाली जारी अधिसूचना मे न कोई मकसद का जिक्र था, न ही इससे बाहर निकलने की कोई योजना थी। विशेषज्ञयो के अनुसार जब तक कोरोना विषाणु का टीका नही बनता, संक्रमितो की संख्या बढ़ती रहेगी। इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है, सिर्फ दवा विकसित कर लेना और उसका परीक्षण ही काफी नही, बल्कि उसका निर्माण, उसे प्राप्त करना और उसे बड़ी आबादी तक पहुचा कर आम जनमानस को सुलभ कराने के लिए स्वास्थ्य तंत्र का होना भी महत्वपूर्ण है।
शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक अड़तालीस दिनों की पूर्णबंदी के दौरान हमारे देश में 80 लोगों ने अकेलेपन से घबरा कर तथा संक्रमित पाए जाने के भय से खुदकशी कर ली थी। सोलह प्रवासी मजदूर पैदल यात्रा विश्राम के दौरान रेल की पटरियों पर मालगाड़ी से कट गए। 36 प्रवासी मजदूर लंबी यात्रा की थकान, गर्मी की मार, तबियत खराब होने, आर्थिक तंगी व कुछ भूख से बेहाल हो पैदल यात्रा के दौरान तड़फ कर मर गए थे। कुछ गर्भवती प्रवासी मजदूर महिलाओं ने पैदल यात्रा के दौरान सड़कों पर विकट समस्याओं को झेल, शिशुओं को जन्म दिया है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा मीडिया की खबरों पर संज्ञान लेकर औरंगाबाद (महाराष्ट्र) मे रेलपटरी पर सोलह प्रवासी मजदूरों की मालगाड़ी की चपेट में आने से हुई मौत पर पूर्णबंदी से प्रभावित गरीब लोगों खासकर प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन, आश्रय और अन्य बुनियादी सुविधाए प्रदान करने के साथ-साथ राज्य और जिला अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमो का व्योरा देने को कहा गया, जिसे इस कोरोना महासंकट की घड़ी में बेहाल प्रवासी मजदूरों के हित मे एक सार्थक कदम कहा जा सकता है।
कोरोना को फैलने से रोकने के मामले में कई मोर्चो पर सरकारों की तैयारियों पर अंगुलिया भी उठ रही हैं। संक्रमण फैलने की बड़ी वजह आवश्यक पीपीई कीटों का अभाव मुख्य तौर पर सामने आया है। कयास लगाया जा रहा है, इसी अभाव के तहत केंद्र सरकार के आदेश के मुताबिक हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीजों का इलाज घर पर ही हो सकता है तथा उन्हे अस्पताल नही आने का सुझाव दिया जा रहा है।
अभावो का अवलोकन कर ज्ञात होता है, सरकार के दावे और हकीकत आपस मे मेल नहीं खाते। कोरोना संक्रमण की जांच किट ही नहीं होगी तो जांच कैसे होगी? इसकी पुष्टि केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे के गृह नगर भागलपुर स्थित क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल मेडिकल कालेज अस्पताल जिसे खास तौर से कोरोना पीड़ितों की जांच हेतु रिजर्ब रखा गया है, जांच कीटों के अभाव का मामला सामने आया है। कोरोना संक्रमण की जांच किट के अभाव में कोरोना जांच ने ही इस अस्पताल मे दम तोड़ दिया है। निम्न क्वालिटी की पीपीई कीटों पर पहले ही देश के बड़े अस्पतालों मे बवाल मचा देखा गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन अपने वक्तव्य मे कह चुके हैं, कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। लेकिन कोरोना विषाणु जो तीब्र गति से फैलता है, इसे पूर्णबंदी से हराया नही जा सकेगा, समझा जा सकता है। जब तक इसका अन्य बीमारियों व संक्रमनो की तरह इलाज या इसका टीका ईजाद नही हो जाता।
कोरोना विषाणु संकट के बारे मे देश के कुछ जिम्मेवार डॉक्टरों व विशेषज्ञयो द्वारा अलग-अलग व्यक्तव्य दिए गए हैं। एम्स दिल्ली के निर्देशक डॉ रणदीप गुलेरिया के द्वारा व्यक्त किया गया है, जून- जुलाई में देश में कोरोना संक्रमण के मामले चरम पर होंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन द्वारा व्यक्त किया गया, कोरोना का ग्राफ आने वाले कुछ सप्ताह मे न सिर्फ समतल होगा, बल्कि ग्राफ झुकने भी लगेगा। नीति आयोग सीईओ अमिताभ कांत ने अपने वक्तव्य मे कहा है, दिल्ली, मुंबई, अमदाबाद सहित देश के 15 जिले संक्रमण के मामलो के अधिक दवाब वाले क्षेत्र हैं। कोविड-19 के मामलों में 64 फीसद मामले देश के इन 15 जिलों में सामने आए हैं। 15 मे से 5 जिलों मे 50 फीसद मामले हैं। अमिताभ कांत ने अपने सुझावो मे व्यक्त किया है, हाइपर लोकलाइजेशन की रणनीति को अपनाना चाहिए और पूरा ध्यान कंटेनमेंट जोन पर ही देना चाहिए।
पूर्णबंदी समाप्त होने पर, प्रवासी मजदूरों के घर लौट जाने से बड़ा संकट औद्योगिक गतिविधियों के फिर से शुरू करने से होगा। चुनोती होगी, काम करने वाले मजदूर कहा से आयेंगे। प्रवासी मजदूरों के मसले पर हमारी सरकारे सदैव लापरवाह और संवेदनहीन साबित हुई हैं। पैदल, साइकल पर, ट्रकों में छिपकर घर लौटने की जिद्दोजहद में कई प्रवासी मजदूरों की हादसों मे जान चली गई है। राजमार्गो पर पुलिस निकलने नही दे रही है। सरकारी दावो की पोल खुल रही है। ऐसे में गम्भीर होकर कोरोना संक्रमण के संकट मे मजदूरों के विकास की एक वैकल्पिक नीति के बारे में सोचा जाना निहायत जरूरी जान पड़ता है। प्रवासी मजदूर हमेशा से ही उपेक्षा के शिकार रहे हैं। कोरोना संक्रमण के संकट में प्रवासी मजदूरों की वापसी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक अवसर की तरह है। भारत के पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों को केंद्र व राज्य सरकारो द्वारा कृषि, बागवानी, लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति लाने पर विचार करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों को अर्थव्यवस्था और विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का यह सही वक्त है। स्थापित सरकारों को समझबूझ कर राजनीति से हट कर रिवर्स पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों के हित मे संवेदनशील होकर आगे आना चाहिए।