Uttarakhand

‘अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा!! राष्ट्रीय गौरव का ऐतिहासिक अवसर!! (कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

रुड़की/हरिद्वार : ‘श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आध्यात्मिक अनुष्ठान है। यह राष्ट्र मंदिर है। निसंदेह श्री राम लला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा राष्ट्रीय गौरव का एक ऐतिहासिक अवसर है।….

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण केवल राम काज नहीं है। यह राष्ट्र काज है। राम जन्मभूमि में श्री रामलला के बाल रुप की प्राण प्रतिष्ठा स्थापना भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आध्यात्मिक अनुष्ठान है। यह राष्ट्र मंदिर है। निसंदेह श्री राम लला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा राष्ट्रीय गौरव का एक ऐतिहासिक अवसर एवं राष्ट्रीय उत्तरदायित्व है। जिस प्रकार सन् 1955 में लोहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार किया था ठीक उसी प्रकार तीर्थक्षेत्र अयोध्या में भी राम मंदिर के निर्माण को दलगत राजनीति का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए था। दुर्भाग्य से विपक्षी दलों द्वारा राम मंदिर के उद्घाटन की तिथि घोषित होने के बाद से ही तीर्थक्षेत्र अयोध्या में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को किसी दलगत राजनीति से जोड़कर देखा गया गया।

इसके दुष्परिणामों से राष्ट्र को सबक लेने की आवश्यकता है। वर्षों प्रतिक्षा के बाद असंख्य कारसेवकों के त्याग और बलिदान के बाद 22 जनवरी,2024 को वह शुभ घड़ी आ ही गई। जिस भव्य राम मंदिर की चिर पुरातन हिन्दू सनातनियों को दशकों से प्रतिक्षा थी उसका एक स्वप्न साकार हुआ है, प्रत्येक भारतवासी ने न केवल खुली आंखों से देखा,बल्कि जिसके लिए सतत प्रयत्न किए गए और साधना के साथ संघर्ष के पथ पर भी चला गया। अनेकानेक बाधाओं के बाद भी तीर्थक्षेत्र अयोध्या में राम जन्मस्थान पर मंदिर को स्थापित करने का हिंदू समाज का संकल्प कभी डिगा नहीं। इसी संकल्प का परिणाम है कि अयोध्या में राम मंदिर अपने भव्य रूप में आकार ले रहा है।

अयोध्या में केवल एक मंदिर नहीं है। यह भारत की संस्कृति और अस्मिता का प्रतीक है। एक स्वाभिमानी राष्ट्र अपने ऐसे ही प्रतीकों से ऊर्जा प्राप्त करता है। राम मंदिर भारत की चेतना का पर्याय है और इसका भी कि राम जन-जन की स्मृति में कितने गहरे रचे-बसे हैं। यह हाल के इतिहास में पहली बार है,जब किसी समाज ने अपने प्रेरणा पुरुष के जन्मस्थान एवं उनके उपासना स्थल को अतिक्रमण और अवैध कब्जे से न्यायपूर्वक छुड़ाने में सफलता प्राप्त की। इसी कारण राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह देश-विदेश में कोने-कोने में बसे भारतीय इस आयोजन से भाव विभोर भी हुआ और विश्व की जिज्ञासा का केंद्र बना।

तीर्थक्षेत्र अयोध्या में राम मंदिर भारत ही नहीं,विश्व इतिहास में सामाजिक,सांस्कृतिक,धार्मिक और राष्ट्रीय महत्व का सबसे बड़ा आयोजन भी है। इस आयोजन को लेकर उमड़ा भावनाओं का ज्वार आज ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे रहा है कि पांच सौ वर्षों के संघर्ष के बाद राम मंदिर का निर्माण क्यों आवश्यक था और हिंदू समाज उसके लिए इतनी व्यग्रता से सदियों से क्यों प्रतीक्षा कर रहा था?

अच्छा होता कि यह प्रतीक्षा स्वतंत्रता के बाद ही पूरी हो जाती,लेकिन संकीर्ण राजनीतिक कारणों और सेक्युलरिज्म की विजातीय-विकृत अवधारणा के चलते ऐसा नहीं हो सका। यह एक बड़ी विडंबना रही कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की हिंदू समाज की सदियों पुरानी स्वाभाविक अभिलाषा की न केवल अनदेखी की गई,बल्कि उसका उपहास भी उड़ाया गया।

राम मंदिर आंदोलन के समय यह कार्य कथित सेक्युलर तत्वों,अपने वोट बैंक को भुनाने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले राजनीतिक दलों और भारतीयता को नकारने वाले बुद्धिजीवियों ने तो किया ही, मीडिया के एक बड़े हिस्से ने भी किया। निश्चित रूप में राम जन्मस्थल पर कथित बाबरी मस्जिद का निर्माण भारत की सभ्यतागत चेतना एवं संस्कृति को अपमानित करने के लिए आघात था।

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की हिंदू समाज की सदियों पुरानी स्वाभाविक अभिलाषा की न केवल अनदेखी की गई, बल्कि उसका उपहास भी उड़ाया गया। राम मंदिर आंदोलन के समय यह कार्य कथित सेक्युलर तत्वों,अपने वोट बैंक को भुनाने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले राजनीतिक दलों और भारतीयता को नकारने वाले बुद्धिजीवियों ने तो किया ही, मीडिया के एक बड़े हिस्से ने भी किया। किसी भी राष्ट्र के नागरिकों को केवल उन्नत भौतिक सुविधाएं ही नहीं होती,बल्कि उन्हें अपनी आत्मिक सुख-शांति के लिए संस्कृति एवं स्वाभिमान के प्रेरक स्थलों की भी आवश्यकता रहती हैं।

तीर्थक्षेत्र अयोध्या में भव्य राम मंदिर एक ऐसा ही स्थल है। राम जन्मभूमि स्थल पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन न केवल आस्था का उत्सव है बल्कि यह अन्याय के प्रतिकार के साथ भारतीय सभ्यता और स्वाभिमान के गौरव गान का यशो ज्ञान का भी उत्सव है।

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