- झील से सटे गांवों के मकानों में धंसाव से दरारें
- प्रभावित गांवों के विस्थापन न होने से लोगों की जान को खतरा
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : एशिया का सबसे बड़ा बाँध और जल विद्युत परियोजना के अस्तित्व में आये लगभग 18 वर्ष होने को हैं लेकिन देश के लिए सबसे सस्ती बिजली देने वाले टिहरी जिले के लगभग 17 बाँध क्षेत्र के गांवों के लोग पुनर्वास नीति की खामियों के चलते आज भी खतरे के साये में जीने को मजबूर हैं। उनके मकानों में बाँध के कारण हो रहे भू-धंसाव के कारण दरार पड़ रही है ऐसे में इन गांवों के लोगों की रातों की नींद गायब हो गयी है। वहीं सरकार ने टीएचडीसी को झील का जलस्तर 830 मीटर करने की अनुमति भी दे दी है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में और खतरा गहराने लगा है।
गौरतलब हो आजकल झील से सटे इन गावों में जमीन जहां बांध के कारण भू-धंसाव के जद में आने के कारण लगातार दरक रही है। जिससे बांध क्षेत्र के मकानों में दरारें आनी शुरू हो गयी है। ऐसा नहीं कि ये दरारें या भू-धंसाव अब ही हो रहा है यह झील बनने के बाद शुरू हो गया था,जिसके बाद ग्रामीणों की शिकायत और वस्तुस्थिति को देखते हुए शासन ने आसपास के गांवों में भूस्खलन और मकानों में दरारें आने के बाद वर्ष 2010 में सम्बंधित पुनर्वास, टीएचडीसी, आइआइटी रुड़की, वाडिया संस्थान, मिट्टी एवं जल संरक्षण विभाग, खनन, सर्वे ऑफ इंडिया, और वन विभाग के अधिकारियों को विभागों को मिलाकर एक संयुक्त विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। जिसने अपनी रिपोर्ट में 17 गांवों को झील से खतरे की जद में होने की बात बताई थी और शासन को रिपोर्ट सौंपी थी।
रिपोर्ट के शासन में भेजे जाने के बाद आज तक प्रभावित एक भी गांव का विस्थापन नहीं किया जा सका है। विस्थापन न होने के कारण इन गांवों में मकानों में दरारें पड़ने से ग्रामीणों को खतरे में साये में जीना पड़ रहा है। वहीं जमीन में भी भूधंसाव की समस्या आ रही है। वहीं अब झील का जलस्तर 825 मीटर से बढ़ाकर 830 मीटर तक करने के लिए सरकार ने टीएचडीसी को अनुमति दे दी है। जिसके बाद अब इन गांवों में स्थिति और विकट हो गई है। दिन में तो किसी तरह ग्रामीण रह लेते हैं, लेकिन रात में हल्की सी आहट से ही उनकी नींद उड़ जाती है।
आंशिक डूब क्षेत्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष सोहन सिंह राणा के अनुसार संयुक्त विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद भी गांवों का विस्थापन नहीं किया जा सका है। जिस वजह से हजारों लोगों की जान खतरे में है। सरकार को ग्रामीणों के जीवन की कोई परवाह नहीं है। संघर्ष समिति के अध्यक्ष सोहन सिंह राणा ने बताया टिहरी झील का जलस्तर बढ़ने से नंदगांव, कंगसाली, नौताड़, रामगांव, बटोला, पयाल गांव, स्यांसू, उप्पू, सरोट, डोबन, रमोल गांव, खांड, बड़ाखोली, नारगढ़, भटकंडा, गडोली, सांदणा, लुणेटा, भटकंडा, खांड गांव खतरे की जद में आ गए हैं।
वहीं गांवों में हो रहे लगातार धंसाव और उसके कारण घरों में आ रही दरारों से परेशान नंदगांव और लुणेटा गांव में ग्रामीणों ने बैठक कर आगामी चुनाव के बहिष्कार की बात कही है। उधर राड्स संस्था के अध्यक्ष सुशील बहुगुणा और ग्रामीणों ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद कहा कि झील प्रभावित गांवों में ग्रामीणों की स्थिति बेहद खतरे में है। यहां पर कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। उन्होंने कहा टिहरी बांध प्रभावित ग्रामीणों के मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है जिसके खिलाफ आवाज उठाई जाएगी।
इधर ग्राम भटकंडा के प्रधान प्रदीप भट्ट ने कहा कि ग्रामीणों का विस्थापन करने के बजाए सरकार झील का जलस्तर बढ़ाकर ग्रामीणों को मारने की तैयारी की जा रही है। सोहन सिंह राणा ने शीघ्र विस्थापन की मांग पूरी नहीं होने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है। इस अवसर पर कमला देवी, वृहस्पति देवी,बैशाखी देवी, चंडी प्रसाद आदि मौजूद रहे।