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राष्ट्रप्रेम अनुपम साम्राज्य की रोशनी

दीपावली का प्रकाश पर्व सुख-समृद्धि, उत्सवधर्मिता की ओर गतिशील होने के साथ-साथ शिक्षा-जागरूकता के दीये,परिश्रम के ईंधन,कुशलता की बाती और राष्ट्रप्रेम की अग्नि से हमें रोशनी का अनुपम साम्राज्य लाना है।
कमल किशोर डुकलान
बचपन की दीपावली का स्मरण ध्यान में आ रहा है,कि जब हम दीपावली के दीये सजाते थे तो हम घर के हर अंधेरे छोर को ढूंढते थे और हर अंधेरे छोर को उजाला करने की हममें अधिक से अधिक हर्षपूर्ण होड़ लग जाती थी। सभी बच्चों में दीपावली के दिन एक प्रतिस्पर्धा रहती थी कि कौन ज्यादा अंधेरे भगाएगा,कौन ज्यादा दीये रोशन करेगा? हमारा संविधान भी हम सभी नागरिकों से यही आशा करता है कि हम अपने आसपास के अंधेरों का अंत करें।
खोज-खोजकर हर अंधेरे पक्ष को दूर करने और करवाने की जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिकों पर है। दीपावली का पर्व हमें वास्तव में गरीबी, अभाव, गंदगी, रोग इत्यादि की ओर सजगता के लिए प्रेरित करता है। समाज का हर अंधेरा पक्ष कुछ लोगों के भगाए नहीं भागेगा,यह व्यक्ति, समाज,सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज का हर अंधेरा पक्ष को भगाने के लिए ही हम जनप्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। चुने हुए प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी इसमें सर्वाधिक है,क्योंकि वे अंधेरों को भगाने के वादे के साथ ही कुरसी पर बैठते हैं या सत्ता में आते हैं। अगर जन-प्रतिनिधियों की निगाह अंधेरों पर नहीं पड़ती है,तो अगली बार चुनाव में उनके यहां से सत्ता का उजाला ओझल हो जाता है।

ऐसे लोग चुनकर आते हैं,जिन पर जनता को विश्वास होता है कि वे अंधेरा भगाएंगे। सोचकर देखिए,फूटे दीये कौन खरीदता है? ऐसा मिलावटी तेल दीयों में कौन भरना चाहता है,जो जलने में आना-कानी करें? एक-एक दीया,एक-एक बाती चुन-चुनकर ली और सजाई जाती है, तभी हमारी दीपावली साकार होती है। ठीक उसी तरह,लोकतंत्र में भी जन-प्रतिनिधि जब योग्यता के आधार पर चुने जाते हैं,तो वे अंधेरों पर टूट पड़ते हैं और खुशहाली के कर्णधार बन जाते हैं।
आज देश में जो हमें तरक्की नजर आती है,उसमें अनेक अच्छे चुने गए नेताओं का हाथ है। जब हम आजाद हुए थे,तब हम भारतीयों का औसत जीवन 60 साल भी नहीं था, आज हम बहुत आसानी से 90-100 साल जीने लगे हैं। मतलब,आजादी मिलने के बाद विकास की जो रोशनी फैली है,उसे कोई नकार नहीं सकता। कभी अन्न का भी अभाव था,तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.लाल बहादुर शास्त्री जी ने हफ्ते में एक समय का उपवास रखने की बात की थी। आजादी के शुरुआती दो दशकों में ही हमारी मेहनत रंग लाई और हम अन्न के अभाव से बाहर आने लगे। अभाव के ज्यादातर अंधेरों से हम बहुत दूर आ गए हैं और यही वजह है कि देश का आम नागरिक भी लोकतंत्र पर गाढ़ा विश्वास करता है।
दीपावली सुखद समीक्षा का भी समय है। रोशनी फैलाने के लिए सदा तैयार रहिए कि कोई अंधेरा बचने न पाए। भारत में यदि तमाम तरह की सांस्कृतिक,सामाजिक, भाषायी विविधताओं को कायम रखना है, तो लोकतंत्र से बेहतर व्यवस्था हो नहीं सकती। हमें देखना होगा कि हमारे हिस्से का लोकतंत्र कितना रोशन है? यहां हमारी या जरूरतमंदों की आवाज कितनी सुनी जा रही है? हम बहुत बुरे दौर से गुजरे हैं,जब कोरोना महामारी का भयानक अंधेरा हम पर मंडरा रहा था,पिछले वर्ष हम मन मसोसकर दीपावली मना पाए थे। वह दौर फिर न आए,यह सुनिश्चित करना चाहिए। ठान लीजिए,शिक्षा-जागरूकता के दीये, परिश्रम के ईंधन,कुशलता की बाती और राष्ट्रप्रेम की अग्नि से हमें रोशनी का अनुपम साम्राज्य लाना है।

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