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सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं, मरीज परेशान

अल्मोड़ा। पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाएं भगवान भरोसे चल रहीं हैं। अस्पतालों में डॉक्टर और तकनीकी स्टाफ नहीं है। उपमंडल का सबसे बड़ा अस्पताल गोविंद सिंह माहरा राजकीय चिकित्सालय रानीखेत लंबे अर्से से चिकित्सकों की भारी कमी से जूझ रहा है। हृदय रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी, जीडीएमओ समेत अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों के आधे से अधिक पद रिक्त हैं, तकनीकी स्टाफ का भी यही हाल है। चिकित्सालय सिर्फ रेफरल सेंटर बनकर रह गया है। मरीजों को इलाज के लिए बाहरी शहरों के अस्पतालों अथवा प्राइवेट चिकित्सालयों की शरण में जाना पड़ता है। गंभीर रोगियों और गरीबों को जान के लाले पड़ जाते हैं। पहाड़ों में चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधा आज भी पहाड़ जैसी बनी है।

रानीखेत का राजकीय चिकित्सालय उपमंडल का एकमात्र बड़ा अस्पताल है, पूरे उपमंडल के तमाम क्षेत्रों के अलावा बागेश्वर और गढ़वाल क्षेत्र से सैकड़ों रोगी उपचार के लिए यहां आते हैं, लेकिन दुर्भाग्य, चिकित्सालय में सुविधाओं का भारी टोटा बना हुआ है। लंबे अर्से से चिकित्सकों के आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हैं, अस्पताल में स्वीकृत 32 पदों में से मात्र 14 पदों पर ही डॉक्टर कार्यरत हैं। जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफीसर, हृदय रोग विशेषज्ञ, ईएनटी सर्जन, आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी और रेडियोलॉजिस्ट जैसे महत्वपूर्ण पदों पर एक भी डॉक्टर नहीं है। चिकित्सकों की भारी कमी और सुविधाओं के अभाव में चिकित्सालय सिर्फ रेफरल सेंटर की भूमिका निभा रहा है, रोगियों को भारी फजीहत झेलनी पड़ रही है।

मरीजों को हल्द्वानी अथवा अन्य शहरों में उपचार के लिए जाना पड़ता है, कई लोग प्राइवेट अस्पतालों में मोटी फीस चुकाकर इलाज कराने को विवश हैं। सबसे अधिक दिक्कतें गरीब रोगियों को उठानी पड़ती हैं। गंभीर रोगियों और दुर्घटना के घायलों को जान के लाले पड़ जाते हैं। प्रसव पीडि़त महिलाओं को भी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। रानीखेत के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीएस नेई ने कहा कि चिकित्सालय में विशेषज्ञ चिकित्सकों और तकनीकी स्टाफ के रिक्त पदों को भरे जाने संबंधी प्रस्ताव कई बार शासन को भेजे गए हैं, सभी प्रस्ताव शासन स्तर पर लंबित हैं।

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