सिखों के 10 गुरु जिन्हे दिया जाता है देवताओं का दर्जा
आज सिखों के गुरु ‘गुरु नानक देव’ का 550वां प्रकाश पर्व (Guru Nanak Dev Prakash Parv) है. सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक देव ने ही की थी। पंजाबी भाषा में लिखे उसके सूफी उपदेश, दोहे और कविताएं आज भी दोनों के लिए काफी प्रेरणादायक हैं। उन्हें कई भाषाओं (हिंदी, संस्कृत और फ़ारसी) का गहरा ज्ञान था. उन्हें कई कविताओं और दोहों की रचना की जिनका आज सिक्ख समाज ही नहीं बल्कि हिन्दू भी श्रवण करता है।
गुरु नानक देव जी
सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में तलवंडी नाम के एक स्थान पर हुआ था। उनके जन्म के बाद तलवंडी का नाम बदलकर ननकाना हो गया। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में स्थित है। नानक ने कर्तारपुर नाम का शहर बसाया था जो अब पाकिस्तान में मौजूद है। यही वो स्थान है जहां सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था।
गुरु अंगद देव जी
गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने खुद के दोनों पुत्रों को छोड़कर अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए चुना था। इनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था। गुरु अंगद देव को लोग लहिणा जी के नाम से भी पहचानते हैं। बता दें, अंगद देव जी ही पंजाबी लिपि गुरुमुखी के जन्मदाता हैं। लगभग 7 साल गुरु नानक देव के साथ रहने के बाद उन्होंने सिख पंथ की गद्दी संभाली। गुरु अंगद देव जी ने जात -पात के भेद से दूर लंगर प्रथा शुरू कि थी।
गुरु अमर दास जी
गुरु अंगद देव के बाद गुरु अमर दास सिखों के तीसरे गुरु बने। इन्होंने जाति प्रथा, ऊंच -नीच ,सती प्रथा जैसी समाज की कई कुरीतियों को खत्म करने में अपना अहम योगदान दिया था। गुरु अमर दास जी ने 61 साल की उम्र में गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु बनाकर लगभग 11 वर्षों तक उनकी सेवा की। उनकी सेवा और समर्पण को देखते हुए गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी। उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया और विधवाओं के पुनर्विवाह की अनुमति दी।
गुरु रामदास जी
गुरु अमरदास के बाद गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु बने। ये सिखों के तीसरे गुरु अमरदास के दामाद थे। इनका जन्म लाहौर में हुआ था। गुरु रामदास की नम्रता और आज्ञाकारिता को देखते हुए गुरु अमरदास जी ने अपनी छोटी बेटी की शादी इनसे कर दी थी। उन्होंने 1577 ई . में अमृत सरोवर नाम के एक नगर की स्थापना की थी, जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
गुरु अर्जुन देव जी
गुरु अर्जुन देव सिखों के 5वें गुरु हुए। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था। वह सिख धर्म के चौथे गुरु रामदास के पुत्र थे। जिन्होंने 1581 ई . में गद्दी संभाली थी। सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव का बलिदान सबसे महान माना जाता है। उन्होंने अमृत सरोवर बनवाकर उसमें हरमंदिर साहब (स्वर्ण मंदिर ) का निर्माण करवाया।
गुरु हरगोबिन्द सिंह जी
गुरु हरगोबिन्द सिंह सिखों के छठे गुरु थे। यह सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव के पुत्र थे। गुरु हरगोबिन्द सिंह ने ही सिखों को अस्त्र -शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया। वो खुद भी एक क्रांतिकारी योद्धा थे।
गुरु हर राय जी
गुरु हर राय सिखों के 7वें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . में पंजाब में हुआ था। गुरु हर राय जी सिख धर्म के छठे गुरु बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। गुरु हरराय ने मुगल शासक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद की थी।
गुरु हरकिशन साहिब जी
गुरु हरकिशन साहिब सिखों के आठवें गुरु थे। इनका जन्म 7 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था। इन्हें बहुत छोटी उम्र में ही गद्दी प्राप्त हो गई थी। गुरु साहिब ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी व्यक्ति उनकी मृत्यु पर रोयेगा नहीं।
गुरु तेग बहादुर सिंह जी
गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। वह सिखों के नौवें गुरु थे। गुरु तेग बहादर सिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था। जिसकी वजह से वो हिन्द की चादर भी कहलाए। दरअसल उनके समय में मुगल शासक जबरन लोगों को पकड़कर उनका धर्म परिवर्तन करवा रहे थे। जिससे परेशान होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास मदद के लिए पंहुचे।
उन्होंने पंडितों से कहा कि आप लोग जाकर औरंगजेब से कहें कि अगर गुरु तेग बहादुर इस्लाम धर्म अपना लेंगे तो वो सब भी इस्लाम धर्म अपना लेंगे। औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया और गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने तो उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटकर लटका दिया। इस तरह उन्होंने 24 नवंबर, 1675 को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया।
गुरु गोबिन्द सिंह जी
गुरु गोबिन्द सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु माने जाते हैं। उनका जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई . को पटना में हुआ था। वह नौवें गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे। उनको 9 वर्ष की उम्र में गुरुगद्दी मिली थी। गुरु गोबिन्द सिंह के जन्म के समय देश पर मुगलों का शासन था। उन्होंने अपने पिता का बदला लेने के लिए तलवार हाथ में उठाई थी। बाद में गुरु गोबिन्द सिंह ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया।