पर्यटन विभाग कब तक सोया रहेगा ? कैसे सुधरेंगे हमारे तीर्थ ?
- सरकार कोई भी हो, विभाग का निकम्मापन एक जैसा
- कार्तिक स्वामी पहुँचने के 3.5 किमी लंबे पैदल मार्ग पर खड़ंजे नहीं
- एक सोलर वाटर पंप लगाया गया है जो वर्षों से पड़ा है खराब
- यात्रियों-पर्यटकों के लिए पीने का पानी तक भी नहीं उपलब्ध
- शौच-स्नान के लिए पानी की तो कल्पना करना ही बेकार
- यात्रियों के लिए पानी की व्यवस्था के लिए 400 रु. प्रति खच्चर (70 लिटर) पानी
- पर्यटक आवास गृह के शुरू किए गए ढांचे भी वन विभाग की स्वीकृति के बिना अधूरे
कई वर्षों बाद इस बार उत्तराखंड के प्रख्यात बारहमासी तीर्थस्थल कार्तिक स्वामी जाने का अवसर मिला। बहुत प्रचार था कि यहां यात्रियों-पर्यटकों के लिए सुविधाओं के अम्बार लगा दिए गए हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि यहाँ रास्ता तक अभी सही नहीं बन पाया है। आरम्भ में लगभग एक किमी और अंत में भी उतना ही मार्ग सही ढंग से बन पाया है और वह भी बिना सीमेंट में तराई के एक किनारे से उखड़ने लगा है। यात्रा और पर्यटन विकास के बड़े दावे करने वाली सरकार एक अदद ढंग का रास्ता तैयार करने की स्थिति पैदा नहीं कर पाई है तो कहना पड़ेगा कि सरकार कोई भी हो, उनका निकम्मापन एक जैसा है और वे तंत्र पर शासन करने की बजाय उनकी गुलाम बनकर रह जाती हैं।
उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक संरचना के कारण पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है और दुनियाभर के प्रकृति प्रेमी, तीर्थयात्री, साहसिक व रोमांचकारी खेलों के शौकीन यहाँ आना चाहते हैं लेकिन हमारी सरकारें उनके लिए बुनियादी सुविधाएं भी जुटाने को तैयार नहीं हैं या उनको इसकी तमीज भी नहीं है तो क्या कहा जाय?
1973-74 में चमोली जिले में प्रभागीय वनाधिकारी रहे नरेंद्र सिंह नेगी ने क्रौंच पर्वत स्थित इस कार्तिक स्वामी मंदिर पहुंचने के लिए ढंग का एक पैदल मार्ग बनवाया था और हीरा सिंह नेगी जी की सक्रिय पहल पर हम लोगों ने मिलकर इसकी व्यवस्था को एक स्वरूप देने की कोशिश शुरू की थी। रुद्रप्रयाग में गढ़वाल मंडल विकास निगम के पर्यटक आवास गृह में प्रबंधक रहे ओमप्रकाश वशिष्ठ ने अनेक तीर्थयात्रियों को इसका महत्व बताकर उन्हें यहाँ तक पहुंचाने का कार्य किया।
आवास के लिए कुछ धर्मशालाएं बनीं हैं लेकिन पानी की कमी के कारण उनकी व्यवस्था भी सुचारु रूप से नहीं हो पाती। गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह व पर्यटन विभाग के शुरू किए गए ढांचे भी वन विभाग की स्वीकृति के बिना अधूरे पड़े हैं। कोई उनको यह पूछने को भी तैयार नहीं है कि बिना स्वीकृति के उन्होंने निर्माण कार्य क्यों शुरू किए और जनता के पैसों का दुरुपयोग क्यों किया गया? बिजली एक पतले केबल से पहुंचाई गई है जो कभी भी टूट कर व्यवधान तो पैदा करेगा ही, लोकजीवन को खतरा भी पहुंचा सकता है। पानी के अभाव में यहां सीमेंट-कंक्रीट के ढाँचे सफल नहीं हो सकते, इस तथ्य की अनदेखी स्वयं विभागीय इंजीनियर कर रहे हैं। यही कारण है कि पैसा तो खर्च हो जाता है लेकिन उसका लाभ आम यात्रियों को नहीं मिल पाता। ये कार्य ठेकेदारों-इंजीनियरों की कमाई का साधन ही न बनें, इसको देखने के लिए जिस प्रशासनिक दृढ़ता की आवश्यकता है, यहां उसका भी अभाव है।
हमारे ये बारहमासी तीर्थ और पर्यटन-स्थल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी तीर्थयात्रियों, पर्यटकों को आकर्षित करने की अपार क्षमता से परिपूर्ण हैं लेकिन आधारभूत सुविधाओं के अभाव में इनका उपयोग कर पाने में असफलता ही हमारे पाले में आ रही है और यह सरकार की सबसे बड़ी विफलता है। यह देखे जाने, पड़ताल किये जाने की भी बहुत अधिक जरूरत है कि पिछले 20 वर्षों में इस तीर्थ के विकास के लिए क्या योजनाएं बनीं, क्रियान्वित हुईं, उन पर कितना पैसा खर्च हुआ और काम स्वीकृत कार्ययोजना के अनुसार कितने प्रतिशत तक पूरे हो पाए? यह जनता के सामने उजागर होना चाहिए।