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मातृभूमि प्रेमियों के हृदय में विराजमान है भगवा ध्वज

कमल किशोर डुकलान

हिन्दू समाज में सजीव गुरूओं के साथ एक ऐसा गुरू भी है जो शाश्वत सत्य, बलिदान और सदा विजयी भाव के प्रतीक के रूप में प्रत्येक मातृभूमि प्रेमियों के हृदय में विराजमान है।

वो गुरु कोई देहधारी व्यक्ति नहीं बल्कि चिर सनातन विजयी संस्कृति का प्रतीक परम पवित्र भगवा ध्वज है।

हिंदू समाज में यह गुरु परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। संघ ने किसी भी व्यक्ति को अपना गुरु नहीं माना है। वासुदेव लाल मैथिल सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज ब्रह्मपुर रुड़की हरिद्वार में गुरु पूजन के अवसर पर बाल स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बेलडा खण्ड के बौद्धिक शिक्षण प्रमुख श्री कमल किशोर डुकलान ने कहां कि भारतीय इतिहास गुरू-शिष्य संबंधों की अनगिनत गाथाओं से भरी पड़ा है। प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास की जयंती (ब्यास पूर्णिमा) के दिन सभी शिष्य अपने-अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए गुरु पूजन करते हैं।

यह आवश्यक नहीं कि किसी देहधारी को ही गुरू माना जाए। मन में सच्ची लगन एवं श्रद्धा हो तो गुरू को कहीं भी पाया जा सकता है। महाभारत काल के श्रेष्ठ धनुर्धर एकलव्य का उदहारण हम सबके सामने है। जिन्होंने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी से बनी प्रतिमा में ही गुरू को ढूंढ लिया था और महान धनुर्धर बना।

संघ में कोई व्यक्ति विशेष गुरु नहीं होता। अनादिकाल से हमारे राजा महाराजाओं ने जिस त्याग और समर्पण के प्रतीक भगवा ध्वज की छत्रछाया में विजय प्राप्त की उसी परम पवित्र भगवा ध्वज को संघ ने अपना गुरु माना है।

बाल स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए खण्ड बौद्धिक शिक्षण प्रमुख ने कहा कि इन सजीव गुरूओं के साथ एक ऐसा गुरू भी है जो शाश्वत सत्य , बलिदान और सदा विजयी भाव के प्रतीक के रूप में प्रत्येक मातृभूमि प्रेमियों के हृदय में विराजमान है। वो गुरु कोई देहधारी व्यक्ति नहीं बल्कि परम पवित्र भगवा ध्वज है। संघ के स्वयंसेवकों के लिए प्रत्येक वर्ष गुरू पूजन उत्सव का आयोजन होता है। गुरु पूजन उत्सव को संघ के प्रारंभिक काल से करने की परंपरा रही है।

संघ के छः उत्सवों में गुरू पूजन उत्सव को खास माना गया है। संघ के बाल एवं तरुण स्वयंसेवकों में कोरोना जैसी महामारी, विपरीत परिस्थितियों में भी देशभक्ति एवं समर्पण की भावना को बनाए रखना ही गुरु पूजन उत्सव का मूल उद्देश्य भी है। संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी का भी मानना था कि व्यक्ति स्खलशील है उससे कभी भी बुराइयां जन्म ले सकती है इसलिए किसी व्यक्ति के विषय में यह विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि वह सदैव अपने मार्ग पर अटल रहेगा। इसीलिए संघ संस्थापक डाक्टर हेडगेवार जी व्यक्ति पूजा के स्थान पर विजय का प्रतीक परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर विराजित किया। संघ स्थापना वर्ष से लेकर वर्तमान समय तक संघ का स्वयंसेवक भगवा ध्वज को गुरु मानकर प्रतिवर्ष गुरु पूजन के अवसर पर अपना समर्पण अर्पित करता है।

इस अवसर पर बेलडा मण्डल के मण्डल कार्यवाह श्री अंकुश सैनी,विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री वीरपाल सिंह, विद्यालय का आचार्य परिवार उपस्थित था।

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