UTTARAKHAND

संस्कृति मा खास छन हमारा लोकवाद्य कमल किशोर डुकलान ‘सरल’

संस्कृति,समाज कि पच्छ्याण होंद। उत्तराखण्डै संस्कृति भौत विविधता वाळि छ। हिमालयी क्षेत्र को यु प्रदेश उत्तराखंड यनो सांस्कृतिक प्रदेश छ जख बानि- बानी संस्कृति एक दगड़ि देखणों मिलदन। बोलें जांद कि कै बि राज्ये संस्कृति मा वे राज्य का वाद्ययंत्र बि भौत खास होंदन, य सच्चि बात छ।
कै बि मुल्का गाजा- बाजों देखी वे मुल्कै संस्कृति का बारा मा जाणकरि मिलि जांद। देखै जौ त वाद्ययंत्रु का बिना संस्कृति कि कल्पना अधुरि छ। असल मा वाद्ययंत्र ही छन जु उत्तराखण्ड का गीत-संगीत मा पराण प्रतिष्ठा करद।
देवभूमि उत्तराखण्ड मा लोकवाद्यों का माथम को पता यां से बि चलि सकद कि इख द्यो पुजै बिना लोकवाद्य कि होंदी नीछ। ये मुल्क देवता पुजणौ कति बानि का गाजा – बाजा बजाये जांदन जन, ढोल- दमौ,डौंर-थाळि,हुड़का-थाळि,घांड,घण्टा ,घड़ियाल, भंकोरा, रणसिंघा,शंख बजै कि द्यवता नचाये जांदन।
उत्तराखण्ड को लोकवाद्य ढोल एक यनु वाद्ययंत्र छ जै पर पूरु शास्त्र रंच्यूं छ। यांको मतलब यो छ कि उत्तराखण्ड मा ढोल वादन शास्त्र सम्मत छ। ढोल – दमौ यना वाद्ययंत्र छन जु छोटा – बड़ा, कारिजु मा बजाये जांदन।
ढोल बजाण वाळा कलावन्त बाजगि जो द्यवतौं नचाणा सल्लि बि होंदन तौं का हुनर को क्वी जवाब नीछ। ढोल का बोलु कि बात करे जौ त वूंकु विधान बि अर मिजाज बि भौत अनूठु छ। हमारा मंगल कारिजु मा ज्व बढ़ै बजाये जांद वे ताल सुणिकी पता चलि जांद कि कखि मंगल कारिज उर्यायूं छ। देबि द्यबतौं का तालु कि त बाती क्य करण। वूंमा धुयेळ चौरास को अपणो मिजान छ। ढोल का तालु का जणगूर सल्लि थरति गजे देंदन अपणि ढोल – दमौ का तालु से। मण्डाण लग्यूं हो त बजंतरि हि ना बलकन नचाणु कि रंगत अयीं रौंद।
ढोल – दमौ हमारा लोक का इना वाद्ययंत्र छन जौंमा कति ताल बजाये जांदन त कति बान्यू नाच बि ह्वे जांद। जन घुंड्या रांसो,मंडाड ताल का अलावा जागर,मण्डाण का दगड़ा- दगिड़ि ढोलो बजंतरि कति तरौं कि ताल अपणा ढोल बजांद। अपणो बाजु बजौंद – बजौंद येका दगड़ै ढोल वादक कई तरौं कि नृत्य मुद्रौं को बि प्रदर्शन करदन।
अजकाल संगीत अर वाद्ययंत्रु तैं ल्हेकि पूरि दुन्या मा भौत प्रयोग होणा छन। बानि बान्या वाद्ययंत्र बणणा छन रिकार्डिंग स्टूडियो बि अत्याधुनिक ह्वे गेनि ।अब मल्टीचैनल स्टूडियो को चलन शुरु ह्वेगे।ये मल्टीचैनल स्टूडियो मा कलाकार से जादा काम मशीन करि देंदन। इना वाद्ययंत्र बि छन जु स्विच ऑन करदै अफ्वी बजण लगदन। इलैक्ट्रानिक वाद्ययंत्रु का बाजार मा औण से कति वाद्ययंत्र अर ताल इकट्ठा एक हि वाद्ययंत्र आरगन कि ‘की-कंबिनेशन’ की सहायता से लगभग हू-बहू बजण लगदन।
गीत संगीत कि यीं चकाचक दुन्या मा भौत कुछ होंणू छ तौबि देवभूमि उत्तराखण्ड को लोकवाद्य ढोल – दमौ को आज बि क्वी तोड़ नी छ। यूं बाजौं का ताल क्य बोन तब। सुदि थोड़ि नाचदा होला द्यवता यूं बाजौं मा। यूं बाजों को माथम त सदानि रै पर हमुनै अपणा यूं बाजों का कलावंतु को मान ना करि सकि तबि यीं कला का कलावंत बिरूट ह्वेनि। अब फिर पूरि दुन्या मा जब यूं लोकवाद्यों को मान होण लगि त कलाकार बि फिर अपणा गौळाउंद ढोल- दमौं लटकौण लगिगेन वू बि बड़ा मान- सम्मान से।
अब त इनु वातावरण बणण लगिगे कि शायद ही क्वी जगा होलि जख बड़ा कार्यक्रम, मंचीय कार्यक्रम होणा होन अर उख ढोल – दमौ नि पौंच्छा होउनबलकन अब त बड़ि – बड़ि प्रतियोगिता ढोल दमौ वादन कि होणी छन। जनानि बि ढोल- दमौ बजौणी छन। ननतिन कलावंतु कि प्रतियोगिता होणी छन।
इबरि दौ पौड़ी भटिंन प्रकाशित धाद पत्रिका मा प्रकाशित लेख च।

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