CRIME

राजधानी में में हर रोज 25 से 30 लाख का खप रहा स्मैक

नशे के अंधकार में डूब रहा राजधानी का युवा 

देहरादून। यदि हम आपको बतायें कि राजधानी में में हर रोज 25 से 30 लाख का स्मैक खप रहा है, तो यह सुन आप चौंक जायेंगे, लेकिन यह वो स्याह हकीकत है जिसे खुद कुछ नशे के सौदागरों ने पुलिस की पकड़ में आने के बाद बयां किया है। इसके अलावा इस पर इसलिए भी भरोसा करना पड़ता है कि राजधानी के नशामुक्ति केंद्रों में नशे के आदी स्कूली बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन तस्करों और नशामुक्ति केंद्र में भर्ती एक छात्र ने जो खुलासे किए हैं, वे साफ करते हैं कि कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी में स्मैक का नशा गहरी जड़ें जमा चुका है।

आज हम आपको बताते हैँ कि राजधानी देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में हर रोज आठ से दस हजार स्मैक की पुडिय़ा बेची जा रही हैं। यह खुलासा राजधानी पुलिस की गिरफ्त में आए एक तस्कर ने किया है। इस तस्कर ने पुलिस को यह भी जानकारी दी है कि शहर में 150 से अधिक पोर्टर (स्मैक की छोटी-छोटी खेप बेचने वाले) काम कर रहे हैं, जो स्कूली छात्रों को निशाना बनाते हैं। इन पोर्टरों की मदद से ही स्मैक की ये पुडिय़ा छात्रों तक पहुंचाई जाती हैं।

फोन पर होती है स्कूल तक डिलीवरी
शहर के एक नशा मुक्ति केंद्र में इलाज करवा रहे एक स्कूली छात्र ने बताया कि नशे के सौदागरों का नेटवर्क बेहद मजबूत है। ये लोग स्कूली बच्चों को नशे का आदी बनाने के बाद उन्हें अपने मोबाइल नंबर देते हैं। इसके बाद एक फोन कॉल पर पोर्टर स्कूल के बाहर आकर स्मैक की पुडिय़ा पकड़ा जाता है और बदले में रकम ले जाता है। खास बात यह है कि पोर्टर अपने नंबर लगातार बदलते रहते हैं, हर बार कोई दूसरा ही पोर्टर डिलीवरी के लिए आता है। स्कूलों के बाहर ये पोर्टर अपने आप को सुरक्षित स्थानों पर खड़ा रखते हैं और जब पूरी तरह से यह जान लेते हैं कि यहां पुलिस का कोई खतरा नहीं है तो फिर डिलीवरी देते हैं। पहले ये काम युवक करते थे लेकिन कुछ महीनों से ये काम यवतियां भी कर रही हैं। अधिकांश युवतियां सम्पन्न परिवारों की हैं और

बरेली से चलता है नशे का पूरा धंधा
पुलिस की पूछताछ में एक तस्कर ने बताया कि नशे के धंधे का नेटवर्क रामपुर से लेकर बरेली तक फैला हुआ है। स्मैक, चरस और नशे की अन्य खेप मुहैया कराने वाले बड़े सौदागर बरेली में रहते हैं। यहां से पहले कुमायूं तक सप्लाई की जाती है, जहां से ज्यादातर पोर्टर स्मैक लेकर राजधानी पहुंचते हैं। इस तस्कर ने यह भी बताया कि नेटवर्क इस तरह तैयार किया गया है कि बड़े सौदागर तक छोटे पोर्टरों की कभी सीधी पहुंच नहीं हो पाती। स्मैक हमेशा नये तरीके से लाते हैं। कभी कार के टायरों में तो कभी बच्चों के डायपर के पैकेटों में। कई बार तो ये राख में भी पैकेट डाल कर लाते हैँ और उसे मिटटी की हांडी में लाल कपड़ा बांध कर गाड़ी में रखते हैं यदि किसी ने पूछा तो कह देते हैं कि मृतक की हड्डियां गंगा में बहाने जा रहे हैं।

हर रोज सामने आ रहे दस नये नशेड़ी
राजधानी में दस से 15 साल तक के स्कूली बच्चे भी स्मैक के नशे के लती हो रहे हैं। स्थिति यह है कि राजधानी के नशामुक्ति केंद्रों में हर रोज आठ से दस नये बच्चे भर्ती कराए जा रहे हैं। पिछले दिनों एक एनजीओं ने जब यहां सर्वे किया तो पाया कि यहां अधिकांश वे बच्चे नशे की चपेट में जिनकी उम्र 12 से 18 साल के बीच थी।

कोड वर्ड से मिलती है डिलीवरी
हर स्कूल या कालेज में नशे का अलग अलग कोड है। कहीं सेल्फी तो कही माडल के नाम से डिलीवरी दी जाती है। यहीं नहीं कहीं तो स्मेक को चोली भी कहा जाता है। कुछ यूनवर्सिटी स्टूडेण्ट के बीच यह बबली के नाम से भी प्रचलित है। इस तरह से हर स्कूल का अपना कोड है और उसी कोड से माल मिलता है। ये इसलिए कि पुलिस को पता न चले कि क्या बात हो रही है।

व्हटसऐप पर होती है बुकिंग और पेटीएम से पेमेंट
नशे के कारोबारियों ने बाकायदा व्हटसएप गु्रप भी बनाया हुआ हैँ। ये लोग इस ग्रुप में कोड वर्ड के माध्यम से यह बताते हैं कि कहां कितनी डिलीवरी देनी है और कहाँ से माल उठाना है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि कौन सही काम कर रहा है और कौन नही। पूरा कारोबार हाई टैक है। अब तो पेमेन्ट भी पेटीएम और अन्य ऐप के माध्यम से हो जाती है।

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