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परंपरागत नौलों पर जलसंरक्षण की बड़ी योजनाओं की बजाय देना होगा ध्यान

ज्योत्सना प्रधान खत्री और शालिनी पाठक की रिपोर्ट

पूरे हिमालय में विशेषकर उत्तराखंड की बात करें तो पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों में जल संकट ज्यादा है। टिहरी की हिंडोलाखाल पट्टी, रुद्रप्रयाग और चमोली की तल्लानागपुर, चोपता बेल्ट में बड़ा जल संकट बना है। वहीं अल्मोड़ा में राष्ट्रकवि सुमित्रानंदन पंत के पैतृक गांव में कत्यूरी शासकों के समय में बना नौला पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड में 500 वर्ष पूर्व से मौजूद परंपरागत ज्ञान आधारित जल संरक्षण की विधा को दर्शाता हुआ यह नौला सरकारी मशीनरी की उपेक्षा को झेल रहा है।

गणानाथ वन रेंज अन्तर्गत परियोजना के चयनित वन पंचायत स्यूंनरा कोट में अपने सहयोगियों भुवन चन्द्र पांडे, पंकज सिंह कपकोटि व वन बीट अधिकारी गणेश आर्य के साथ पुन: बैठक में जाने का मौका मिला। बैठक में दो नए महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन करके औऱ माइक्रोप्लान के लिए आवश्यक सूचनाए एकत्रित करने के बाद में ग्राम में ट्रांजेक्ट वॉक किया। यह गांव राष्ट्रकवि सुमित्रानंदन पंत जी का पैतृक गांव है। उनका लालन-पालन कौसानी, उनके ननिहाल में हुआ जिसका हर साहित्य में उल्लेख मिलता है, लेकिन पैतृक गांव स्यूंनरा कोट आज भी उपेक्षित है।

इसके साथ ही गांव में गुप्त व कत्यूरी शासकों के समय के अवशेष हैं जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद पुरातत्व विभाग की उपेक्षा झेल रहे हैं। पुरातत्व विभाग इनकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। जबकि इसके लिए ग्रामीणों ने कई बार पत्र भी लिखा है। गांव में पंत जी के पारिवारिक सदस्य ललित प्रसाद पंत जी के प्रयास से स्मारक के लिए एक नाली भूमि का दान किया गया है। वर्ष 2011-12 में सोमेश्वर के तत्कालीन विधायक अजय टम्टा (वर्तमान में केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री) द्वारा स्वीकृत विधायक निधि 75000 रुपये से स्मारक की आधारशिला रखी गई है, लेकिन धन के अभाव से इसका काम रुका हुआ है। ललित प्रसाद पंत ने बताया कि इस स्मारक स्थल पर एक पुस्तकालय भी पंतजी की स्मृति में बनाया जाना है, जिसके लिए वो प्रयासरत हैं।

स्मारक स्थल से नीचे प्राचीन शिल्पकला को दर्शाता पंत नौला भी जीर्ण शीर्ण मिला, जो एक विशेष शैली से निर्मित ऐतिहासिक नौला है। तस्वीरों से स्पष्ट इस शैली को जाना जा सकता है जो कि आज दुर्लभ हैं। सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से निवेदन है कि पहाड़ की इस पुरातन व ऐतिहासिक कलाओं के संरक्षण के प्रयास किए जाएं जिससे आने वाली पीढ़ियों को अपनी परंपरा व ऐतिहासिक संस्कृति पर गर्व हो।

अल्मोड़ा जिले में स्थित एेतिहासिक पंत्युरा नौला/ स्युनाराकोट नौला- फोटो- शालिनी पाठकपंत्युरा नौला, स्युनाराकोट नौला अल्मोड़ा शहर से 20 किलोमीटर दूर पातलीबगड़ – विजयपुरपाटिया मोटर मार्ग स्थित स्यूनाराकोट गांव में है। यह गांव कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली रहा है। कला की दृष्टि से यह नौला कुमाऊं क्षेत्र के नौलों में सर्वश्रेष्ठ है। इसके गर्भगृह में जलकुंड निर्मित है और भीतरी दीवारें अलंकृत हैं।

देवालय वास्तुशिल्प के समान ही अलंकरण के लिेए विभिन्न पट्टियों जैसे- खुर, कुम्भ, कलश, कपोतालि, कर्णिका एवं अंतराल का प्रयोग जलकुण्ड के ऊपर किया गया है। गर्भगृह की भीतरी दीवारों में विष्णु के दश अवतारों का अंकन किया गया है। नौले की भीतरी छत वृत्ताकार निर्मित है, जिसमें देव आकृतियां बनी हैं।

नौले के बाहरी भाग में चारों दिशाओं में अर्धमंडप निर्मित हैं, जिनकी दीवारें देव आकृतियों से अलंकृत हैं। ये मंडप संभवतः धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बनाए गए होंगे। नौले के प्रवेश द्वार के ऊपर नव ग्रहों का अंकन किया गया है। मान्यताओं के अनुसार इस नौले का निर्माण बृहष्पति पंत नामक व्यक्ति ने करवाया, जो गंगोलीहाट क्षेत्र के थे। कला की दृष्टि से यह लगभग 14 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होता है और हमारे गौरवशाली अतीत को प्रतिबिंबित करता है। लेकिन उचित रखरखाव नहीं होने से ये नौले धीरे-धीरे समाप्त होने को है। यदि समय रहते इनका संरक्षण न किया गया तो ये हमेशा किताबों में ही देखने को मिलेंगे। हुजूर चाल खाल के साथ इन नौलों की सुध ली जाती तो न केवल पानी के स्रोत की उपलब्धता होती अपितु गौरवशाली अतीत की यादें भी।

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