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भाजपा के 41 वें स्थापना दिवस पर विशेष : सेवा ही संगठन

सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास 

जब 41 वर्ष पहले भाजपा के स्थापना दिवस 6 अप्रैल 1980 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था अंधेरा छँटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा

भारतीय संस्कृति,राष्ट्रवाद,विकासोन्मुखी राजनीति का पर्याय बन चुकी है भाजपा  

कमल किशोर डुकलान 
भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जम्मू-कश्मीर में ‘विधान लेंगे या बलिदान देंगे’ का नारा सूत्र वाक्य में धारण कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से शुरू किया गया सफर आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में आज इस मुकाम पर पहुंचा है….
भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं ये भविष्यवाणी करने का साहस करता हूँ कि अंधेरा छँटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।’ यह शब्द है अटल बिहारी वाजपेयी के,जो उन्होंने ठीक 41 वर्ष पहले भाजपा के स्थापना दिवस 6 अप्रैल 1980 को कहे थे। अटल जी जिस पश्चिमी घाट और महासागर की बात कर रहे थे,वह था मुंबई का समुद्री तट जहाँ अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई थी और वाजपेयी ने भाजपा की ओर से पहला भाषण दिया था। भाषण के अंत में वाजपेयी ने कमल खिलने की भविष्य वाणी की थी, जो ठीक भाजपा के स्थापना काल खण्ड के 34 साल बाद 2014 में सही साबित हुई
आज देश ही नहीं अपितु विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनने की सफलता का सूत्र अगर भारतीय जनता पार्टी को कहीं से मिला है तो वह है उसकी नींव भारतीय जनसंघ का 28 वर्षों का संघर्ष। भारतीय जनसंघ वही राजनीतिक पार्टी है जिसका कलेवर भारतीय जनता पार्टी के रूप में तो बदला लेकिन आत्मा अक्षुण्ण रही। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही सबसे पहले जम्मू-कश्मीर में ‘विधान लेंगे या बलिदान देंगे’ का नारा दिया था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के इसी सूत्र वाक्य को धारण कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ स्वयंसेवकों द्वारा शुरू किया गया सफर आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में आज इस मुकाम पर पहुंचा है।
जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के रूप में 1984 में पहले लोकसभा चुनाव में महज दो सीटें मिल पाई थी उसी प्रकार भारतीय जनसंघ को 1952 में देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भी महज दो ही सीटें हांसिल हुई थी। जो कालांतर में उत्तरोत्तर बढ़ती गई। संघर्ष की बात की जाए तो यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी के नए नेताओं को उतना नहीं करना पड़ा जितना संघर्ष भारतीय जनसंघ के रूप में उनके पुराने नेताओं को करना पड़ा। भारतीय जनसंघ के निर्माण के साथ ही उसे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दमन का सामना करना पड़ा। नेहरू ने तो आरएसएस से लेकर उनके आनुसांगिक संगठनों को मिटाने का हरसंभव प्रयास किया। लेकिन नेहरू के सामने गोलवरकर से लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे कद्दावर नेता खड़े थे।
21 अक्टूबर 1951 को अस्तित्व में आया भारतीय जनसंघ को 1952 में ही आजाद भारत के पहले लोकसभा चुनाव का सामना करना पड़ा। 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने भारतीय जनसंघ के साथ यही घात किया था। यहां तक कि भारतीय जनसंघ की पर्ची लगी मतपेटी बदल ली गई थी। यह उस समय की बात है जब कहा जाता है कि नेहरू की लोकप्रियता चरम पर थी। इतना होने के बाद भी 94 सीटों पर चुनाव लड़कर भारतीय जनसंघ ने दो सीटें हांसिल की थी जिसमें बाद में उतरोत्तर वृद्धि होती चली गई।
2014 के बाद तो मानों भाजपा में बहुत कुछ बदल चुका था।अटल बिहारी वाजपेयी का सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का देश में कद लगातार बढ़ता गया और पार्टी को उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें 2014 में उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया। राजनाथ का निर्णय और मोदी का परिश्रम रंग लाया और अटलजी की 34 साल पहले की गई भविष्यवाणी 2014 में पूर्ण रूप से सफल हुई, क्योंकि भाजपा का कमल पूर्ण रूप से खिला यानी भाजपा को 282 सीटों के साथ केन्द्र में स्पष्ट बहुमत मिला। इसके बाद मोदी प्रधानमंत्री बने।
आज राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के नेतृत्व में देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा का विस्तार हो चुका है और भाजपा कई और राज्यों में सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। आज भाजपा अपने संस्थापक सदस्यों के अथक परिश्रम जहां विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का गौरव प्राप्त हुआ वहीं भारतीय संस्कृति,राष्ट्रवाद,विकासोन्मुखी राजनीति का पर्याय बन चुकी है।

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