अब लगभग 3.5 करोड़ पाउंड (लगभग 300 करोड़ रुपये) हो गई
लंदन, प्रेट्र : ब्रिटिश हाई कोर्ट से पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है। विभाजन के बाद हैदराबाद के तत्कालीन सातवें निजाम के धन को लेकर पाकिस्तान के साथ चल रही दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई में कोर्ट ने बुधवार को भारत और निजाम के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। उस समय यह रकम करीब 10,07,940 पाउंड और नौ शिलिंग की थी जो अब करीब 3.5 करोड़ पाउंड (लगभग 300 करोड़ रुपये) हो गई है। यह रकम लंदन स्थित नैटवेस्ट बैंक पीएलसी में जमा है।
हैदराबाद के तत्कालीन सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान ने 1948 में उक्त रकम ब्रिटेन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहीमटूला को हस्तांतरित की थी। यह रकम नैटवेस्ट बैंक पीएलसी के उनके खाते में जमा है।
पाक की दलीलें : पाकिस्तान इस रकम पर दो दलीलों के आधार पर अपना दावा कर रहा था। पहली, सातवें निजाम ने यह रकम हथियार और पाकिस्तान की मदद हासिल करने के एवज में हस्तांतरित की थी। दूसरी, यह रकम भारत के हाथ में न चली जाए इसलिए हस्तांतरित की गई थी। इसके बाद पाक ने दो और दलीलें दी थीं।
सातवें निजाम ने भी किया था रकम पर दावा
हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद 1950 में सातवें निजाम ने इस रकम पर अपना दावा किया था। लेकिन हाउस ऑफ लॉर्डस ने उनका दावा खारिज कर दिया था। पाकिस्तान के सॉव्रिन इम्यूनिटी का दावा करने से केस की प्रक्रिया रुक गई थी, लेकिन 2013 में पाक ने रकम पर दावा करके सॉव्रिन इम्यूनिटी खत्म कर दी थी। जिसके बाद मामले की कानूनी प्रक्रिया फिर शुरू हुई थी। पाक सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई में सातवें निजाम के वंशजों और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जाह तथा उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह ने भारत सरकार से हाथ मिला लिया था।
रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस में ऐसे खारिज हुईं पाक की दलीलें
लंदन की रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस के जज जस्टिस मार्कस स्मिथ ने बुधवार को अपने फैसले में कहा, ‘धन पर सातवें निजाम का अधिकार था और अब सातवें निजाम के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले जाह भाइयों तथा भारत का धन पर अधिकार है।’ अदालत ने पाकिस्तान द्वारा हैदराबाद को हथियारों की आपूर्ति की बात तो स्वीकार की, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उक्त रकम के हस्तांतरण और हथियारों की आपूर्ति में संबंध का कोई साक्ष्य नहीं है। अदालत ने पाक की यह दलील भी मानी कि भारत के हाथों में जाने से रोकने के लिए यह रकम स्थानांतरित की गई होगी, लेकिन उन्होंने यह स्वीकार करने से इन्कार कर दिया कि रकम ट्रस्ट के लिए नहीं बल्कि सिर्फ पाकिस्तान के लिए थी।