केदारनाथ आपदा की 8वीं बरसी : जब हजारों को बहा ले गई थी मंदाकिनी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो ।
जून २०१३ के दौरान उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर के आसपास कि मकानें बह गई । इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया
जून 2013 में, उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखंड पर केंद्रित एक मध्याह्न बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ, जो 2004 की सुनामी के बाद से देश की सबसे खराब प्राकृतिक आपदा बन गई। उस महीने हुई बारिश राज्य को आमतौर पर मिलने वाली बारिश से कहीं ज्यादा थी। मलबे ने नदियों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे बड़ा ओवरफ्लो हो गया। बाढ़ का मुख्य दिन 16 जून 2013 था।
हालांकि भारत में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा हुई, पश्चिमी नेपाल के कुछ क्षेत्रों और पश्चिमी तिब्बत के कुछ हिस्सों में भी भारी वर्षा हुई, जो उत्तराखंड को जलमग्न करने के लिए नदी प्रणाली के माध्यम से बह गई; इसलिए, ८९% से अधिक हताहतों की संख्या उस राज्य में हुई। १६ जुलाई २०१३ तक, उत्तराखंड सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, ५,७०० से अधिक लोगों को “मृत माना गया था।” इसमें कुल ९३४ स्थानीय निवासी शामिल थे।
पुलों और सड़कों के नष्ट होने से लगभग ३००,००० तीर्थयात्री और पर्यटक घाटियों में फंस गए । भारतीय वायु सेना, भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से ११०,००० से अधिक लोगों को निकाला।
बीते 8 सालों में केदारनाथ धाम की तस्वीर बदल गई है । पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल केदारनाथ में पुर्ननिर्माण का प्रथम चरण का कार्य पूर्ण हो चुके हैं और द्वितीय चरण के कार्य केदारनाथ धाम में चल रहे हैं, जिसमें धाम में आदिगुरू शंकराचार्य समाधी पुर्ननिर्माण के साथ ही शंकराचार्य की विशाल मूर्ति, तीर्थ पुरोहित आवास और घाटों के निर्माण का कार्य भी चल रहा है। यही नहीं, यात्रा की दृष्टि से देखा जाए तो तीर्थयात्रियों के खाने, ठहरने जैसी सुविधाओं को व्यवस्थाओं में सुधार हुआ. इससे साफ है कि बीते वर्षों में यात्रा पटरी पर लौटी, लेकिन कोरोना की मार से धाम में बीते दो वर्षों से सन्नाटा पसरा हुआ है।