Uttarakhand

हिमालयन फोटोग्राफर स्वामी सुन्दरानंद की फोटो गैलरी में होंगे हिमालय के दर्शन

  • हिमालय की कई प्रकृतियों को कैमरे में कर चुके हैं कैद 

  • दो करोड़ की लागत से होगा गंगोत्री में फोटो गैलरी का निर्माण 

देहरादून : हिमालय की हर गतिविधि और गंगोत्री से कई बार हिमालय की चोटियों पर चलते हुए बदरीनाथ की यात्रा करने वाले हिमालयन फोटोग्राफर के नाम से मशहूर बाबा सुन्दरानंद जी अगले यात्रा काल में समुद्र  तल से 3415 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री धाम में  फोटो गैलरी के  निर्माण का बीड़ा उठाये हुए हैं  जिसका  उद्घाटन अगले वर्ष  देश के प्रधानमंत्री से करवाने की उनकी प्रबल इच्छा है।  दो करोड़ की लागत से तैयार होने वाली उनकी इस फोटो गैलरी में उनके  92 साल के जीवनकाल के दौरान उनके  तब से लेकर अब तक के कैमरों से ली गयी हिमालय की वो तस्वीरें लगायी जायेगीं  जिन्हें स्वामी सुन्दरानंद जी के कैमरों से लिया है।

यूरोप और अमेरिका सहित भारत के कई स्थानों में  हिमालय पर फोटो प्रदर्शनी आयोजित कर चुके स्वामी सुंदरानंद का कहना है  कि फोटोग्राफी उनका जुनून है और फोटो गैलरी मेरा सपना। इस गैलरी के निर्माण में उन्होंने किसी से कोई मदद नहीं ली। अपने फोटोग्राफ बेचने के साथ ही पुस्तकों की रायल्टी से मिली रकम को जमा कर गैलरी का निर्माण किया जा रहा है ।

उन्होंने बताया कि गैलरी में हिमालय की 1000 दुर्लभ तस्वीरों के अलावा करीब एक लाख फोटो डिजिटल फार्मेट में हैं। ट्रैकिंग और पर्वतारोहण के शौकीन बाबा ने सिर्फ गंगोत्री और गोमुख ग्लेशियर के ही 50 हजार से ज्यादा फोटो के अलावा ओम पर्वत, एक दर्जन से ज्यादा चोटियां, ट्रैक रूट, ताल, बुग्याल, वन्य जीव, वनस्पति और पहाड़ की संस्कृति को दर्शाती फोटो कैमरे में कैद की हैं। उनका कहना है कि प्रत्येक सप्ताह फोटो गैलरी में नए फोटो परिवर्तित करके लगाये जायेंगे।

अविभाजित आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में वर्ष 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को बचपन से ही पहाड़ लुभाते थे। वह बताते हैं कि 12वीं तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1947 में वह पहले उत्तरकाशी और यहां से गोमुख होते हुए आठ किलोमीटर दूर तपोवन पहुंचे। कुछ समय तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। वह बताते हैं कि बस इसके बाद मै यहीं का  होकर रह गया।

स्वामी सुंदरानंद बताते है कि वर्ष 1955 में समुद्र तल से 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालंदी  ट्रैक से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से मैं अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर था। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ मैं किसी तरह बच गया। इस घटना के बाद उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की ठान ली। 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और शुरू कर दी फोटोग्राफी।

वह कहते हैं कि हिमालय में छह दशक के सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है। वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय: थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु'(एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।

गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण में भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद बताते हैं कि भारत-चीन युद्ध के दौरान वह सेना के पथ प्रदर्शक भी रहे। एक माह तक साथ रहकर उन्होंने कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बार्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया।

https://youtu.be/tSdfksWQv9E

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »