PERSONALITY

संघ संस्थापक : डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार

स्वतंत्रता संग्राम में तिलक से प्रभावित होकर कांग्रेस से जुड़े हेडगेवार ने बाद में की आरएसएस की स्थापना

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जिन्होंने अपने छोटे से कमरे में एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी- आज देश का ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। 
कमल किशोर डुकलान 
आज डॉ.हेडगेवार का जन्मदिन है बचपन में लोग कहते थे केशवजीवन का एकमात्र ध्येय था भारत का स्वातंत्र्य अंग्रेज सरकार ने भाषणबंदी का नियम किया लागू उनकी भूमिका को लेकर आलोचक उठाते रहे सवाल ……
“यह न भूलें कि केवल ताकत संगठन के जरिए ही आती है इसलिए हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम इसे मजबूत बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए”, बेशक ये पंक्तियां डॉ. हेडगेवार ने कभी हिंदुओं से कही होगी लेकिन मौजूदा दौर में उक्त पंक्तियां पूरी दुनिया का मार्गप्रशस्त करती दिखती है। वैश्विक महामारी कोरोना को हराने और उससे उबरने के लिए समूची दुनिया ने एक संगठन की तरह काम किया। जिसके फलस्वरूप आज भारत इस गंभीर संकट से हम पार पाने में कामयाबी की ओर बढ़ रहे हैं।
अपने जीवन का मूल मंत्र बना लेने वाले ‘भारत मां के इस सपूत’ डॉ. हेडगेवार का आज जन्मदिन है।  उनका एक अप्रैल 1889 को नागपुर स्थित एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मूल रूप से तेलंगाना के कांडकुर्ती गांव निवासी पिता बलिराम पंत हेडगेवार और मां रेवती ने महज 13 साल की उम्र में हेडगेवार और उनके दो बडे भाइयों को अकेला छोड परलोक गमन कर लिया। जिस तरह आज भारत सहित सम्पूर्ण विश्व कोरोना के प्रकोप से ग्रसित है,ठीक उसी तरह उन दिनों प्लेग महामारी का प्रकोप था। प्लेग ने जब माता-पिता दोनों को छीन लिया तो हेडगेवार के पालन-पोषण और शिक्षा की सारी जिम्मेदारी उनके दोनों बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत के कंधों पर आ गई।
बचपन में लोग बड़े प्रेम से डॉक्टर हेडगेवार को केशव कहकर पुकारते थे। उनकी कहानी की शुरुआत होती है साल 1897 से, जब भारत में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया के शासन के 60 साल पूरे होने पर ब्रिटिश सरकार खुशियां मना रही थी। स्कूलों में मिठाइयां बांटी जा रही थी लेकिन आठ साल के नन्हे केशव ने मिठाई मिलने पर उसे खाया नहीं बल्कि फेंक दिया। उन्होंने कहा कि अंग्रेज हमें मिठाई खिलाकर गुलामी की जंजीरों में और कसना चाहते हैं। साल 1925 में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की नींव रखने वाले डॉक्टर हेडगेवार बचपन से क्रांतिकारी स्वभाव के थे। पुणे में जब वे हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे तो ‘वंदेमातरम्’ गाने की वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था क्योंकि ऐसा करना उन दिनों ब्रिटिश सरकार के सर्कुलर का उल्लंघन था। मैट्रिक के बाद उन्हें साल 1910 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कलकत्ता भेज दिया गया।
1914 में परीक्षा देने के बाद साल भर की अप्रेंटिसशिप की और साल 1915 में वह डॉक्टर के रूप में नागपुर लौट आए। शासकीय सेवा में प्रवेश के लिए या अपना अस्पताल खोलकर पैसा कमाने के लिये वे डॉक्टर बने ही नहीं थे। भारत का स्वातंत्र्य यही उनके जीवन का एकमात्र ध्येय था। उनका मानना था कि महज दो-चार अंग्रेज अधिकारियों की हत्या होने से अंग्रेज यहां से भागनेवाले नहीं हैं। इसके लिए जरूरत है कि कोई बड़ा आंदोलन करने की और ऐसे आंदोलन की सफलता के लिये आवश्यकता है व्यापक जनसमर्थन की। क्रांतिकारियों की क्रियाकलापों में इसका अभाव था। वह हमेशा कहते थे कि सामान्य जनता में जब तक स्वतंत्रता की प्रखर चाह का निर्माण नहीं होगा,तब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती। इससे पहले स्वतंत्रता अगर मिल भी गई तो टिकेगी नहीं।
यही वजह रही कि नागपुर लौटने के बाद गहन विचार कर उन्होंने हर दूसरी चीज से खुद को दूर कर लिया और कांग्रेस के जन-आंदोलन में पूरी ताकत से शामिल हो गए। यह वर्ष था 1916 का, जब लोकमान्य तिलक जी मंडाले के छह वर्षों का कारावास समाप्त कर मु़क़्त हो चुके थे। “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे मैं पाकर ही रहूंगा।”, उनकी इस घोषणा से जनमानस में चेतना की एक प्रबल लहर का निर्माण हुआ। जल्दी ही डॉ. हेडगेवार ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ उग्र भाषण देना शुरू कर दिया। यह सब देखकर अंग्रेज सरकार ने उन पर भाषणबंदी का नियम लागू कर दिया लेकिन वह नहीं माने और अपना भाषणक्रम चालू ही रखा। फिर अंग्रेज़ सरकार ने उन पर मामला दर्ज किया और उन्हें एक वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा सुना दी। 12 जुलाई 1922 को वह कारागृह से मुक्त हुए
संघ वृक्ष के बीज नामक पुस्तक के अनुसार, डॉ केशव राव हेडगेवार किताब में लिखा गया है कि संघ की स्थापना करने के बाद डॉक्टर साहब अपने भाषणों में हिंदू संगठन की बात करते थे। वहीं, उनके भाषणों में सरकार पर सीधी टिप्पणी न के बराबर होती थी। ये भी कहा जाता है कि दिसंबर 1929 में जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज प्रस्ताव पारित किया और सभी से 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने की अपील की तो डॉ. हेडगेवार ने आरएसएस शाखाओं को इस दिन भगवा ध्वज फहराकर ये दिन मनाने के लिए कहा।

कांग्रेस का राष्ट्रवाद है उथला राष्ट्रवाद

आलोचकों के मुताबिक डॉक्टर हेडगेवार ने कई बार कहा कि कांग्रेस का राष्ट्रवाद उथला राष्ट्रवाद है। उनके मुताबिक जब कांग्रेस की ओर से पूर्ण स्वराज का ऐलान किया गया और कहा गया कि 26 जनवरी 1930 को तिरंगा लहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा तब इसका विरोध करते हुए हेडगेवार ने सारी शाखाओं को आदेश दिया कि 26 जनवरी को भगवा ध्वज को सलामी दें और हर व्यक्ति को बताएं कि इसका मतलब क्या है और ये ज़रूरी क्यों है? कहा तो यह भी जाता है कि महात्मा गांधी ने जब ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह शुरू किया तो डॉ. हेडगेवार के इसमें शामिल होने की बात कही जाती है लेकिन व्यक्तिगत रूप से, न कि आरएसएस के रूप में। इसका कारण यह बताया जाता है कि वह चाहते थे कि संघ किसी भी तरह के राजनीतिक घटनाक्रम से ख़ुद को दूर रखे।

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