लोकायुक्त बिल पर जनता उदासीन
एक दिन बाकी, नहीं आया प्रवर समिति को कोई सुझाव
देहरादून । विधानसभा के पहले सत्र में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के प्रस्तुत दो विधेयकों स्थानांतरण तथा लोकायुक्त विधेयकों ,जिन्हे व्यापक विचार-विमर्श के लिये सरकार ने बिना विपक्ष की मांग की प्रतीक्षा किये, विधानसभा की प्रवर समितियों के हवाले कर दिया था, को लेकर जनता की प्रतिक्रिया भी अभी तक ठंडी ही रही है। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले ही नही,विपक्षी और पत्रकार समुदाय ने भी इन दो महत्वपूर्ण विधेयकों का लेकर कोई बहुत ज्यादा उत्सुकता या भागीदारी के संकेत नही दिये।
मुख्यमंत्री ने अपनी पीठ खुद ही थपथपाते हुए कहा था कि लोकायुक्त विधेयक की परिधि में उन्होने खुद को भी शामिल किया है । लेकिन आलोचकों का कहना था कि जैसे पिछली सरकार अपने प्रदेश में लोकायुक्त संस्था के गठन को लेकर लंबे समय तक केंद्र में लोकपाल की प्रतीक्षा की बात कहती रही,वैसे ही इस सरकार ने भी सदन में सर्वसम्मति से पारित होने से रोकने को विधेयक बिना किसी की मांग के प्रवर समिति के हवाले कर दिया है।
बहरहाल, विधानसभा की संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत के नेतृत्व वाली प्रवर समिति ने जनता को इन विधेयकों पर अपनी राय लिखित रूप में 21 अप्रैल तक सुझाव देने को कहा था। इसके लिये समिति ने अपने दो ईमेल एड्रेस जारी किये थे, लेकिन खबर है कि जनता और बुद्धिजीवियों या राजनीतिकों की ओर से लोकायुक्त विधेयक पर अभी तक एक भी सुझाव नही आया है।
हां, स्थानांतरण विधेयक पर दंपत्ति कार्मिकों को एक ही स्थान पर और एक स्थान पर पदस्थापना का समय कम से कम पांच साल रखे जाने के एक-दो सुझाव जरूर आये हैं जिनकी ओर नेता प्रतिपक्ष डाक्टर इंदिरा हृदयेश ने भी इंगित किया था। लेकिन सरकार लोकायुक्त विधेयक पर फंस गई लगती है क्योंकि या तो समिति सुझावों के लिये न केवल समय बढाये बल्कि इसके लिये समुचित प्रचार भी करें या फिर विधेयक को इसी रूप में सदन में रखे जिसे विपक्ष पास करने को आतुर दिख रहा है।