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”काम नहीं तो वेतन नहीं” शासनादेश हुआ बेकार, हड़तालियों को दे दी पगार !
- कर्मचारियों के दबाव में आयी सरकार !
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड में कर्मचारियों के खिलाफ राज्य सरकार सख्त कार्रवाई को लेकर भले ही लाख दावे करें लेकिन हकीकत यह है कि कर्मचारियों के दबाव में सरकार ”काम नहीं तो वेतन नहीं ” नियम कानून बनाकर भी उसका पालन नहीं करवा पा रही है ।
सूबे की सरकार ने कर्मचारियों की हड़ताल पर लगाम लगाने के लिए साल 2013 के काम नहीं तो वेतन नहीं के शासनादेश को कड़ाई से पालन कराने का निर्णय तो लिया लेकिन कर्मचारियों का दबाव सरकार के इस फैसले पर भारी पड़ गया।
गौरतलब हो कि त्रिवेंद्र सरकार ने 2013 के शासनादेश को 2018 में फिर जारी कर कर्मचारियों की हड़ताल और कार्यबहिष्कार रोकने का दावा किया लेकिन आदेश जारी होते ही संयुक्त कार्मिक आउट सर्च और शिक्षक संगठन ने कार्यबहिष्कार कर दिया।
खास बात ये है कि 3 दिन के इस बहिष्कार को लेकर शासनादेश के अनुसार वेतन काटे जाने का प्रयास हुआ तो कर्मियों के दबाव ने सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और शासन ने फिर कर्मियों का वेतन जारी करने के आदेश जारी कर दिये। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने बताया कि सरकार केवल शासनादेश जारी करती है लेकिन इसका पालन नहीं करती ।
उधर सरकार कार्यबहिष्कार के बाद भी वेतन जारी करने के फैसले का समर्थन कर रही है। कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत की माने तो कई बार मानवीय पहलुओं को देखकर निर्णय लिया जाता है और इसलिए शासनादेश किया गया है।