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एनएसए डोभाल की कूटनीतिक सफलता की फिर अग्नि परीक्षा

1890 मे चीन और इंग्लैंड के बीच जो संधि हुई उसको न भूटान मानता है न भारत

बीजिंग की बैठक में जरूर कोई अच्छी बात जरूर निकलेगी

गोपेश्वर से क्रांति भट्ट

भारत और चीन के बीच ” डोकलाम ” के बहाने उभरे सीमा विवाद के तनाव सम्बंधों में खिंचाव और तनाव दिखता है, पर बीजिंग में होने वाली विकसित राष्ट्रों की बैठक पर ” सकारात्मक माहौल ” बनने की अपेक्षा दोनों राष्ट्रों के बीच बनते भी दिखते हैं। एनएसए प्रमुख अजीत डोभाल की भारत के रवैये की प्रस्तुति तनाव को ढीला करने में महत्वपूर्ण भूमिका बनेगी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए । हालांकि डोभाल का राष्ट्रीय सुरक्षा गोपनीयता के बारे में पाकिस्तान की रवैये और उसकी चाल ढाल समझने पर बारीकी से पकड़ है, वहीँ चीन समेत अन्य राष्ट्रों के कूटनीति सम्बन्धो पर भी वे अच्छी पकड रखते हैं।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी प्रधानमंत्री सी पिं भले ही डोकलाम तनाव के बाद विदेश में सामान्य शिष्टाचार वश मिल चुके हैं पर आधिकारिक दृष्टि से जब एनएसए प्रमुख और भारत के अन्य अधिकारी जब आपस में बैठेंगे तो तनाव में ढील की उम्मीद की जानी चाहिए । डोभाल उत्तर पूर्व में भी अपने पूर्व सेवा काल में रह चुके हैं और सीमा मामलों . सुरक्षा मामलों के इफ एंड बट को परिणामों के अच्छी तरह जानते हैं इसलिए भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव में यह वार्ता महत्वपूर्ण होगी इस पर सकारात्मक उम्मीद की जा रही है ।

दरअसल डोकलाम मुद्दा कोई नया मुद्दा नहीं है । सीमा विवाद के मामलों में ” तू तडाक ” से ही काम नहीं चलता कूटनीति प्रयास और बैठ कर भी विवाद कम किया जाना भी कूटनीतिक सफलता मानी जाती है । बाहर से बैठकर ” दो दो हाथ करना ” की बात करना भले ही अच्छा लगता हो पर जिनके हाथों मे बडी जिम्मेदारी होती है वो अच्छी तरह समझते हैं कि अपने अपने राष्ट्रों का सम्मान भी रहे और कटुता भी न बढे इस कौशलता से किस तरह सम्बन्ध बने रहें एन एस ए प्रमुख भारत के इस कौशल में सफलता हासिल कर पायेंगे इस पर अच्छी उम्मीद की जानी चाहिए ।

डोकलाम विवाद नया नहीं है । 1890 मे चीन और इंग्लैंड के बीच जो संधि हुई थी उसको को न भूटान मानता है न भारत । भूटान स्वतंत्र राष्ट्र है उसका अपना स्वाभिमान है । भारत भूटान के विदेशी मामलों को एक दूसरे से हुई सहमति के आधार पर देखता है । इस लिए स्वाभाविक रुप से भूटान की सीमा सम्बन्धी चिंता भारत की भी चिंता है ।1890 की जिस संधि के आधार चीन डोकलाम को अपना बता रहा है उसका कोई आधार नहीं रह जाता । वह संधि इंग्लैंड और चीन के बीच थी । संम्प्रभु सम्पन्न भूटान के बीच नहीं ।उस संधि भारत भी नहीं मानता और भूटान भी नहीं । ल्हासा और चातुंग भूटान सीमा पर है । भूटान इसे अपना बताता है चीन डोकलाम में सडक बना है अपने बाजार के लिए एशियन कैरीडोर योजना के तहत । वह भी अपना सामान सडक के जरिये पूरे एशिया तक ले एक छत्र राज के रूप में।

1890 की जिस संधि और सीमांकन का आधार देकर चुम्बी घाटी को अपना बताता है उसे भूटान और भारत तर्क के आधार पर मानने कै तैयार नहीं है । भूटान डोकलाम के इ क्षेत्र को अपना बताता है । जब भूटान की विदेश नीति भारत देखता है तो स्वाभाविक रुप से भूटान की सीमा की चिंता भारत ही करेगा । एक और महत्वपूर्ण बात यह भी कि ” आजतक भूटान में चीन का कोई दूतावास नहीं है चीन अपनी अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति के तहत भूटान में भी अपना दूतावास पहले से चाहता है पर भूटान ने इसकी सहमति नहीं दी है। कुल मिला कर आज के दौर मे जब यह देश समृद्धि चाहता है सीमाओं पर शान्ति चाहता है ऐसे में बीजिंग की बेठक में कोई अच्छी बात जरूर निकलेगी । जो तनाव के स्थान पर शान्ति और आत्म सम्मान का आधार रखेगी ।

devbhoomimedia

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