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राज्य संपत्ति विभाग के गेस्ट हाउसों को पीपीपी मोड में देने की तैयारी !

शासन में बैठे अफसरों ने पाला मंसूबा, पहले कैंटीन बेचने की बनाई है योजना

सरकारी संस्थानों के दरकिनार कर चहेतों को कराएंगे कमाई स्थानीय लोगों को बेरोज़गार कर लाएंगे क्या सड़कों पर !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

गजबः अपर स्थानिक आयुक्त कर रही कमरों का आवंटन

नई दिल्ली स्थित उत्तराखंड सदन में पिछले कुछ समय से एक अजीब व्यवस्था को इऩ्हीं अफसरों की पहल पर कायम कर दिया गया है। इस सदन में वरिष्ठ व्यवस्था अधिकारी और व्यवस्था अधिकारी समेत राज्य संपत्ति विभाग के तमाम अफसर और कर्मचारी तैनात हैं। यहीं लोग अभी तक कक्ष आवंटन से लेकर अन्य तमाम व्यवस्थाओं का संचालन करते रहे हैं। पिछले दिनों अचानक शासन स्तर से एक आदेश जारी करके ये तमाम अधिकार दिल्ली में तैनात अपर स्थानिक आयुक्त इला गिरि को दे दिए गए हैं। अब अपर स्थानिक आयुक्त स्तर की अधिकारी ही कक्षों का आवंटन कर रही हैं और वहां तैनात अफसरों को बता रही हैं कि किसे क्याक्या काम करने हैं। अगर इस स्तर के अधिकारी को ही ये सामान्य काम करने हैं तो राज्य संपत्ति के बाकी आला अफसरों की वहां जरूरत ही क्या है। एक बात यह भी है कि अगर अपर स्थानिक आयुक्त स्तर का अधिकारी कक्ष आवंटन करेगा तो अपने पद के अन्य कामों का कैसे निर्वहन कर पाएगा,इसे आसानी से समझा जा सकता है।

देहरादून। शासन में बैठे रसूखदार अफसरों की निगाहें अब सरकारी गेस्ट हाउस पर पड़ गई हैं। इन गेस्ट हाउस को पीपीपी मोड में निजी हाथों में देने का तानाबाना बुन लिया गया है। पहले चरण में इन गेस्ट हाउस की कैंटीन निजी हाथों में देने की तैयारी है।

उत्तराखंड सरकार के राज्य संपत्ति विभाग के नैनीताल, देहरादून, दिल्ली और लखनऊ में अपने गेस्ट हाउस हैं। मुबंई का गेस्ट हाउस भी लगभग तैयार है। अब तक राज्य संपत्ति विभाग खुद ही इनका संचालन अपने अफसरों और कर्मचारियों के माध्यम से कर रहा है। इन गेस्ट हाउस में कैंटीन या रसोईघर का संचालन भी सरकारी प्रभुत्व वाली संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। अब दोतीन खास अफसरों की निगाहें इन पर तिरछी हो रही हैं। ये सीधे तौर पर राज्य संपत्ति विभाग से नहीं जुड़े हैं पर सत्ता पर इनकी पकड़ किसी से छुपी नहीं हैं। ये अफसर अब इन सरकारी गेस्ट हाउसों को पीपीपी मोड का हवाला देकर अपने चहेतें निजी लोगों को सौपने की योजना पर काम कर रहे हैं।

बताया जा रहा है कि इऩ अफसरों ने सरकारी अधिपत्य वाली केएमवीएन और जीएमवीएन की ओर से इन गेस्ट हाउसों में चल रहे रसोईघरों की गुणवत्ता पर तमाम सवाल खड़े करने शुरू किए और फिर कहा कि इन्हें पीपीपी मोड में चलाया जाए। बताया जा रहा है कि इसकी भनक लगते ही अंदरखाने इसका विरोध भी शुरू हो गया है। अगर ये कैंटीन पीपीपी मोड में जाती हैं तो एक तो खाना बहुत मंहगा हो जाएगा और सैकड़ों स्थानीय लोगों की नौकरी पर भी खतरा मंडराएगा। बताया जा रहा है कि इन अफसरों ने पहले कैंटीन पर हमला करके यह भांपने की कोशिश की है कि इसका कितना विरोध होता है और किस हद तक उऩके मंसूबे परवान चढ़ पाते हैं। अगर ये कैंटीन पीपीपी मोड में चली गईं तो अगले चरण में सभी गेस्ट हाउस निजी हाथों में सौंप दिए जाएंगे।

चर्चा है कि सरकार के नाक का बाल बने दम्पति ब्यूरोक्रेट्स की शह पर यह योजना बनाई गयी है ताकि अपनों को मालामाल किया जा सके और उत्तराखंडी सहित उत्तरप्रदेश से राज्य निर्माण के दौरान उत्तराखंड को मिले कर्मचारियों और अधिकारियों को दरकिनार कर अपने चहेतों को मलाई चाटने का पूरा इंतज़ाम किया जा सके।  

  

  

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