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त्रिवेंद्र के जाते ही आबकारी विभाग में शुरू हुआ ”खेल”

घूसखोरी की बढ़ोतरी न हो इसलिए प्रक्रिया में यही बेहतर उपाय है कि सब कार्य ऑनलाइन और हों सार्वजनिक

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून : पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ते ही सूबे के आबकारी विभाग में एक बार फिर ”खेल” शुरू हो गया है। आबकारी विभाग के अधिकारियों और शराब माफियाओं के गठजोड़ ने जहां राज्य के दूरदराज के पर्वतीय इलाकों में घटिया और निम्न दर्जे के शराब के ब्रांडों की सप्लाई इस लिए शुरू कर दी है कि जिससे ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सके। वहीं शराब की बोतलों की बिक्री और उसपर दर्ज दरों से ज्यादा पर बिक्री यानी ओवर रेटिंग की शिकायतें तो आम हो गयी है इस तरफ न तो आबकारी विभाग का आ रही शिकायतों पर ध्यान है और न सरकार ही जनता की कोई सुनवाई ही कर रही है।

जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड के आबकारी विभाग में अभी भी बहुत से ऐसे काम हैं और बहुत सी ऐसी त्रुटियां हैं जिनमें सुधार की जरूरत है। हालांकि त्रिवेंद्र राज में इस ओर कुछ सुधार हुए थे लेकिन अभी कुछ में और सुधार की आवश्यकता है। देश के प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार सरकारी कार्यों की कार्यप्रणाली में सुधार होने चाहिए जिससे गलत कार्य में विश्वास रखने वालों को दूर रखा जाए। ऐसा नहीं कि कुछ काम नहीं हुए वहीं मौजूदा सरकार ने कुछ सुधार जरूर किए हैं।

मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने लेबल पास करने की प्रक्रिया को online कर दिया है। जो एक स्वागत योग्य कदम है। परंतु अभी भी बहुत से कार्य हैं जिनमें सुधार चाहिए। जिसमें EDP अर्थात वो मूल्य जिसे ex distillery price कहा जाता है, और जो आबकारी से पास कराना पड़ता है। civil market की EDP अब online पास की जा रही है। परंतु CSD की EDP अभी भी offline ही रखी गई है, और अभी तक इसको किन कारणों से पास नहीं किया गया यह जांच का विषय है।

जानकारों का कहना है कि पिछले एक हफ्ते से ज्यादा हो गया अभी तक किसी ने इसकी सुध तक नहीं ली। जिसका नुकसान ये है कि जो भी sale होनी थी वह नहीं हो पा रही है। इससे सीधा सीधा राजस्व का नुकसान राज्य को हो रहा है। इसलिए CSD की EDP पास वाली प्रक्रिया भी online होनी चाहिए। वहीं सबसे जरूरी एक और ऑनलाइन प्रक्रिया की जरूरत है जिसका होना अति आवश्यक है , और वो है EVC का समय से दिया जाना। excise verification certificate (EVC) एक ऐसा document है जो फैक्ट्री से शराब की डिलीवरी के साथ भेजा जाता है। EVC(excise verification certificate) को जल्द से जल्द distillery तक पहुंचना चाहिए , परंतु यहां तो 60-70 दिन तक भी कंपनी प्रतिनिधि को  समय से नहीं दिया जाता। इसके पीछे भी बहुत बड़ा कोई ”खेल” बताया जा रहा है। हालांकि इसका जिक्र न करो तब भी समझ आता है। कि इसमें आबकारी विभाग के अधिकारी और कर्मचारी किस तरह ”खेल” खेल रहे हैं जिससे सूबे को राजस्व की हानि हो रही है लेकिन इसका फायदा किसे हो रहा है यह सर्वविदित है। इसलिए इसका भी ऑनलाइन होना अति आवश्यक है। ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

उल्लेखनीय है कि देश के कई राज्यों में यह प्रक्रिया कई जगह ऑनलाइन हो गई है। गोआ राज्य इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जो आबकारी से प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का राजस्व प्राप्त करता है वह भी बिना किसी झोल के क्योंकि वहाँ सभी प्रक्रियाएं ऑनलाइन हो चुकी है और सरकार का शिकायत पर कड़ी नज़र रहती है ताकि आम आदमी की जेबों पर डाका न डाला जा सके। जानकारों का कहना है कि देश में घूसखोरी की बढ़ोतरी न हो इसलिए प्रक्रिया में यही बेहतर उपाय है कि सब कार्य ऑनलाइन और सार्वजनिक हों।

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