- लंबे रूट को अधिक महत्व देने से आम जन में हुई कुछ भ्रांति
हरीश सती
अभी भारत सरकार के रेल मंत्रालय ने कर्णप्रयाग- बागेश्वर रेलमार्ग सर्वे के लिए मंजूरी दी। यह स्वाभाविक ही था क्योंकि ऋषिकेश से कर्णप्रयाग और टनकपुर से बागेश्वर रेलमार्ग की मंजूरी के बाद कर्णप्रयाग से बागेश्वर रेलमार्ग कभी न कभी बनना ही था।लेकिन भारत सरकार ने चारों धामों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की घोषणा और सर्वे की मंजूरी के बाद कर्णप्रयाग- बागेश्वर रेलमार्ग हेतु भी शीघ्रता से कार्य किया है। लेकिन इस मार्ग के सर्वे के मार्ग को बजाय पिंडर घाटी के महत्वपूर्ण एवं अत्यधिक निकट रूट को छोड़कर गैरसैण के नाम से घुमाकर लंबे रूट को अधिक महत्व देने से कुछ भ्रांति सी हो गयी है।
ध्यान देने वाली बात है कि उत्तराखंड की भावी राजधानी कहे जाने जाना वाला स्थान, जहां विधानसभा भवन का निर्माण हो चुका है, वह भराड़ीसैण में है। अब यदि ट्रैन गैरसैण से आती भी है तो भराड़ीसैण जाने के लिए बस या अन्य साधनों से पर्याप्त दूरी तय करनी होगी जो उस स्थिति में भी लगभग उतनी ही रहती जितनी यदि ट्रेन पिंडर घाटी होते हुए आदिबद्री होते लायी जाती। तो सीधा प्रश्न है कि पिंडर घाटी होते अत्यधिक निकट रूट को छोड़कर द्वारहाट, गैरसैण का लंबा रूट क्यों? पर्यटन, तीर्थाटन, आर्थिक और सामरिक दृष्टि से पिंडर घाटी जबकि कहीं अधिक महत्वपूर्ण और कई मामलों में तो अपार संभावनाएं लिए हुए एक अछूती घाटी है।
सामरिक दृष्टि से यह क्षेत्र सीधा चीन सीमा से लगा है। पिंडर घाटी का पूरा क्षेत्र अद्भुत हार्टिकल्चर की संभावनाओं वाला क्षेत्र है। यदि यह ट्रेन पिंडर घाटी से आती है न केवल बेहद कम लागत से बनेगी अपितु कर्णप्रयाग से बागेश्वर जाने का समय भी कम लगेगा। जिससे पिथौरागढ़ और बागेश्वर के दूरस्थ लोगों की कर्णप्रयाग होते हुए देहरादून जाने में अधिक सुविधा रहेगी। वैसे भी गैरसैण का महत्व उत्तराखंड में मध्य में राजधानी के निमित्त ही था जी अब भराड़ीसैण हो गया है। जबकि पिंडर घाटी उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान नंदादेवी राजजात की मुख्य मार्ग और राजजात स्थलों को समेटे है।
यदि रेलमार्ग पिंडर वैली से गुजरता है तो रूपकुंड, बेदिनी बुग्याल,आली बुग्याल, देवराडा नंदा देवी मंदिर, लोहाजंग, वाण का लाटू देवता ,पिंडारी ग्लेसियर ,ग्वालदम, महामृत्युंजय महादेव बधाण गढ़ी जैसे दसियों महत्वपूर्ण धार्मिक- तीर्थाटन स्थल एवं घेस ,हिमनी , वाण, बांक, मुन्दोली ,देवस्थली,मानमती, लोल्टी, पार्थ,डूंगरी जैसे सैकड़ों पर्यटन की दृष्टि से अलौकिक स्थल रैल नेटवर्क से या तो जुड़ जाएंगे या बिल्कुल एक दो घंटे की दूरी में आ जाएंगे, जो भारत क्या विश्व के सबसे शानदार तीर्थाटन और पर्यटन क्षेत्र में शामिल होकर उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को नए आयाम दे सकते हैं।ये क्षेत्र बागवानी और साहसिक पर्यटन का तो स्वर्ग ही हो सकता है।
यदि उत्तराखंड क्रांति दल के अधिक जोर देने से गैरसैंण ट्रैन ले जाना जरूरी ही है तो वह आदिबद्री से सूरंग से आसानी से ले जायी जा सकती है।लेकिन इसके लिये भारत और उत्तराखंड के महान सांस्कृतिक धरोहर के क्षेत्र पिंडर वैली को बायपास करके रेलमार्ग का वर्तमान मार्ग से सर्वे,थोड़ा पाने के लिए अधिक को खोने की समझ दिखती है।।