UTTARAKHAND
नेशनल ग्लेशियोलॉजी सेंटर नहीं होगा तो कैसे होगी ग्लेशियरों पर शोध ?

ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिम रेखा (स्नो लाइन) 50 मीटर तक पीछे तक गई है खिसक : वैज्ञानिक
ग्लेशियोलॉजी सेंटर बनने के बाद, सभी ग्लेशियोलॉजिकल गतिविधियों, अनुसंधान और अनुप्रयोगों का एक केंद्र बन जाता, जो एक हिमस्खलन पर ग्लेशियोलॉजी शोध करती: वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल
ग्लेशियोलॉजी सेंटर में होने वाले शोध से ये पता चलता कि ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव को कैसे रोका जा सकता : डॉ. प्रो बीआर अरोड़ा
मनमीत
ग्लोबल वार्मिंग से सेब की उम्दा प्रजातियों पर मंडराया खतरा
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से आने वाले एक दशक में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सेब की सबसे उम्दा प्रजाति ‘गोल्डन डिलिसियस’ और ‘रेड डिलिसियस’ से महरूम हो सकते हैं। उत्तराखंड में नब्बे प्रतिशत तक डिलिसियस प्रजाति समाप्त हो चुकी है। जबकि हिमाचल का उद्यान विभाग अब डिलिसियस प्रजाति के बदले काश्तकारों को ‘स्पर प्रजाति’ लगाने के लिये प्रोत्साहित कर रहा है।
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि पूरे हिमालय परिक्षेत्र में मौसमी चक्र में भारी बदलाव आया है। मसलन, पोस्ट मानसून (सितंबर से दिसंबर) के वक्त में ही 3000 मीटर से ऊचारी ऊंचाई वाली पहाडिय़ां हिमाच्छादित हो जाती थी, लेकिन पिछले दस सालों में बर्फबारी जनवरी, फरवरी, मार्च और अप्रैल तक हो रही है। इसके बाद गर्मी भी जुलाई आखिरी तक जा रही है और मानसून भी फिर देरी से ही जा रहा है।
देहरादून। हिमालय के दस हजार ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए स्थापित किये जा रहे नेशनल ग्लेशियोलॉजी सेंटर परियोजना को केंद्र सरकार ने बंद कर दिया है। केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय की ओर से जून आखिरी सप्ताह में आये पत्र में इस परियोजना से हाथ खड़े कर दिए गए हैं। सरकार ने 2009 में पानी के स्रोत का अध्ययन करने के लिए एक अत्याधुनिक परियोजना की शुरुआत की थी, जिस पर सिंधु, यमुना, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में 800 मिलियन से अधिक लोग निर्भर हैं।
इस परियोजना को केंद्र वित्तीय मंत्रालय से लगभग 211 करोड़ रुपये का बजट भी जारी हो चुका था। नेशनल ग्लेशियोलॉजी सेंटर के लिए उत्तराखंड में मसूरी के समीप लगभग 200 हेक्टेयर भूमि तय कर दी गयी थी। संस्थान के लिये वैज्ञानिक और अन्य स्टॉफ का ढांचा स्वीकृत होने के साथ ही डीपीआर भी फाइनल हो चुकी थी।
वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनीटरिंग सर्विस में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि उत्तरी और दक्षिण ध्रुव के बाद हिमालय थर्ड पोल के तौर पर जाना जाता है। हिमालय से भारत की अर्थव्यवस्था जुड़ी हुई है। अगर हिमालय वैसा नहीं रहेगा, जैसा आज है तो अर्थव्यवस्था के साथ ही जैविक विविधिता पर गंभीर संकट आयेगा। जिससे भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया प्रभावित होगी। लिहाजा, 2004 से पहले जब ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की बात प्रमाणित हुई तो, ये तय हुआ कि देश का अपना ग्लेशियोलॉजी सेंटर होना चाहिये। उसके बाद 2009 में ग्लेशियोलॉजिकल रिसर्च के क्षेत्र में बड़ी प्रगति करने के लिए सरकार 10 वीं योजना के दौरान हिमालयन ग्लेशियोलॉजी (NCFOR-HG) में फील्ड ऑपरेशन और अनुसंधान के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र स्थापित करने की योजना को स्वीकृति मिली। ग्लेशियोलॉजी सेंटर बनने के बाद, सभी ग्लेशियोलॉजिकल गतिविधियों, अनुसंधान और अनुप्रयोगों का एक केंद्र बन जाता, जो एक हिमस्खलन पर ग्लेशियोलॉजी शोध करती।
ग्लोबल वार्मिंग से मौसमी चक्र में हो रहा भारी बदलाव
मौसम चक्र में भारी बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही हो रहा है। सर्दियों में ज्यादा बर्फ़बारी, गर्मियों में भीषण गर्मी और मानसून का देर से आना, यह सारे लक्षण ग्लोबल वार्मिंग के हैं। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि अगर समय रहते नहीं चेते तो मौसम चक्र तहस-नहस हो सकता है और दुनिया को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
उत्तरी और पश्चिमी भारत में कई जगह इस बार गर्मी में रिकॉर्ड तोड़ा है। जनवरी, फरवरी और मार्च में हिमालय श्रंखलाओं के साथ ही मध्य हिमालय में रिकॉर्ड बर्फ़बारी हुई थी। वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल बताते हैं कि मौसम चक्र में भारी बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही हो रहा है। हर मौसम अपने रिकॉर्ड स्तर को छू रहा है।
डॉ. बीपी डोभाल बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पहले हिमालयी क्षेत्र में हिमपात नवंबर, दिसंबर और जनवरी में अमूमन ज्यादा होता था। अब जनवरी, फरवरी और मार्च तक इसका दायरा बढ़ गया है। कई वर्षों बाद पिछली सर्दियों में जमकर बर्फबारी हुई थी और उसके बाद अब गर्मी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रही है। गर्मी के मौसम का दायरा आगे बढ़ रहा है और मौसम का समय भी उसी अनुपात में खिसक रहा है। डॉ. डोभाल बताते है कि राष्ट्रीय ग्लेशियोलॉजी सेंटर में इन्ही सब पर शोध होना था। ये एक दूरगामी परियोजना थी।