बारिश और ओले लील गए काफल की मिठास

कोटद्वार । पहाड़ की मिठास काफल पर प्रकृति की नजर लग गई है। बेमौसमी बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि से काफल लगातार खराब हो रहा है। आलम यह है कि इस वर्ष शायद ही काफल का स्वाद चखने को मिल पाएगा।
प्राकृतिक रूप से उत्तराखंड के जंगल में उगने वाले इस फल को प्रकृति ने ही नुकसान पहुंचाया है। प्रदेश में पिछले कुछ समय से मौसम में जारी उतार-चढ़ाव के साथ हुई ओलावृष्टि से काफल पूरी तरह से खराब हो गए हैं। पहाड़ों में अप्रैल व मई के मौसम में जहां एक ओर खिला बुरांश अनायास ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचता है, वहीं दूसरी ओर काफल भी पकना शुरू हो जाता है।
यह जून माह के प्रथम सप्ताह तक बाजार में पहुंच जाता है। लेकिन इस वर्ष स्थितियां पूरी तरह उलट हैं। इन दिनों क्षेत्र में काफल की कीमतें आसमान छू रही हैं। गत वर्ष तक सौ-डेढ़ सौ रुपये प्रति किलो बिकने वाले काफल की कीमत इन दिनों 300 से 350 रुपये प्रति किलो तक पहुंची हुई हैं। जंगली फल काफल औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
इसको खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। इसके अलावा मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों में काफल काम आता है। पहाड़ के युवा इस मौसम में काफल तोड़कर उसे बाजार में बेचते हैं। इससे उनकी काफी आमदनी हो जाती है। जनपद पौड़ी के गुमखाल, द्वारीखाल, सिलोगी आदि क्षेत्रों में काफल की बिक्री की जाती है। लेकिन इस बार काफल कम होने से काफल काफी कम मात्रा में ही बाजार तक पहुंच पा रहा है।