मैं पूछता हूं-यह तीसरा आदमी कौन है? गुरबत से जंग कर रही दुनिया मौन है’
मनमीत
Contents
मैं पूछता हूं-यह तीसरा आदमी कौन है? गुरबत से जंग कर रही दुनिया मौन है’मुझे युद्धग्रस्त यमन में यतीम बच्चे उसी तरह रुलाते हैं, जैसे कश्मीर में खिड़कियों के पीछे छुपे बच्चों की मायूस नजरे इस उम्मीद से बाहर उजाले की तरफ देखती हैं, मानो कोई आयेगा और सब मुकम्मल कर देगा। सुलगता अफगानिस्तान हो या मस्टर्ड बम से जल भूने वियतनामी बच्चे। कुर्दों का कत्लेआम में जिस बच्ची की छाती से खून का फुव्वारा फूटा था या सीरिया के किसी कब्र में अपनी अब्बा अम्मी से लिपटी वो मासूम बच्ची। सभी सालों बाद अब खाक में तब्दील हो गये होंगे। उनके ऊपर गिराई गई मिट्टी में फूल खिल आये होंगे।पूंजीवाद महज किसी बड़े शहर में चमकता शॉपिंग मॉल, गगनचूंबी इमारतें और एक्सप्रेस वे भर नहीं है। हर माह की पहली तारिख को खातों में आने वाला वो महज कुछ हजार का बुलबुला भी नहीं है। गुरबत से जंग कर रहे परिवारों के ऊपर बीमारी, शिक्षा,सपने और महत्वकांक्षाओं का पहाड़ भर भी नहीं है। पूंजीवाद युद्ध का वो मैदान है। जहां पर एक तरफ होता है नफा और दूसरी तरफ नुकसान। इन दोनों के बीच होती है पूरी दुनिया। आप और हम। जनता और हुक्मरान। जरूरत और विलाशता। खुदगर्जी और अड़ियलपन। जिंदगी और मौत। पूंजीवाद वो बला होती है जो पिता और पुत्र के बीच भी प्रतिस्पर्धा की ऊंची दीवार खड़ी कर देती है।धूमिल ने कभी कहा था, ‘एक आदमी रोटी बेलता है, एक आदमी रोटी खाता है। एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है। वह सिर्फ रोटी से खेलता है। मैं पूछता हूं-यह तीसरा आदमी कौन है ? मेरे देश की संसद मौन है’। धूमिल शायद कुछ साल और जिंदा रहते तो निश्चित तौर पर लिखते कि ‘एक आदमी सीमा के इस पार रहता है। एक आदमी सीमा के उस पार रहता है। एक तीसरा आदमी भी है, जो कहीं यूरोप या अमेरिका में रहता है। जो न लड़ता है, न भिड़ता है और न ही कहीं दिखता है। बस धर्म के नाम पर हथियार बेचता है। मैं पूछता हूं-यह तीसरा आदमी कौन है? गुरबत से जंग कर रही दुनिया मौन है’।बच्चों की कब्रों के ऊपर खिल आई घास और फूलों के ऊपर फिर से कभी टैंक चलेंगे। उस घास और फूलो कों रौंदते हुये, वो फिर से कुछ नये मैदान तलाशेंगे। जहां कब्रो की नई बसावट बसाई जा सके। वो कब्रो को रंग बिरंगा कर देते हैं। ताकी दुनिया उससे आकर्षित हो। पूंजीवाद अजीम की ओर है। वो जानते हैं कि कब्रों के नीचे लेटे लोग और ऊपर चल रहे लोग। दोनों ही डरे और सहमे हुये हैं। दोनों की मौत हो चुकी है। दोनों ही अदम भर है। क्रांति अब इनके बस की बात नहीं।