UTTARAKHAND

सुसम्पन्न,सामर्थ्यवान भारत के लिए स्वदेशी अपनाना है जरुरी

वायरस के कारण दुनिया के कई देश अपनी प्रगति की पटरी से बहुत नीचे उतरे 

विश्व के कई देश कोरोना संक्रमण बचाव के लिए लग रहे प्रतिबंधों पर भारत की कर रहे हैं प्रशंसा 

कमल किशोर डुकलान
चीनी वायरस से पैदा हुई परिस्थितियों ने भारत सहित विश्व के सभी देशों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है भारत में भविष्य की योजनाएं क्या होनी चाहिए। वर्तमान समय में यह सोचना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है, इस वायरस के कारण दुनिया के देश अपनी प्रगति की पटरी से बहुत नीचे उतर चुके हैं। विकास की पटरी पर आने के लिए विश्व के सभी देश मंथन की मुद्रा में हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। हालांकि कोरोना वायरस की अवधि के दौरान भारत की सरकार और भारत की जनता लाक डाउन के कारण वर्तमान समय में जिस अभूतपूर्व साहस का परिचय दे रही है, उससे विश्व के कई देश कोरोना संक्रमण बचाव के लिए लगाते गये प्रतिबंधों का भारत की प्रशंसा कर रहे हैं। 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश ने संपन्न राष्ट्रों के लिए एक आदर्श का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसी कारण आज अमेरिका सहित विश्व के अनेक देश भारत की राह का अनुसरण करने की भूमिका में हैं और कुछ राह पकड़ रहे हैं।
किसी भी देश को सुसंपन्न और सामर्थ्यवान बनाने में स्वदेशी भाव का बहुत बड़ा योगदान होता है। वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता महसूस की जाने लगी है। अपने बाजार को दूसरे देशों के हवाले करने से उस देश का आर्थिक आधार मजबूत होता जाएगा, लेकिन अपना खुद का देश बहुत पीछे चला जाएगा।
भारत पुरातनकाल में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर था। गांव खुशहाल थे। सामाजिक व्यवस्था एक दूसरे पर अवलंबित थी। इसी अवलंबन के भाव के कारण ही हर परिवार की व्यवस्थाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं। जिस कारण शहर ही नहीं अपितु गांव भी आत्मनिर्भर थे। आज देश को पुरातनकाल के पूर्ण रुप से आत्मनिर्भर भारत के भाव यानी स्वदेशी भाव की बेहद आवश्यकता है।
प्राचीन समय में भारत की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ होने का एक आधार यह भी था कि भारत के गांवों में कृषि एक ऐसा उद्योग था, जिस पर गांव ही नहीं शहरों की भी व्यवस्थाएं होती थीं। इसके अलावा लगभग हर घर में कुटीर उद्योग जैसी व्यवस्था संचालित होती थी। आज के समय में यह सारी व्यवस्थाएं चौपट हो गई हैं। जिन्हें फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है। यही स्वदेशी का भाव है और यही भारत की आत्मनिर्भरता का एक मात्र रास्ता भी दिखता है। वर्तमान में अमीर और अमीर की धारणा प्रचलित होती जा रही है, गरीब और ज्यादा गरीब होता जा रहा है। हम आत्मनिर्भरता की बजाय दूसरों पर ज्यादा आश्रित होते जा रहे हैं। आज ऐसी स्थिति होती जा रही है,कि मानव दूसरों के सहयोग के बिना खाना भी नहीं खा पा रहा है। हमारा जीवन धन केंद्रित होता जा रहा है। जीवनयापन के लिए धन भी जरूरी है,यानी पैसा आज भूख मिटाने का पर्याय बन गया है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि हम एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते हैं, जिसमें देश का गरीब से गरीब व्यक्ति भी यह अनुभव कर सकें कि भारत उनका अपना देश है। महात्मा गांधी जी का चिंतन हमेशा से ही स्वदेशी भाव में निहित है। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया और इसके लिए आजादी के लिए चाहे वो 1942 का असहयोग आंदोलन हो या फिर नमक सत्याग्रह सभी में गांधी जी स्वदेशी भाव के प्रति देश को जगाने का काम किया। गांधीजी गाय माता को ग्रामीण जीवन की समृद्धि का आधार भी मानते थे। लेकिन सवाल यह आता है कि जिस भारत की कल्पना महात्मा गांधी ने की थी, क्या भारत उस दिशा की ओर कदम बढ़ा रहा है-?इसके पीछे का एक ही कारण है,कि आजादी के बाद अंग्रेजों से हस्तांतरित भारत की सरकारों ने जो भी देश में लघु और कुटीर उद्योगों की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण वे धीरे-धीरे नष्ट होते चले जिससे गांव के लोग आजीविका के लिए बाहर मजदूरी करने के लिए पलायन करने लगे और गांव खाली होते चले गये। हालांकि वर्तमान भारत सरकार ने देश की जनता के दिलों में स्वदेशी भाव का सूत्रपात किया है। लघु और कुटीर उद्योग जो पिछली सरकारों की अनदेखी के कारण जो समाप्त हो गये थे वर्तमान सरकार ने उन लघु और कुटीर उद्योगों की पुनर्स्थापना करने की ओर देशवासियों का ध्यान केंद्रित किया है। इसका यही निहितार्थ निकाला जा सकता है कि ग्रामीण व्यक्ति अब अपने गांव में ही आत्मनिर्भर भारत का सपना सकार करें।
स्वदेशी के विचार को जीवन में धारण करने से जहां हम स्वयं मजबूत होंगे, वहीं गांव, शहर और देश भी स्वावलंबन की दिशा में एक सार्थक कदम बढ़ाएगा। यही देश की समृद्धि का रास्ता भी है। आजादी के 72 साल ही सही, लेकिन अब लगने लगा है कि हम वास्तविक स्वतंत्रता की तरफ कदम बढ़ाने की ओर प्रवृत्त हुए हैं। अगर स्वदेशी के भाव पर यही जोर आजादी मिलने के बाद ही दिया जाता तो आज देश की तस्वीर कुछ और ही होती। वास्तव में महात्मा गांधी के सपनों का भारत ही होता। खैर… कहते हैं कि जब जागो तभी सवेरा। वर्तमान समय भारत का नागरिक और भारत सरकार स्वदेशी के प्रति जाग चुकी है, जिसे जागरूक नागरिक के नाते आत्मसात करना होगा।

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