परिवर्तन यात्रा कहीं शक्ति परीक्षण तो कहीं अंतर्कलह की शिकार
नेतृत्व को लेकर भाजपा में भारी खेमेबंदी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून । भाजपा ने परिवर्तन यात्रा के माध्यम से पार्टी अध्यक्ष अमितशाह की उत्तराखण्ड में दो-दो रैलियां कराकर चुनावी बिगुल तो फूंक दिया लेकिन विधान सभा चुनाव में पार्टी की ओर से नेतृत्व को लेकर पार्टी के भीतर अंर्तकलह जारी है। इसका परिणाम यह निकाला कि एक दूसरे की टांग खीजनें के फेर में पार्टी के अध्यक्ष अमितशाह की दोनों रैलियों से रंगत गायब रही। विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से नेतृत्व को लेकर अब भी खेमेबंदी जारी है। खुद पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर पार्टी आलाकमान ने समय रहते इसका कोई ठोस उपाय नही किया तो उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में इसका भाजपा को खामिजाया भुगतना पड़ सकता है।
उत्तराखण्ड में राज्य के चैथे विधानसभा आम चुनाव की चुनाव आयोग आयोग अगने माह किसी भी तारीख को घोषणा कर सकता है। जिसे देखते हुए भाजपा और कांग्रेस ने अपनी चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है। इसी परिपेक्ष्य में उत्तराखण्ड में हरीश रावत सरकार की उपलब्धियों को जनजन तक पहुँचाने के लिए सतत संकल्प यात्रा की शुरूआत की है,तो वहीं भाजपा ने परिवर्तन यात्रा प्रदेश भर में शुरू कर दी है। किन्तु भाजपा की परिवर्तन यात्रा पर आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से नेतृत्व करने के लिए बनी खेमेबंदी पलीता लगाने का काम कर रही है। जिसके चलते कहीं परिवर्तन यात्रा कहीं विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों के शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन रही है तो कहीं पार्टी की अंर्तकलह का शिकार बन रही है।
जबकि भाजपा ने परिवर्तन यात्रा उदेश्य हरीश रावत को उत्तराखण्ड के सत्ता से बेदखल करने के लिए जनजन तक जाकर भाजपा की नीतियों का प्रचार प्रसार करना था। परिवर्तन यात्रा के माध्यम से भाजपा ने उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में पार्टी अध्यक्ष अमितशाह की रैली कराई जोकि फ्लॉप शो साबित हुई। भाजपा ने दावा किया था कि अमितशाह की रैली में सत्तर हजार पार्टी कार्यकर्ताओं के आने की उम्मीद है। किन्तु रैली में पांच सात हजार से अधिक लोगों की भीड़ नही जुट पाई। यही हाल अमितशाह की अल्मोड़ा रैली का भी हुआ। यहां भी रैली पार्टी की अंर्तकलह की भेंट चढ़ती नजर आई। जबकि हरीश रावत की सतत विकास यात्रा में उमड़े जनसैलाब ने चकराता जैसे इलाके में पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। वहीँ उपर से गैरसैंण के विधानसभा सत्र में भी भाजपा ने गायब हो कर कांग्रेस की हरीश रावत सरकार को घेरने में विफल रही।
खुद पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर टांगखीच राजनीति जारी है। डा निशंक व खण्डूडी के खेमे में इस मामले में आमने सामने थे ही वहीँ पार्टी में कांग्रेस के बागियों के कारण और फजीहत इसलिए हो रही है कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ता व नेता इनको अंगीकार नहीं कर पा रहे हैं वहीँ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। जबकि भगत सिंह कोश्यिारी का झुकाव किस ओर होगा यह भी पार्टी के भीतर इस समय यक्ष प्रश्न बना हुआ है। सूत्रों का कहना है कि इस समय उत्तराखण्ड भाजपा अंदरूनी तौर पर कई धड़ों में बंटी है। यदि पार्टी आलाकमान से समय रहते पार्टी के नेताओं को एक जुट करने के लिए को रास्ता नही निकाला तो इसका बड़ा खामियाजा भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।