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रवीश कुमार के नाम खुला खत, मत कीजिये मौतों का विभाजन

  • हत्या किसी की भी हो वह मानवीय मूल्यों के खिलाफ है 
  • विचारधारा का विरोध हत्या तक पहुँचना किसी को स्वीकार नहीं

सतीश लखेड़ा 

रवीश जी, अपनी बात शुरू करने से पहले बता दूं कि सीपीएम, सीपीआई और माले के अनेक नेता और कार्यकर्ता मेरे अच्छे मित्र हैं।अनेक विश्वविद्यालय के सहपाठी हैं, कुछ पत्रिकारिता के समय बने, कुछ सामाजिक अभियानों में मिले अनेकों से अब राजनैतिक कार्यकर्ता होने के नाते परिचय हुआ। मैं वामपंथ को विचारधारा के रूप में लेता हूं। कमियों और खामियों पर कभी और चर्चा करूंगा जितनी मेरी समझ है। हत्या किसी की भी हो वह मानवीय मूल्यों के खिलाफ है और इन सबकी एक स्वर में निंदा बराबर होनी चाहिए। विचारधारा का विरोध हत्या तक पहुँचना किसी को स्वीकार नहीं।

रवीश जी, आपका चश्मा भी लाजवाब है मौत हत्या हमले और निंदा को अपनी सुविधा से देखता है । गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में कल मैंने आपको प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया में बोलते सुना और देखा । मैं एक महिला पत्रकार की हत्या के विरोध में एकत्र हो रहे पत्रकारों में सम्मिलित होने आया था। कमाल है, आपने गौरी लंकेश के कातिल, उसकी सोच और उसकी विचारधारा की तुरंत पहचान भी कर ली। पुलिस, कोर्ट- कचहरी, जांच एजेंसियां और अन्वेषी पत्रकारों को कुछ भी करने का मौका नहीं दिया। हो सकता है कि आपने इस शोक सभा को किसी पर हमला करने के अवसर के रूप में देखा हो।

कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। बेंगलुरु जहां हत्या हुई वहां कांग्रेस की सरकार फिर भी कोई राज्य सरकार पर सवाल नहीं उठा रहा है। कर्नाटक में कानून व्यवस्था का आलम यह है कि पिछले चार सालों में हुई 6500 हत्याओं में 2500 महिलाओं की संख्या है। मुख्यमंत्री कांग्रेस के सिद्धारमैया हैं।आपका कांग्रेस के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर भी समझ से परे है। कर्नाटक में ही पत्रकारों के साथ ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं, हो सकता है आप इस विषय की गहराई में नहीं जाना चाहते।

कर्नाटक में पिछले 4 सालों में बीजेपी और संघ विचारधारा के 20 से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है, सभी हत्याएं निर्मम वीभत्स तरीके से हुई। खैर आपको उन मौतों से कुछ नहीं लेना-देना। मगर यह जरूर कहना चाहूंगा कि केवल अपनी विचारधारा के मृतक पर आंसू बहाना समाज और परिवेश के लिये ठीक नहीं। हर मौत निंदनीय है, सभ्य समाज मे हिंसा का समर्थन नहीं हो सकता है।

मरने वाला पत्रकार किस विचारधारा का है, उस तरह की विचारधारा के शेष लोग ही उसका शोक मनाएंगे, विरोध करेंगे यह खतरनाक सोच है। केरल और पूर्वोत्तर में संघ के कार्यकर्ता निरन्तर वामपंथियों के निशाने पर है। निरन्तर हत्यायें जारी हैं। खुद केरल के मुख्यमंत्री विजयन एक संघ कार्यकर्ता की हत्या के आरोपी हैं। केरल का कुन्नूर इन हमलों में सबसे आगे है। मारे गये अनेक कार्यकर्ताओं में अनेक पत्रकार या लेखक थे किंतु उन्हैं किसी ने पत्रकार नहीं कहा जबकि दूसरी धारा ने बखूबी ये काम कर डाला। व्यक्ति की मौत, उसका काम और उसकी विचारधारा के बाद तय हो रहा है कि शोक मनाया जाय या नहीं।

आज सोशल मीडिया पर गौरी लंकेश, कलबुर्गी, पानसरे और दाभोलकर के नामों की खूब चर्चा है । हमारे प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने सैकड़ों ऐसी हत्याओं के ढेर से चार नाम ही पसन्द किये हैं। गौरी लंकेश की हत्या के कुछ ही घंटों में विचारधारा विशेष के साथियों ने सोशल मीडिया पर मोर्चा सम्हाल लिया। खासकर मोदी विरोधियों का सामान्य ज्ञान उफान पर था।

गौरी अपने पिता की तरह वाम विचारधारा की प्रचारक थी, सनातनी मूल्यों की घोर विरोधी थी, नक्सल समर्थक थी और उसी धारा का उनका लेखन था किंतु उनकी हत्या पर भी हमें उतना ही दुख है जितना आपको। यह कुकृत्य निन्दनीय और अस्वीकार्य है ।हत्या क्यो हुई ?अभी स्पष्ट नहीं हुआ है।

दाभोलकर की हत्या महाराष्ट्र में अगस्त 2013 में हुई तब राज्य में और केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी। दाभोलकर सभी धर्मों में फैले अंधविश्वास के विरोधी थे । कलबुर्गी की हत्या कांग्रेस शासित कर्नाटक में हुई और पानसरे लेखक थे, नेता थे और टोल टैक्स के खिलाफ अभियान चला रहे थे फिर भी इन तीनों की हत्याओं पर आपकी धारा के ज्ञान-धारी भाजपा, हिंदू संगठन और RSS को जिम्मेदार ठहरा देते हैं।

रवीश जी, काश! आपका हृदय केरल के प्रोफेसर टीएस जोसफ के लिए भी द्रवित होता। 2010 में जोसफ की हथेली काट दी गई थी, उन्होंने मोहम्मद साहब कथित तौर पर सवाल पूछा था। बाद में उनके कॉलेज ने उन्हें नौकरी से हटा दिया, अवसाद में उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी, इसी तरह केरल में ही प्रशांत पुरोहित की निर्ममता से हत्या कर दी गई वह गौ रक्षक दल के सक्रिय कार्यकर्ता थे और ऐसे ही मूदविदरी के साथ हुआ। तब वाम विद्वानों का ज्ञान, विरोध, तेवर, तर्क और क्रोध व्यक्त नहीं हुए क्योकि ये मृतक उनकी पसन्द के नहीं थे। मृतक के प्रति उसकी विचारधारा के आधार पर संवेदना व्यक्त करना, अपनी सुविधा से कानून की व्याख्या करना, लोकतंत्र के पहाड़े पढ़ना और सरकार को आरोपित करना खतरनाक प्रवृत्ति है।

दादा, आप तो अवगत हैं उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जोगेंद्र सिंह को उसके घर में ही जला दिया गया। सपा की सरकार थी, जागेंद्र ने मृत्यु पूर्व बयान दिया कि एक मंत्री के गुंडों ने यह सब किया है तब आपको जागेंद्र का पत्रकार होना ज्यादा अपील नहीं किया या उन्होंने शायद अपनी कलम से वाम विचारधारा की ज्यादा सेवा नहीं की थी इस पत्रकार के लिये वाम ब्रिगेड की मोमबत्तियां नहीं जली।

आप खुद बिहार से आते हैं सिवान में हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की निर्मम हत्या हुई लालू की पार्टी के नेता बाहुबली शहाबुद्दीन पर आरोप लगे और इन्हीं नेताजी पर जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष सीपीआई (एम एल) के नेता चंद्रशेखर की हत्या का भी आरोप है किन्तु राजदेव रंजन की हत्या भी वाम धारा के बुद्धिजीवियों को विचलित नही कर पायी। रवीश जी इस देश को ये तेरी वाली लाश, ये मेरी वाली लाश के श्मशान में मत बदलिये। मौतों को रंगिये मत। हत्या किसी की न हो इसी पर सोचा जाय।

(लेखक उत्तराखंड भाजपा के पूर्व प्रवक्ता और स्वतंत्र पत्रकार हैं )

devbhoomimedia

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