बैकुंठ चतुर्दशी का पौराणिक मेला और प्रीतम के जागर

मेरीन ड्राइव की तरह बनाएंगे अलकनंदा का किनारा : डा. धन सिंह रावत
श्रीनगर में बनेगा एक अत्याधुनिक सभागार
वेद विलास उनियाल
अलकनंदा किनारे श्रीनगर रजवाड़ो की राजधानी के लिए जाना गया है। लेकिन शहर की पौराणिकता ऐतिहासिकता कला संस्कृति के कई प्रतीक हैं। शिव के कमलेश्वर मंदिर की मान्यता रही है कि संतान प्राप्ति के लिए दीपक लेकर रात भर खडी रहने वाली नारी की मनोकामना पूरी हुई है। यह मान्यता आस्था विश्वास युग युग से चली आ रही है। बैकुंठ चतुदर्शी के समय श्रीनगर का यह आलोक दिखता है। मान्यता है कि इसी मंदिर में राम ने शिव की पूजा की थी। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने उसी प्रसंग पर राम के प्रति कविता लिखी है।
श्रीनगर की यह भूमि माधो सिंह मलेथा को नमन करती है तो नाग पंथ यही पल्लिवित हुई है। बंगाल से आए बेरागी गोपीचंद का इकतारा भी यहीं बजा है। यही मोलाराम तोमर और चेतु की भव्य चिंत्रकारी इसके गौरव के साथ जुडी है। केबिनेट मंत्री धनसिंह रावत मंच पर ऐसी कुछ घोषणाएं कर गए हैं अगर वो जमीन पर उतरी तो श्रीनगर नए रूप में होगा। वास्तव में इस शहर की छंटा कुछ बदलनी चाहिए। बहुत संभावनाओं के साथ है ये शहर ।
बैंकुठ चतुर्दशी का मेला अब सात दिनों का होता है। इस मेले पर्व की पहली रात लोकगायक प्रीतम भर्तवाण के गीतों से सजी। कमलेश्वर मंदिर के प्रांगण में मानो पूरा श्रीनगर शहर उमड आया हो। उसे जागर सुनने थे लोक भडो नायको के पवाडा सुनने थे। ज्ञानुमाला भीमा कठैत की प्रेम गाथा का पंवाडा गायन। गजना का सुंदर लोक गीत मेले की छटा में अलग रंग में था। और एक बजे रात जब प्रीतम ने अंत में मां नारेणी दुर्गा का जागर सुनाया तो पंडाल भी झूमा संग संग लोक भी झूमे। ऐसी रात कभी कभी आती है।
उत्तराखंड की लोक संस्कृति में ढोल दमों को वापस लाने और उसे फिर से परंपरा में स्थापित कराने वाले प्रीतम मंच पर हों और ढोल न बजे । ढोल का स्वर नाद हुआ तो भारतीय लोककला मुखरित हो गई। भारतीय लोककला में पहाडी परिवेश में इस वाद्य जिसकी व्याख्या ढोल सागर में गूढता से की गई है, उसे कला रसिकों को जरूर जानना चाहिए। सुनना चाहिए। जीवन की लय से ढोल के स्वर का साम्य अद्भुत है। उन कला विद्या को नमन जिन्होंने संगीत की इन गूढ रहस्यों को हम तक पहुंचाया। और पूरा आदर इस लोक कलाकार के प्रति जिसने उस कला विरासत को फिर से इस तरह रवां कर दिया कि उत्तराखंड ही नहीं पश्चिम की दुनिया भी ढोल बजा रही है यहां तक कि जागर भी गाने लगी है। हमारे पंवाडे गोरे हमको सुना रहे हैं। प्रीतमजी ने कला की जो वर्षों साधना आराधना की है वह अब फलीभूत हो गई है। श्रीनगर शहर में वह जोगिया लहर नाथ पंथ की परंपरा पर गीत सुनाना नहीं भूले।
रजवाडों की कुल देवी राजराजेश्वरी, ज्वालपा के जागर , पांडव में दुशासन वध की कथा लिए जागरो को प्रीतमजी सुनाते गए लोग सुनते गए।
केवल धार्मिक या पौराणिक आधार नहीं उत्तराखंड की लोकगायकी और लोकवाद्यों का संजोयन इतना प्रभावी है कि लोगों को पांच पांच घंटे तक एक जगह पर स्थिर रख सकता है। वह भी पहाडों में जाते नवंबर की ठिठुरन भरी रात। भारतीय लोककला के पारखियों को इस ओर देखना चाहिए। इस गूढता इस आलोक इस प्रभाव को समझे बिना भारतीय लोक कला का अध्ययन अधूरा ही रहेगा। प्रीतम ने जखोली की प्रेम गाथा का पावडा भी सुनाया और प्रेम, खेती, लोक जीवन पर ढले गीत भी सुनाया। भारतीय सेना को समर्पित एक गीत भी लोगों के आग्रह पर सुनाया।
इस अवसर पर मंच संचालन उत्तराखंड के दो संस्कृतकर्मियों के सक्षम हाथों में है। डा. राकेश भट्ट और गणेश खुगशाल गणि का मंच पर आना किसी भी कार्यक्रम की सफलता का पर्याय हो जाता है। दोनों उत्तराखंड की लोककला संगीत साहित्य भाषा समाज, मुहावरों, रंगमंच हर विधा को समझते हैं। इसलिए कलाकार और श्रोता दर्शकों के बीच एक संवाद का माध्यम बन जाते हैं।
डा धन सिंह रावत ने कहा है कि श्रीनगर में अलकनंदा किनारा इस तरह बनाएंगे जैसे मुंबई में समुद्र किनारे मेरीन ड्राइव दिखता है। यह जगह पर्यटन के लिए देश भर में जानी जाएगी। श्रीनगर में सुरक्षा के लिए एक सप्ताह के अंदर 52 कैमरे लग जाएंगे। यहाँ एक अच्छे स्तरीय सभागार की जरूरत बहुत दिन से महसूस की जा रही थी । उम्मीद है श्रीनगर का अपना सभागार होगा।