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कुटुंब की अवधारणा परिष्कृत से ही भारत विश्व बनेगा -भागवत

कमल किशोर डुकलान
देवभूमि मीडिया ब्यूरो। कुटुंब में समाज मानवता व राष्ट्र को समर्पित करने की चिंता निहित है। संयुक्त परिवार धर्म का आचरण एवं परस्पर जोडऩे की शिक्षा देता है।
आज भारतीय कुटुंब व्यवस्था का अध्ययन पाश्चात्य देश कर रहे हैं। हमें अपने कुटुंब की अवधारणा को परिष्कृत करना होगा ताकि भारत पुनः विश्वगुरु बने।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय समाज में कुटुंब महज पत्नी-पत्नी बच्चों तक सीमित नहीं है। बल्कि कुटुंब में समाज, मानवता व राष्ट्र को समर्पित करने की चिंता निहित है। धर्म का आचरण जोडऩे की शिक्षा देता है।
यही कारण है कि भारतीय कुटुंब व्यवस्था का अध्ययन पाश्चात्य देश कर रहे हैं। हमें अपने कुटुंब की अवधारणा को और अधिक परिष्कृत करना होगा, ताकि भारत फिर से विश्व गुरु बने।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित परिवार प्रबोधन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने चार आश्रमों में से उपस्थित जन समूह को गृहस्थ आश्रम का महत्व समझाया।
उन्होंने अनेक प्रतीकों,कहानियों के माध्यम से गृहस्थ की महत्ता की ब्याख्या करते हुए कहा कि,गृहस्थ में बाकी तीन आश्रमों (ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ व संन्यास) की सेवा का भी दायित्व है। कुटंब में केवल पिता कमाते हैं, माता घर चलाती हैं या फिर दोनों कमाते हैं, इतना भर नहीं है।
बाल काटने वाला नाई,कपड़े धोने वाला धोबी,खाना बनाने वाला या फिर पालतू जानवर भी हमारे परिवार के सदस्य हैं। जहां हमारा खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी इनसे अपनापन ही या लगाव भी एक प्रकार से ये भी कुटुंब ही है।
संपूर्ण विश्व में कुटुंब कैसे चलना चाहिए, इसकी सीख हमें वैदिककाल में मिलती है। रामायण हो या महाभारत, दोनों में भी कुटुंबों का ही वर्णन है। इससे हमें आदर्श परिवार,कलह से बचने और परिवार में रहते हुए धर्म की रक्षा की सीख मिलती है। संघ प्रमुख ने हमें अपनी भाषा,अपना पहनावा,अपना भवन,अपना भ्रमण,अपना भजन अपना भोजन अपनाना होगा।
भाषा,भूषा,भवन,भ्रमण,भजन व भोजन,की ओर भारत पुनः लौटेगा उस दिन भारत विश्व पुनः विश्वगुरु बन जाएगा।
संघ प्रमुख भागवत ने मानव जीवन के चार आश्रमों का अलग-अलग वर्णन करते हुए कहा कि जीवन में सुखों की ओर भटकाने वाली चीजों से दूर रहते हुए खुद को सामथ्र्यवान बनाना है। उन्होंने कहा कि विदेशी संस्कृतियों द्वारा भारत की भावी पीढ़ी को बिगाडऩे के लिए प्रयास होते रहते हैं।
पश्चिमी देशों ने चीन की युवा पीढ़ी को अफीम भेजा। उन्हें ड्रग्स का लती बना दिया। उसके जरिये चीन पर राज किया। हमारे यहां आज यही प्रयोग चल रहा है। आज भारत में कहां से ड्रग्स आ रही है? इससे होने वाला लाभ कहां हो रहा है? पैसा कहां जा रहा है? इस बारे में आपको मीडिया से जानकारी मिल रही होगी।

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