क्या भाजपा सरकार अपने लोकायुक्त बिल से खुद ही घबरा गई !
सबसे बड़ा सवाल : न विपक्ष की आपत्ति और कोई व्यवधान फिर क्यों रुका !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून । उत्तराखण्ड राज्य को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए राजनीतिक सभी दलों के तरह-तरह के कसीदे एवं साथ ही वायदे सामने आते रहे हैं। 17 वर्षों में कांग्रेस, भाजपा के अलावा उक्रांद, बसपा ने भी इसी भ्रष्टाचार के मामले को लेकर सदन और सड़क पर अपना-अपना राग खूब अलापा। परन्तु धरातल पर भ्रष्टाचार के खात्में का कोई अंकुर भी फूटता नजर नहीं आया। अब मौजूदा भाजपा सरकार की ओर से राज्य के विधानसभा सत्र के दौरान सदन में सरकार द्वारा उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक 2017 को पटल पर जरूर रख दिया गया लेकिन सदन के भीतर विपक्ष का इस विधेयक को लेकर बेहद नरम रूख होने के बाद भी उसे पूरे चार माह के लिए प्रवर समिति को सौंपा जाना लोगों के गले नहीं उतर रहा है।
अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हुए चौथी निर्वाचित विधानसभा के प्रथम सत्र के अंतिम दिन भोजन अवकाश से पूर्व सदन में जब राज्य सरकार की ओर से संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक 2017 को पटल पर रखा तो मामले से संबंधित विषय पर संसदीय कार्यमंत्री इन्दिरा हृदयेश ने विपक्ष की तरफ से दिये गये संशोधन प्रस्ताव को वापस लेने का अनुरोध सदन में किया तथा कहा कि सरकार चाहे तो यह विधेयक पारित करा ले।
मुख्य बात यह है कि जब नेता प्रतिपक्ष की ओर से उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक को पारित कराने में कोई व्यवधान अथवा ठोस आपत्ति नहीं जताई गयी तो आखिर सरकार ने महत्वपूर्ण इस विधेयक को एक माह की लम्बी अवधि के साथ प्रवर समिति के सुपुर्द क्यों कर दिया? यह माना जा रहा था कि राज्य सरकार ने प्रदेश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक को सदन में हर हालत में पारित कराने की तैयारी की हुई थी, लेकिन विधेयक को चार माह तक टालने का मामला किसी भी प्रकार से गले नहीं उतर रहा है।
गौरतलब है कि इस महत्वपूर्ण विधेयक के पारित हो जाने के बाद भ्रष्टाचार के किसी भी संभावित मामले को लेकर उसके दायरे में छोटे शासक से लेकर विधायक, मंत्री के साथ ही मुख्यमंत्री भी आ जाएंगे और सारे अधिकार सीधे तौर पर लोकायुक्त को ही होंगे। यह भी प्रावधान विधेयक में बताया जा रहा है कि यदि किसी भी व्यक्ति अथवा शिकायत कर्ता द्वारा गलत सूचना दी गयी तो उस झूठी शिकायत करने वाले के खिलाफ भी विधेयक में एक साल की सजा का प्रावधान है।