POLITICS
भाजपा से टक्कर लेने के लिए महागठबंधन उत्तराखंड में टटोल रहा अवसर !
- हासिये पर जा पहुंचे छोटे दल दे रहे कांग्रेस से गठबंधन के संकेत
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । उत्तरप्रदेश सहित देशभर में हुए लोकसभा से लेकर विधानसभाओं के उपचुनावों में साझा जीत के बाद अब उत्तराखण्ड में भी छोटे राजनीतिक दल ख़याली पुलाव पकाने लगे हैं। जहाँ राज्य निर्माण के दौरान पांच विधानसभा सीटों से अब शून्य पर आ सिमटी यूकेडी जैसी पार्टी भी कहने लगी है कि गठबंधन होता तो वह भाजपा को हरा देते। हालाँकि उत्तराखंड की थराली विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को छोड़ सभी दलों को मिले वोटों की संख्या भी कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं। यदि सबने यहाँ साथ चुनाव लड़ा होता तो बाज़ी विपक्ष के हाथ होती।
गौरतलब हो कि थराली विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी मुन्नी देवी ने जीत तो दर्ज कर ली लेकिन वोटों का अंतर काफी कम था। भाजपा प्रत्याशी मुन्नी देवी ने कांग्रेस प्रत्याशी को को महज 1981 वोटों से हराकर जीत हासिल की। इस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी मुन्नी देवी शाह को कुल 25737 मत मिले, जबकि कांग्रेस के प्रो. जीतराम को 23756 मत प्राप्त हुए। जबकि भाकपा के कुंवर राम को 1034, उत्तराखंड क्रांति दल के कस्बी लाल को 1365, निर्दलीय बीरी राम को 557 मत मिले। थराली विधानसभा उप चुनाव में इस बार 705 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। वहीँ पोस्टल बैलेट से भाजपा को 120, कांग्रेस को 26 और भाकपा को एक मत हासिल हुआ, जबकि यहाँ भी चार मत नोटा को पड़े। इतना ही नहीं उक्रांद व किसी भी निर्दलीय को पोस्टल बैलेट में कोई मत नहीं मिला। इस उपचुनाव में कुल 53184 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जबकि पोस्टल बैलेट में 283 मतदाताओं ने मतदान किया। इसमें 151 मतदाताओं के पोस्टल बैलेट सही पाए गए और 132 पोस्टर बैलेट निरस्त किए गए।
विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आने के बाद विपक्ष ने अंकगणित लगाने के बाद बताया कि अगर चुनाव से पहले गठबंधन होता तो थराली उपचुनाव में कांग्रेस जीत दर्ज करती, हालांकि ये बयान यूकेडी और समाजवादी पार्टी के नेताओं के हैं। जिनकी विचारधारा उत्तराखंड में कांग्रेस से कहीं दूर तक भी नहीं मिलती है। वास्तव में यदि देखा जाय तो भाजपा विरोधियों के इस अंकगणित के पीछे तर्क इस बात का है कि माकपा प्रत्याशी को 1034 वोट मिले जबकि यूकेडी प्रत्याशी ने 1365 मत हासिल किये। वहीँ एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी को 587 वोट मिले हैं।
हालाँकि यह बात काफी हद तक सही है कि यदि इन सब भाजपा विरोधियों का चुनाव पूर्व गठबंधन हो पाता तो ये वोट कांग्रेस प्रत्याशी की तरफ शिफ्ट होते तो परिणाम की तस्वीर ही कुछ अलग होती। वहीँ इस चुनाव में सपा ने अपना उम्मीदवार ही नहीं उतारा जबकि यूकेडी के नेता कांग्रेस की तुलना में थोड़ा अलग सोचते हैं। अब विपक्ष की एक जैसी बयानबाजी को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एकजुटता के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि भाजपा के कुछ हवाई नेता अब कह रहे हैं कि विपक्ष के पास कुछ कहने के लिये बचा नहीं है, ऐसे में वे कुछ भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।