UTTARAKHAND

प्रकृति और पारिस्थितिकी संतुलन कायम करने की आवश्यकता

लाक डाउन में बंद सामाजिक प्राणी

लाक डाउन में इंसानी हस्तक्षेप कम होने से प्रकृति फिर से हो रही समृद्ध

कमल किशोर डुकलान
लाक डाउन में इंसानी हस्तक्षेप कम होने से प्रकृति फिर से समृद्ध हो रही है। वन्य जीवों का मानव आबादी में बेखौफ भ्रमण इसका प्रमाण है। कोरोना वायरस के इस दौर में हमने देखा है,कि इंसानों का दखल बंद होने पर प्रकृति ने खुद को संभाल कर फिर से स्वयं को समृद्ध करना शुरू कर दिया है।
वैश्विक संक्रमण बचाव में पिछले 25 मार्च से सामाजिक प्राणी कहा जाने वाला इंसान जब घर की चारदीवारी में इन दिनों कैद है,वन्य प्राणी शहरों के भ्रमण पर हैं। वन्य प्राणियों का शहरों की तरफ आना इस बात का संकेत है कि उन्होंने सामाजिक प्राणियों इलाके में घुसपैठ की है, उनके ठिकानों पर कब्जा किया है, जिसे वे भूले नहीं हैं। मानव और वन्य जीवों के बीच सहजीवन का जो बंधन लुप्त हो गया था वह एक बार फिर लाकडाउन में प्रकृति के साथ संधि करता नजर आ रहा है। कोविड-19 की चपेट में आई भारत सहित सम्पूर्ण दुनिया की बहुत बड़ी आबादी बंदी के चलते घरों में कैद है। मानव गति के तमाम पहिए स्थिर हैं। गांव-देहात के गली-मोहल्लों से लेकर कस्बे, शहर, महानगर की तमाम सड़कें सन्नाटे की चादर ओढ़े बैठी हैं।
चौबीसों घंटे आपाधापी का पर्याय शहर सुप्तावस्था में हैं। विज्ञान ने भी साबित कर दिया हे, कि धरती पर मानव गतिविधियों की धमक ब्रह्मांड में भी महसूस की जाती है। यह धमक मानव को छोड़ कर धरती पर विचरण करने वाले हर प्राणी के लिए खतरे की घंटी है। बीते पचपन-साठ दिनों से खतरे की यह घंटी भी स्थगित है।
इन दिनों इंसानी हस्तक्षेप कम होने से प्रकृति फिर से समृद्ध हो रही है। वन्य जीवों का मानव आबादी में बेखौफ भ्रमण इसका प्रमाण है। कोरोना वायरस के इस दौर में हमें यह सीखने को मिल रहा है कि इंसानों का दखल बंद होने से प्रकृति ने खुद को संभाल कर फिर से स्वयं को समृद्ध करना प्रारंभ कर दिया है। वर्तमान समय में वन्य जीवों को प्रदूषण से निजात मिलना भी इसका एक प्रमुख कारण है। इससे साबित हो गया है कि सरकार ने जंगलों को सिर्फ कारोबार के मकसद से इस्तेमाल किया है। जानवरों के न पर्याप्त भोजन की चिंता की गई, न ही उनके अस्तित्व और पुनर्वास के बारे में विचार किया गया।
उत्तर भारत में मानव विकास की गाथा संभवत: सबसे पहले गंगा और यमुना नदी के बीच के भू-भाग पर ही लिखी गई होगी। यह पूरा भू-भाग अरावली और शिवालिक पर्वत शृंखला के बीच आता है। आजकल चल रहे धार्मिक धारावाहिक श्री बिष्णु पुराण में मनु द्वारा भगवान बिष्णु के आदेश पर सृष्टि की पुनःरचना करते हुए दिल्ली के आसपास की अरावली और शिवालिक पर्वत मालाओं के अस्तित्व की गाथा देखने को मिलती है। भगवान शिव द्वारा पृथ्वी पर जल प्लावन किया गया था।अरावली पर्वत शृंखला करीब सात सौ किलोमीटर तक फैली हुई है। यह संसार की प्राचीनतम पर्वत शृंखलाओं में से एक है। यह पर्वतमाला भारत के राजस्थान, हरियाणा, गुजरात के अलावा पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत से होकर गुजरती है।
अरावली के जंगलों में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां भी यहां पाई जाती थीं।
अरावली और शिवालिक पर्वत मालाओं में मुगल सम्राटों की शिकारगाहों के प्रमाण भी मिलते हैं। फिरोज शाह तुगलक के काल में यहां चार शिकार महलों- मालचा महल, कुश्क महल, भूली-भटियारी का महल और गालिब का महल के प्रमाण भी मिलते हैं।
दिल्ली के आसपास और उत्तर भारत की दूसरी प्रमुख पर्वतमाला शिवालिक शृंखला हैं। इसका विस्तार उत्तराखंड से लेकर नेपाल तक है। जिम कार्बेट नेशनल पार्क भी इसी इलाके में आता है। इस पर्वत शृंखला को सबसे युवा पहाड़ी शृंखला माना जाता है। इस पर्वत शृंखला को हिमालयी क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। इस क्षेत्र में जिराफ और दरियाई घोड़े जैसे अफ्रीकी जानवर पाए जाने के प्रमाण भी मिलते हैं। हाथी, गैंडा, हिरण, तेंदुआ, भालू, लंगूर, हंगुल, याक और लाल पांडा विभिन्न प्रजातियों के जन्तु पायें जाते हैं।
अरावली और शिवालिक पर्वत शृंखला के बीच के वन्य क्षेत्र का एक बड़ा भाग मानव बस्तियों ने पाट दिया है। बचे हुए हिस्से को मानव अपने खाद्यान्न के लिए इस्तेमाल कर रहा है। अरावली पर्वत शृंखला में वन्य प्राणियों की मौजूदगी नगण्य ही रह गई है। अब जबकि कोविड-19 में जानमाल के बचाव में लाकडाउन के दौरान वन्य प्राणी अपने आसरे की तरफ लौट रहे हैं, तो प्रत्येक सामाजिक प्राणी को भी सहअस्तित्व की अवधारणा और प्रकृति और पारिस्थितिकी से संतुलन कायम करने पर नए सिरे से विचार करना होगा।

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