वन्य जीव अंगों के मामले में जांच अधिकारी बदले जाने पर हाई कोर्ट सख्त

- जांच अधिकारी बदलने पर सरकार का जवाब-तलब
- लैपर्ड व टाइगर की खालें और अंग पकड़े जाने के बाद जांच का मामला
- शासन के सेवानिवृत एक अधिकारी की संलिप्तता पर उठे रहे हैं सवाल
- वन अधिकारियों, शिकारियों के बीच मिलीभगत का हुआ था खुलासा
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नैनीताल: हाई कोर्ट ने गुलदार और टाइगर के अंगों की बरामदगी के मामले में जांच अधिकारी बदलने पर सरकार का जवाब तलब किया है। साथ ही सरकार को मामले में 22 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ में शुक्रवार को लालकुआं निवासी दिनेश चंद्र पांडे की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। पांडे याचिका में कहा गया था कि पिछले साल 22 अगस्त को राजाजी नेशनल पार्क के एक फॉरेस्टर को मुखबिर ने सूचना दी कि आपने क्षेत्र में टाइगर व लैपर्ड के अंगों को छिपाकर रखा गया है। जब वन विभाग की टीम गई तो अंग छिपे व फैले हुए मिले। इस पर वन विभाग द्वारा मामला दर्ज किया गया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में बरामद अंगों को पेश किया गया। सीजेएम द्वारा इन अंगों को जांच के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून को भेजा गया, जिसकी रिपोर्ट से पता चला कि जिन पशुओं के शरीर की खाल, आंतरिक अंग बरामद हुए, वह टाइगर और गुलदार के थे।
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याचिकाकर्ता के अनुसार इस मामले की जांच भी शुरू हुई, लेकिन जांच अधिकारी बदलते रहे, जिसके बाद आइएफएस मनोज चंद्रन को जांच का जिम्मा सौंपा गया, उन्होंने 95 फीसद जांच पूरी कर ली। जांच रिपोर्ट सीजेएम कोर्ट के साथ ही विभाग को सौंप दी। जांच रिपोर्ट में इस मामले में विभागीय अफसर कर्मियों की संलिप्तता पाई गई। चार पांच शिकारियों के उनके साथ संबंध स्थापित होने का भी खुलासा हुआ।
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रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि राजाजी टाइगर रिजर्व हरिद्वार में अर्से से वन अफसर व कर्मचारी शिकारियों के साथ मिलकर दुर्लभ श्रेणी के वन्य जीवों का शिकार कर रहे हैं। इससे अवैध कमाई भी कर रहे हैं। आइएफएस मनोज द्वारा इस मामले में शामिल वन अफसर-कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की शासन से अनुमति भी मांगी, लेकिन शासन ने मनोज चंद्रन का तबादला कर इस प्रकरण की जांच स्पेशल टास्क फोर्स की हेड रिद्धिम अग्रवाल को जांच सौंप दी।
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याचिका में सवाल उठाया गया था कि जब 95 फीसद जांच पूरी कर ली गई तो दूसरे को जांच सौंपना गलत है। खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को 22 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए।