अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद POCSO एक्ट हुआ और कठोर
- 12 साल तक की बच्चियों से रेप पर अब होगी उम्र कैद या मौत की सजा
- अध्यादेश में जोड़े गए हैं कई अहम प्रावधान
नयी दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामलों में दोषी व्यक्तियों को मृत्युदंड तक की सजा देने संबंधी अध्यादेश पर आज अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। बीते दिन ही केंद्रीय कैबिनेट ने कल उस अध्यादेश को अपनी स्वीकृति दी थी जिसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने के दोषी ठहराये गये व्यक्ति के लिये मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने की अदालत को इजाजत दी गई है।
गजट अधिसूचना में कहा गया है, ”संसद का सत्र अभी नहीं चल रहा है और राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हैं कि जो परिस्थितियां हैं उनमें यह आवश्यक था कि वह तत्काल कदम उठाएं”। इसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद 123 के उपखंड (1) में दी गई शक्तियों का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति ने इस अध्यादेश को मंजूरी दी है।
गौरतलब हो कि उन्नाव गैंगरेप और कठुआ में बच्ची से दुर्दांत दुष्कर्म और हत्या के बाद उपजे देशव्यापी व्यापक जनाक्रोश के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में सरकार ने संबंधित अध्यादेश पर 12 वर्ष तक की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों मामलों में मौत की सजा को मंजूरी दे दी है। हालाँकि यह भी माना जा रहा है कि कठुआ में आठ वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म व हत्या, सूरत में नौ वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के मामलों ने सरकार को जल्द कार्रवाई करने के लिए बाध्य किया है। हालांकि,सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान सूचित किया था कि 12 साल तक बच्चों से दुष्कर्म के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया जा रहा है। वहीँ कैबिनेट की ओर से मंजूर अध्यादेश में किए गए नए प्रावधानों को मिशन मोड के आधार पर तीन महीने में लागू किया जाएगा। इसके लिए आवश्यक सहायता केंद्र सरकार की ओर से मुहैया कराई जाएगी।
कैबिनेट के फैसले के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि कैबिनेट से मंजूर अध्यादेश सरकार की महिला सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्धता को दर्शता है। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देता हूं।
उधर पॉक्सो कानून अध्यादेश पर प्रयास संस्था के सचिव आमोद कंठ ने कहा कि मुझे पता है कि माहौल बहुत संवेदनशील है, लेकिन हमें संतुलन नहीं खोना चाहिए। मैं आज यह कह सकता हूं कि मौत की सजा से ज्यादा पीड़ितों के पुनर्वास पर ध्यान देना जरूरी है। पॉक्सो और क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट 2013 कोई साधारण कानून नहीं है और हमारे पास पर्याप्त कानून हैं। दिक्कत उन कानूनों के लागू करने में है। क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही मुख्य आरोपी होते हैं। प्रयास और यूनीसेफ के संयुक्त राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन में भी यह बात सामने आई थी, जो बाद में पॉक्सो के गठन का आधार भी बनी थी।
वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा ने कहा कि 12 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं में कानून का सख्त होना बेहद जरूरी था। अब ऐसे मामलों में चिकित्सा रिपोर्ट अहम हो जाएगी। साथ ही जांच एजेंसियों की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। इन मामलों को प्रमाणित करने का जिम्मा पूरी तरह से पुलिस के कंधों पर होगा।
- दुष्कर्म जैसे अपराध के दोषी को मौत की सजा से दंडित करने के जोड़े नए प्रावधान
इस अध्यादेश में आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश, 2018 में आईपीसी और साक्ष्य अधिनियम कानून, आपराधिक कानून प्रक्रिया संहिता(सीआरपीसी) तथा पॉक्सो (बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण कानून) में संशोधन कर ऐसे अपराध के दोषी को मौत की सजा से दंडित करने के नए प्रावधान जोड़े गए हैं।
अध्यादेश में महिलाओं व बच्चियों से रेप करने के मामले में न्यूनतम सजा को सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया और अधिकतम सजा उम्रकैद तक बढ़ा दी गई। इसका मतलब है कि दोषी को पूरी जिंदगी जेल में बितानी पड़ सकती है। वहीं 16 वर्ष से कम की उम्र की लड़की से दुष्कर्म के आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी। कैबिनेट में अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद अब इसे राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
वहीँ बच्चों से दुष्कर्म के मामलों में त्चरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए है। इसके तहत राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और हाईकोर्ट से परामर्श कर फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे। इस तरह के मामलों में जांच पूरी करने के लिए दो महीने की समयसीमा तय की गई है। वहीं जांच पूरी होने के बाद निचली अदालत में भी सुनवाई दो महीने में ही पूरी होगी। अपीलीय अदालत में भी मामले को निपटाने के लिए छह महीने की समयसीमा निर्धारित की गई है।
नियमों के तहत अध्यादेश के लागू होने पर संशोधन तत्काल प्रभाव से लागू हो जाएंगे। हालांकि, सरकार को छह महीने तक लागू रहता है। लेकिन संसद का सत्र शुरू होने पर उसी सत्र में अध्यादेश से संबंधित विधेयक पेश कर कानून पर मुहर लगवानी पड़ती है।
मौजूदा पोक्सो कानून के मौजूदा प्रावधानों में दुष्कर्म के मामलों में उम्रकैद का प्रावधान है। हालांकि, निर्भया गैंगरेप के बाद 2012 में केंद्र सरकार ने ऐसे मामलों में मौत की सजा प्रावधान का प्रावधान किया था, जब रेप से महिला की मौत हो जाए या वह स्थायी रूप से कोमा में चली जाए।अभी हाल ही में चार राज्यों ने नाबालिग के साथ रेप करने वालों को मौत की सजा देने के प्रावधान किए हैं।
- बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को मृत्युदंड देने के अध्यादेश के अहम प्रावधान – बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित की जाएंगी
– मामलों में पीड़ितों का पक्ष रखने के लिए राज्यों में विशेष लोक अभियोजकों के नए पद सृजित होंगे
– वैज्ञानिक जांच के लिए सभी पुलिस थानों और अस्पतालों में विशेष फॉरेंसिक किट मुहैया कराई जाएंगी
-रेप की जांच को समर्पित पुलिस बल होगा, जो समय सीमा में जांच कर आरोप पत्र अदालत में पेश करेगा
– क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यौन अपराधियों का डेटा तैयार करेगा, इसे सभी राज्यों से साझा किया जाएगा
– पीड़ितों की सहायता के लिए देश के सभी जिलों में एकल खिड़की बनाया जाएगा।
पॉक्सो कानून आखिर है क्या ?
– 14 नवंबर 2012 को ‘द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पॉक्सो) एक्ट लागू हुआ।
– 18 साल से कम उम्र के बच्चों व किशोरों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
– पहली बार कानून में यौन उत्पीड़न के विभिन्न स्वरूपों को परिभाषित किया गया। बच्चों की कस्टडी के दौरान पुलिस व कर्मचारियों की ओर से किए गए उत्पीड़न के लिए भी सख्त प्रावधान किए गए।