AGRICULTURE
उत्तराखंड कृषि : बारह नाजा (परंपरागत बीज) पर हाई ब्रिड बीज और खाद कीअंतर्राष्ट्रीय मार



बारह नाजा और उत्तराखंड का कृषि संकट : उत्तराखंड की भूमि संघर्ष की भूमि रही है जल जंगल जमीन के सवाल पर जंगल की अस्मिता को जिंदा करने के लिए उत्तराखंड में चिपको आंदोलन विश्व प्रसिद्ध हुआ ,चिपको आंदोलन में सुंदरलाल बहुगुणा जी के नजदीकी सहयोगी रहे श्री विजय जड़धारी जी श्री धूम सिंह नेगी जी , श्री कुंवर प्रसून जी श्री प्रताप शिखर जी ने जब यह देखा की 70 के दशक के आखिर में उत्तराखंड के गांव में सरकार द्वारा बेतहाशा सोयाबीन बोई गई , लगभग सभी गांव में पूरा का पूरा रकबा सोयाबीन बोया जा रहा था ।सोयाबीन का बीज और बाजार भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा था ।जिसने उत्तराखंड की परंपरागत कृषि मंडुवा ,झुंअरा ,राजमा भट् ,गहत ,तिलहन का अस्तित्व संकट में डाल दिया ।सोयाबीन में बड़ी मात्रा में रासायनिक खादों का उपयोग हो रहा था । सिंचाई भी की जा रही थी जिससे यहां के जल स्रोत और मिट्टी भी संकट में आ गयी ,अब यह सिर्फ अनाज का सवाल नहीं रह गया यह जमीन की आबरू का सवाल बन गया।
इस प्रकार परंपरागत कृषि , उत्तराखंड की विशेष भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप है जिसके लिए अभी हाइब्रिड बीजों का उत्पादन नहीं हुआ है ।यदि हम विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में हाइब्रिड बीज का उत्पादन और प्रयोग करते हैं तो इसका हमारी मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उत्तराखंड के किसान सिर्फ व्यापारी नहीं हैं ।बल्कि धरती के बेटे हैं उन्हें पहले चरण में इस धरती की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने का संकल्प लेना है ।
फर्टिलाइजर और हरित क्रांति की हकीकत: वर्ष 1960 जो हरित क्रांति का मानक वर्ष है तब भारत में खाद्यान्न का उत्पादन 82।33लाख मीट्रिक टन था। फर्टिलाइजर का उपयोग ।206 लाख टन अर्थात 1।99 कि ग्राम प्रति हैक्टयर था जो अब 2019 में 203 लाखटन अर्थात 128 कि।ग्राम प्रति हेक्टेयर खो गया है अर्थात खाद्यान्न में फर्टिलाइजर का उपयोग 60 गुना बढ़ा है ।इस अवधि में कुल खाद्यान्न उत्पादन 285 लाख मीट्रिक टन हो गया है । खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि मात्र साढे तीन गुना है। पौष्टिकता की दृष्टि से प्रति केजी पौष्टिकता 1960 के मुकाबले 12 ।5 % रह गई है । 1960 में जहां देश में कैंसर के मरीज हजार में थे वहीं 2018 19 में यह आंकड़ा 1लाख60हजार हो गया है । फर्टिलाइजर से हम अनाज के फ्रंट में तो कामयाब हो रहे हैं लेकिन जीवन चक्र और प्रकृति का संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है कृषि महंगी हो रही है और किसान जमीन छोड़ रहा है।Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.