पिछले सात-आठ महीनों से प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को वेतन न मिलना चिंता का विषय
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
विश्वव्यापी कोरोना महामारी ने जहां एक तरफ प्रगति की रफ्तार को धीमा किया वहीं दूसरी ओर समाज के कुछ वर्गों के समक्ष आजीविका की समस्या तक उत्पन्न कर दी। भारत का भविष्य बच्चों का सुनहरा भविष्य को संवारने वाले शिक्षक इस वैश्विक महामारी में आजीविका चलाने को मोहताज हो गए हैं।
कोरोना महामारी के संकटों के बीच विद्यालय में परिवेशीय शिक्षण पिछले एक वर्ष से बाधित होने के कारण प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों के समक्ष पिछले 7-8 माह से मानधन न मिलने के कारण आजीविका का संकट पैदा हो गया है। जिन शिक्षकों ने लम्बे समय से अपने अथक परिश्रम से विद्यार्थियों का सुनहरा भविष्य बनाया।आज इस कोरोना संक्रमण बचाव के प्रतिबंधों में अभिभावकों द्वारा नियत मासिक शुल्क जमा न करने के फलस्वरूप इन संस्थाओं के प्रबंधन तंत्र ने उनका साथ छोड़ दिया बल्कि इस आपदा की घड़ी में उनकी इस गंभीर समस्या को सुनने वाला तक कोई नहीं है।
समय-समय पर केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए चरण बद्ध लॉकडाउन से उत्पन्न स्थितियों के कारण स्कूल स्थानीय प्रबंध तंत्र ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए और शिक्षकों को उनके हाल पर छोड़ दिया।
विडंबना यह है कि क्षेत्र में कई शिक्षक संघ, छात्र संघ एवं प्रमुख दलों के प्रतिनिधि हैंैं परंतु इन्होंने भी कभी इनकी सुध लेने की जरूरत महसूस नहीं की। इस आपदा की घड़ी में इन प्राइवेट स्कूलों शिक्षकों की मूलभूत समस्याओं को शासन या प्रशासन तक पहुंचाने वाला कोई भी समाजसेवी या जनप्रतिनिधि नहीं है।आज निजी स्कूलों के शिक्षकों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो चली है। जो अपने परिवार की आजीविका चलाने में असहाय हो चुके हैं। जिन्हें जिला प्रशासन सहित सरकार की मदद की जरूरत है। पिछले अप्रैल माह से ही इन प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों ने लॉकडाउन के समय व वर्तमान में भी सभी निजी स्कूलों के शिक्षक निरंतर विद्यार्थियों की ऑनलाइन क्लासेस भी ले रहे हैं। जिससे एक आशा की उम्मीद जगी थी कि लम्बे समय से इन प्राइवेट स्कूलों में कार्यरत स्कूलों के अध्यापकों को उनका नियत मानधन मिलेगा जिससे उनका भरण पोषण हो सकेगा लेकिन ऐसी कहीं भी उम्मीद जगती नहीं दिखाई देती।
सरकार द्वारा भी अभिभावकों के दबाव में समय-समय पर फीस न लेने के आदेशों के कारण स्कूल प्रशासन को काफी जनाक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। कुछ जनप्रतिनिधि फीस लेने के संदर्भ में माननीय न्यायालय की शरण में गये जिस पर माननीय न्यायालय ने लाक डाउन अवधि में स्कूल प्रबंधन तंत्र से केवल ट्यूशन फीस लेने को कहां लेकिन अभिभावक विद्यालय को मात्र ट्यूशन फीस भी देने को राजी नहीं हो रहे हैं।
पिछले सात-आठ महीनों से प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को वेतन न मिलना वास्तविकता में चिंता का विषय है और स्वाभाविक भी है कि इतने महीनों से मानधन न मिलने से इन शिक्षकों की आजीविका पर संकट गहरा गया है।