आइये साहित्य के युग पुरुषों को याद करें
सुकुमार कवी सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल को किया याद
हिंदी साहित्य के लोकभाषा के राष्ट्रीय सम्मेलन होंगे
डॉ. बड़थ्वाल और पंत के नाम पर सूबे में बनेंगी शोध पीठ
डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल जी के ग्रंथवालियो का ढाई साल हुआ विमोचन
पीताम्बर दत्त बडथ्वाल हिन्दी अकादमी उत्तराखंड, देहरादून. द्वारा डॉ पीताम्बर दत्त बडथ्वाल जी की ग्रन्थावलियों के बिमोचन कौशल विकास योजना प्रेक्षाग्रह, महिला आई.टी.आई. सर्वे चौक , देहरादून में सम्पन्न हो गया। उत्तराखंड सरकार में वित्त एवं भाषा मंत्री श्री प्रकाश पन्त जी ने डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल जी के ग्रंथवालियो के विमोचन के मौके पर यह घोषणाएं की कि हिन्दी साहित्यकार डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के नाम पर शोधपीठ स्थापित करेगी साथ ही डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल जी के पैतृक निवास ग्राम स्थान पाली में उनके निवास का भी पुनरुद्धार करेगी।
वेद विलास उनियाल
कुछ समय पहले वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार कल्लोलजी के साथ सुमित्रानंदन पंतजी की स्थली कौसानी में जाने का सौभाग्य मिला था। वहां एक एक चीज को जी भर कर निहारा था। सब कुछ मन को भीगने वाला। लेकिन यही बात मन को कचौटती थी कि दुनिया के प्रकृति के इतने बडे कवि को हमने किस तरह भुला दिया है। यूरोप में वड्स्वर्थ और हमारे सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंतजी प्रकृति के अपार वैभव गूढता रहस्य, दर्शन को काव्य मे लाकर अमर हुए हैं। मगर हमारे देश में साहित्य की गंदी गुटबाजी ने और कुछ हमारे आलस्य ने सुमित्रानंदन पंतजी को वो आसन नहीं दिया जो हिंदी साहित्य के लिए ही गौरव बनता।
अजब तो यह कि इस पहाडी राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भी किसी भी सरकार को कहां ध्यान था कि कविवर को कैसे याद करें, और तो और सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन ने अपने पिता की कविताओं को न जाने कितनी बार पढा पर जिस कवि ने अमिताभ नाम दिया उनके स्मरण में शायद ही कहीं पर कुछ कहा हो। जबकि कौसानी की पंत विथिका में हरिवंश राय बच्चनजी और सुमित्रानंदन पंत की दुर्लभ तस्वीरे हैं । और भी संजोई हुई स्मरण की चीजेे, जो दो व्यक्तित्वों के प्रगाढ संबंधो का प्रतीक है।
बिल्कुल इसी तरह अक्सर कहा जाता है कि कबीर की सुध हजारी प्रसाद द्विवेदीजी ने ली और उन्हें फिर से लोकजीवन में चर्चित करने का श्रेय कुमार गंधर्वजी को है। मगर यह अधूरी व्याख्या है। इसकी वजह यही है कि हम हिंदी के प्रथम डी लिट डा पींताबंर दत्त बडथ्वालजी के साहित्य के योगदान से अपरिचित रहे। कबीर सहित भारतीय संत समाज और उसकी परंपरा के लिए जो काम वह करके गए हैं वह अनमोल है।मक पहल है कि कल हिंदी अकादमी उत्तराखंड की तरफ से पंतजी के जन्मदिन पर डा पीताबंर दत्त बडथ्वाल ग्रंथावली का लोकापर्ण किया गया। खुशी इस बात की कौशल विकास प्रेक्षागृह में साहित्य कला संस्कृति के रुझान वाले लोग उमडे। डा पीतांबर ग्रंथावली और नीरजा पर लिखी मीना अरोडा की एक किताब का विमोचन वित्त और भाषा मंत्री प्रकाश पंत ने किया। इस अवसर परआचार्य विष्णु दत्त राकेश, पद्मश्री लीलाधर जगूडीजी और मुंबई से आए जनकवि और पत्रकार वागीश सारस्वत को गौर से सुना गया।
साहित्य समारोह और गोष्ठियो में अमूमन पचास लोग भी आ जाए तो बडी बात लगती है। लेकिन कल के आयोजन में जिस तरह लोग उमडे उससे साहित्य कला, रचनात्मकता के लिए लोगों केे मन में कौतूहल, जिज्ञासा और ललक है। जन कवि अतुल कुमार, डा सुशील उपाध्याय, जितेंद्र ठाकुर , वीणा पाणी जोशी , मुनीराम सकलानी, उमा जोशी , कल्पना बहुगुणा सुप्रिया रतूडी. नित्यानंद मैठानी, सविता मोहन, नंद किशोर ढौंडियालआर पी ध्यानी, अंचलानंद जखमोला, मुकेश नौटियाल नंद किशोर हटवाल, डा देवेंद्र कुमार डा नागेंद्र प्रसाद ध्यानी पत्रकार निशिथ जोशी, राजेन्द्र जोशी, राजीव थपलियाल, वीरेंद्र पार्थ और भी कई नाम ।
साहित्य कला पत्रकारिता क्षेत्र के लोगो से सभागार भरा था। कविवर पंतजी और पीतांबर बडथ्वालजी को याद करने की यही शैली होनी चाहिए। अच्छा है कि प्रकाश पंतजी ने साहित्य और लोकभाषा के उत्थान और इस क्षेत्र में अपना योगदान देने वाले लोगो के पुण्य स्मरण करने के लिए आश्वासन देकर गए हैं। गढवाल और कुमाऊं विश्वविद्यालय में कवि पंत और डा बडथ्वाल के नाम पर पीठ बनाने का भी आश्वासन है। उम्मीद की जाती है कि हिंदी अकादमी इस दिशा में सच्चे संकल्पो के साथ आगे बढेगी। राज्य स्थापना के उददेश्य कुछ यही है कि हम अपने विकास के साथ साथ अपनी परंपरा साहित्य संस्कृति को भी अक्षुण रख सकें और गौरव महसूस करे। आने वाले समय के लिए कुछ तो छोड कर जाएं। सुकुमार कवि पंतजी का बचपन की एक दुलर्भ तस्वीर