ALMORA

कहीं इतिहास न बन जाएं सुविधाओं के अभाव में पहाड़ के ऐसे गांव

  • सड़क के लिए गांव से लोग पूर्व में दो -दो बार चुनाव बहिष्कार कर चुके हैं ग्रामीण 

अल्मोड़ा : उत्तराखंड के दो जिले जहाँ से सबसे ज्यादा पलायन हुआ वे हैं पौड़ी और अल्मोड़ा। अल्मोड़ा जिले के भैंसियाछाना का बबुरियानायल गांव कभी फल एवं सब्जी उत्पादन के लिए मशहूर रहा था लेकिन अब पलायन के कारण धीरे-धीरे खाली होने लगा है। आजादी के 70 साल बाद भी सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत मूलभूत सुविधाओं के अभाव में इस गांव के चलते इस गांव के 80 फीसदी परिवार गांव छोड़ कर अन्यत्र पलायन कर चुके हैं। गांव में अब वे लोग ही बचे हैं जिनकी माली हालत ऐसी नहीं कि वे इस अभावग्रस्त गांव को छोड़ने की सोच भी सकें।

इस गांव की  विडंबना यह है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी यह  गांव आज तक सड़क से नहीं जुड़ पाया है। जबकि सड़क के लिए गांव से लोग पूर्व में दो बार चुनाव बहिष्कार भी कर चुके हैं। 107 परिवारों में से अब यहां केवल 29 परिवार ही रह गए हैं।  ब्लॉक मुख्यालय धौलछीना से लगभग 6-7 किमी दूर बिनसर वन्य जीव अभ्यारण्य के तलहटी पर बसा बबुरियानायल गांव कभी फल, सब्जी की मंडी के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब सरकार की बेरुखी के चलते गांव की लगभग 80 प्रतिशत आबादी पलायन कर चुकी है।

सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के अभाव की कमी भी ग्रामीणों को सालती रहती है। इस गांव में जहाँ पांच से दस साल पहले तक यहां 107 परिवार रहते थे, लेकिन अब तक यहाँ के 78 परिवारों ने गांव छोड़ दिया है। आजादी के 70 साल बाद भी गांव तक सड़क नहीं है। ग्रामीणों को रोजमर्रा की जरूरत के लिए घोड़े -खच्चरों का सहारा लेना पड़ता है। गांव में प्राइमरी स्कूल तो है पर कम छात्र संख्या के कारण कब बंद हो जाए कहा नहीं जा सकता। गांव के बीमार और गर्भवती महिलाओं को लाने-ले जाने के लिए कंडी या डोली का सहारा लेना पड़ता है। शिक्षा के लिए स्कूली बच्चों को आज भी हर रोज सात किमी जंगल के रास्ते से स्कूल जाना पड़ता है। 
 
ग्रामीण हरक सिंह ने बताया कि पिछले माह उनकी लड़की का विवाह था, लेकिन सड़क नहीं होने से वर पक्ष ने गांव में पैदल आने से मना कर दिया। फिर विवाह गैराड़ मंदिर में हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि गांव की जमीन उपजाऊ है, लेकिन जंगली जानवरों के आतंक, सिंचाई की अव्यवस्था और सड़क की परेशानी से बाजार तक फसल पहुंचाना काफी दिक्कतों भरा है। अब लोगों ने अपने खेत बंजर छोड़ दिए हैं। सड़क की मांग करते आ रहे ग्रामीणों ने दो बार यहां चुनाव बहिष्कार भी किया।

ग्रामीणों का आरोप है कि सत्ता की सियासत करने वाली राजनितिक पार्टियां चुनाव के समय पलायन जैसी गंभीर समस्या को खूब उठाती हैं लेकिन सत्ता मिलने पर गांव को भूल जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व जिलाधिकारी सविन बंसल ने इस गांव का पैदल भ्रमण किया था और तब ग्रामीणों को उम्मीद जगी थी कि गांव तक सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाएं पहुंचेंगी, लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद यह उम्मीद भी खत्म हो गई। 

devbhoomimedia

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