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शिक्षा सचिव साहब, आखिर फीस के मामले में अभिभावकों के साथ यह कौन सा ”खेल” खेला जा रहा है ?

बताएं, कैसे मान लिया कि स्कूलों के पास नहीं हैं वेतन के पैसे 

एक माह की फीस देने के शासन के आदेश ने कराई सरकार की फजीहत

शासन के आदेश ने स्कूलों को दिया फीस के लिए दबाव बनाने का मौका

प्राइवेट स्कूलों के सुर में सुर मिला रहे उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारी

आखिर कब तक अभिभावकों को पिसने को मजबूर करेगा अफसरों और प्राइवेट स्कूलों को गठजोड़

देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। कोरोना संक्रमण के दौर में भी उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारी सरकार की किरकिरी कराने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। अब स्कूल फीस को लेकर जारी एक आदेश ने फजीहत करा दी। जब एक बार यह आदेश जारी हो चुका था कि कोई स्कूल फीस नहीं लेगा, तो फिर कुछ दिन बाद स्कूल प्रबंधकों के सुर में सुर मिलाते हुए केवल एक माह की फीस प्राप्त करने की छूट किस दबाव में दी गई। इस आदेश ने स्कूल प्रबंधकों को अभिभावकों पर दबाव बनाने तथा स्कूलों के शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन में जबरदस्त कटौती करने का मौका दे दिया। 
देवभूमि मीडिया ब्यूरो उत्तराखंड में वरिष्ठ अधिकारियों की लापरवाही को लगातार उजागर करता रहा है। अब शिक्षा विभाग का फरमान देखिए, शिक्षा सचिव ने पहले तो स्कूलों के फीस नहीं लेने पर रोक लगा दी थी। यह आदेश अभिभावकों को कुछ राहत देने वाला था, पर अधिकारियों को तो प्राइवेट स्कूलों की चिंता है। उन्हें आम व्यक्ति की पीड़ा से क्या लेना। आदेश पर आदेश को देखते हुए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि अधिकारियों और प्राइवेट स्कूलों का गठजोड़ ही तो अभिभावकों को पिसने को मजबूर कर रहा है। 

आखिर किसके दबाव में पलट दिया शासन ने अपना आदेश

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि वरिष्ठ अधिकारियों ने उन प्राइवेट स्कूलों को छूट देने का फैसला कर लिया, जो सालभर मनमानी फीस वसूलते हैं। यह साफ है कि शिक्षा सचिव का दूसरा आदेश अभिभावकों के लिए नहीं था, उसका मकसद स्कूल प्रबंधकों को राहत देना था। भले ही इसमें स्वेच्छा शब्द का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन प्राइवेट स्कूल वालों के लिए यह शब्द कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने आदेश जारी होने के दूसरे दिन ही अभिभावकों पर फीस के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया।

देखें- शिक्षा सचिव के 22 अप्रैल 2020 के आदेश की प्रति 

तो दूरदराज के स्कूलों के क्या हाल होंगे

दूसरा सवाल, शासन के इन अधिकारियों ने यह कैसे मान लिया कि प्राइवेट स्कूल वालों के पास अपने शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन देने के लिए आर्थिक संकट है। क्या सरकार ने इसके लिए किसी पैमाने का इस्तेमाल किया, जो यह स्पष्ट कर सके कि स्कूल वाले एक माह की फीस नहीं मिलने पर जबरदस्त आर्थिक संकट से जूझने लगेंगे। अगर,एजुकेशन हब देहरादून के स्कूलों के आर्थिक हालातों की यह दास्तां है तो पहाड़ के दूरदराज के स्कूलों के क्या हाल होंगे।

आर्थिक हालात खराब हैं तो अधिग्रहण क्यों नहीं

अगर हालात ऐसे हैं तो सरकार को इन स्कूलों का अधिग्रहित करके इनका रिवाइवल करना चाहिए, ताकि शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन का भुगतान किया जा सके, क्योंकि ये स्कूल इस कदर दिवालिया हो चुके हैं कि एक माह की फीस नहीं मिलने पर अपने कर्मचारियों और शिक्षकों को वेतन नहीं दे सकते। अभी तो एक माह के वेतन का मामला है, जब दो माह हो जाएंगे तो हालात क्या होंगे, समझा जा सकता है।

तो कहां से आता है जबर्दस्त विज्ञापन का पैसा

सवाल उठता है कि जब देहरादून में प्राइवेट स्कूल वालों की इतनी बुरी हालत है तो फिर यहां हर साल नये आलीशान इमारतों वाले स्कूल क्यों खुल रहे हैं। शहर में स्कूलों की चेन क्यों खुल रही हैं। स्कूलों के विज्ञापनों से समाचार पत्र भरे होते हैं, वो पैसा कहां से आता है। स्कूलों के पास एडमिशन के लिए शहर में हार्डिंगों और कियोस्क की बाढ़ लाने के लिए पैसा है, पर शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन के मामले में केवल यही कुतर्क है कि फीस नहीं मिलेगी तो वेतन नहीं दे पाएंगे। हद की बात तो यह है कि प्रदेश के शिक्षा सचिव भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं।

क्या फीस के भरोसे खोला स्कूल

अगर स्कूल खोलने से आर्थिक हालात इतने खराब होते हैं कि किसने बोला था स्कूल खोलने के लिए, जब टीचर्स और स्टाफ के वेतन के पैसे नहीं हैं जेब में। क्या अविभावकों के भरोसे स्कूल खोला था कि जब वो महीनेभर की फीस देंगे तो वेतन दे देंगे।

क्या पीएम व सीएम रीलिफ फंड में दान क्या ओब्लाइज करने के लिए

सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल की टिप्पणी गौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के लिए सरकार और अफसरों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा सचिव के आदेश में भी यही तर्क दिया गया कि स्कूल वेतन नहीं दे पा रहे। दरअसल, सीएम रिलीफ फंड में स्कूलों के मालिकान की ओर से दान के नाम पर पैसा दिया ही उन्हें ओब्लाइज करने के लिए। अफसरों की जेबें ऑफ द रिकॉर्ड तरीके से गर्म हुई होंगी। बाकी, शिक्षा मंत्री की अफसरों और स्कूल मालिकान की लॉबी के आगे चलती ही कहां है। चलती होती तो तीन साल पहले से गाया जा रहे फीस एक्ट के हाल बुरे नहीं होते। 

शिक्षा सचिव के गोलमोल आदेश ने खोली पोल

सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकार दीपक फर्स्वाण की टिप्पणी है कि उत्तराखंड शासन की ओर से जारी गोलमोल आदेश सरकार और निजी स्कूल संचालकों के गठजोड़ की पोल खोलने को काफी है। एक और बात काबिलेगौर है, अपने स्टाफ को सैलरी देने के नाम पर फीस वसूलने को आतुर निजी स्कूल संचालक शिक्षकों को मामूली तनख्वाह देते हैं। सभी को मिलकर इसका एकजुट विरोध करना होगा।

स्कूलों ने अपनी आर्थिक स्थिति का वेरिफिकेशन तो कराया नहीं , जो अभिभावकों की आर्थिक स्थिति जांचेंगे

क्या प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा सचिव को अपनी आर्थिक स्थिति बताने समय प्रूव के तौर पर एकाउंट डिटेल, बैलेंस शीट या अन्य खर्चों की डिटेल दिखाई होगी, जिनसे पता चला कि उनकी आर्थिक स्थिति वाकई तनख्वाह तक देने की नहीं है। लेकिन स्कूल अभिभावकों पर फीस नहीं देने की असमर्थता को अपने प्रिंसिपल से वेरिफाई कराने की बात कह रहे हैं। पहली बात तो स्कूलों को यह अधिकार किसने दिया कि वो अभिभावकों से असमर्थता जताने वाला पत्र लें और फिर उनकी आर्थिक स्थिति को वेरीफाई करें। क्या स्कूलों को शासन ने यह अधिकार प्रदान किया है।  
सोशल मीडिया के हवाले से ही पता चला कि प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप का कहना है कि निजी स्कूलों के पास स्कूल चलाने के लिए अभिभावकों से मिलने वाली फीस के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में फीस लेने की इजाजत देना जायज है। उन्होंने कहा कि निजी स्कूल इस बात का विशेष ध्यान रख रहे हैं कि किसी भी अभिभावक पर फीस के लिए दबाव न बनाया जाए। ऐसे में निजी स्कूलों ने न्याय संगत व्यवस्था बनाते हुए प्रधानाचार्यो को फिलहाल फीस माफी पर विचार करने और निर्णय लेने के अधिकार सौंप दिया है। जो अभिभावक फीस देने में असमर्थ हैं, उन्हें प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर अपनी मजबूरी बतानी होगी। अभिभावक का वेरिफिकेशन करने के बाद ही रियायत मिलेगी।

प्राइवेट स्कूलों को किसने दिया अधिकार ?

अब यह सवाल उठता है कि स्कूल संचालक प्रेम कश्यप और एसोसिएशन से जुड़े स्कूलों के प्रिंसिपल को यह अधिकार किसने दे दिया कि वो अभिभावकों की आर्थिक स्थिति का वैरीफिकेशन कर सकेंगे। कश्यप की बात पर गौर किया जाए तो स्पष्ट होता है कि स्कूल अभिभावकों पर जबर्दस्त दबाव बना रहे हैं। यह इसलिए भी, क्योंकि वो जानते हैं शासन ने उनके पक्ष में आदेश जारी किया है। 

स्कूल ने लॉकडाउन में ही तीन कर्मचारी निकाल दिए

वरिष्ठ पत्रकार अंथवाल का कहना है कि “गैर सरकारी” राजनीतिक दलों और जन संगठनों के साथ ही आम लोगों को भी लॉक डाउन खुलते ही बड़े पैमाने पर तीखे आंदोलन छेड़ने की तैयारी अभी से शुरू करनी होगी। क्योंकि, लॉक डाउन खत्म होने के बाद प्राइवेट सेक्टर में बड़े पैमाने पर नौकरियां जाने वाली हैं। मसूरी रोड के आर्यन स्कूल ने तो अपने तीन कर्मचारियों को लॉकडाउन के बीच ही निकाल बाहर किया है। शिक्षा विभाग के अधिकारी नोटिस देकर जवाब मांग रहे हैं, मगर स्कूल प्रबंधन इन आदेशों को ठेंगे पर रखे हुए है। यही स्थिति अखबारों-चैनलों, स्कूलों, फैक्टरियों, कम्पनियों यानी हर जगह होगी। ऐसे में कम से कम सरकारों से इस मामले में किसी तरह की उम्मीद करना मूर्खता है। खासकर, अफसरों/मालिकानों के आगे घुटनों के बल रेंगने वाली अपने उत्तराखंड की सरकार से तो बिल्कुल नहीं। उम्मीद तो फिलहाल विपक्ष से भी नहीं है।  

स्कूल चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन हैं, पर यहां पर्सनल प्रोपर्टी की तरह चला रहे

सोशल मीडिया पर आनंद रावत लिखते हैं-  Schools are charitable institution , they did not pay any tax. Mr kejriwal asked various schools in Delhi, why they are increasing fees, when their Balance Sheet showd huge bank deposits and bank balance. Due to ex income tax officer, he knocked on right place. In Uttrakhand , the Balance Sheets of schools must be considered before allowing hike in fees. Everyone is running schools like personal property, whereas all schools are public charitable institution and such institution must be run in transparent manner.

उत्तरकाशी के इस स्कूल से सीखिए, संकट में कैसे दिया जाता है साथ 

अब आपको पहाड़ के एक स्कूल का उदाहरण देते हैं, जो देहरादून के पब्लिक स्कूलों की तरह खुद को आर्थिक संकट में नहीं बता रहा, बल्कि अभिभावकों के साथ मजबूती के साथ खड़ा है। उत्तरकाशी जिला के गोस्वामी गणेश दत्त सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज के प्रबंधन ने कोरोना वायरस संक्रमण को ध्यान में रखते हुए स्कूल का अप्रैल, मई, जून, 2020 का शुल्क नहीं लेने का निर्णय लिया है।

हिमाचल प्रदेश में शिक्षा विभाग ने दी है कड़ी चेतावनी 

उधर,हिमाचल प्रदेश के शिक्षा निदेशक निजी स्कूलों की ओर से अभिभावकों को बार-बार फीस जमा करवाने के एसएमएस भेजने पर कड़ा संज्ञान लिया है। निदेशक ने बताया कि अभिभावकों पर दबाव बनाने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने सभी स्कूलों को चेतावनी जारी करते हुए आगाह किया है कि आजकल पूरे प्रदेश में लॉकडाउन की स्थिति है, ऐसे में निजी स्कूल फीस जमा करवाने के लिए अभिभावकों पर बेवजह दबाव ना बनाएं। अगर, अभिभावकों पर फीस के लिए दबाव बनाया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। 

devbhoomimedia

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