स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक सितंबर से सात सितंबर
स्वस्थ बचपन-समृद्ध भविष्य
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
ऋषिकेश । परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के अवसर पर ’स्वस्थ बचपन-समृद्ध भविष्य’ का संदेश देते हुये कहा कि ’स्वस्थ बच्चे, स्वस्थ भारत की नींव है’। बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य का देश के विकास, उत्पादकता तथा आर्थिक उन्नति पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गुणवत्ता व पोषणयुक्त आहार, स्वच्छ जल, स्वच्छता और मौलिक जरूरतें प्राप्त करना न केवल वर्तमान पीढ़ी का अधिकार है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों के अस्तित्व, स्वास्थ्य और विकास का भी मुद्दा है।
स्वामी जी ने कहा कि पोषणयुक्त आहार न मिल पाने के कारण कम उम्र के बच्चों में कुपोषण, मधुमेह एवं हृदय रोग जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं, साथ ही उनमें रोगों से प्रतिरक्षा करने की क्षमता का भी कम हो जाती है। कुपोषित बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास सुचारू रूप से नहीं हो पाता, जिसका प्रभाव देश के विकास और भविष्य पर भी पड़ता है।
स्वामी जी ने उत्तराखण्ड सरकार को कीनुआ (चिनोपोडियम कीनुआ) जो ’सुपर ग्रेन’ के नाम से जाना जाता है की खेती को बढ़ावा देने तथा कीनुआ की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया था। कीनुआ में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, आयरन, फाइबर, खनिज और विटामिनस् पाये जाते हैं। कुपोषित क्षेत्रों के स्कूलों में सप्ताह में दो दिन भी यदि कीनुआ युक्त आहार मिड डे मील योजना के अन्तर्गत स्कूली छात्रों एवं आगंनवाड़ी स्तर पर उपलब्ध कराया जाये तो कुपोषण की दर में काफी कमी लायी जा सकती है। स्वामी जी ने कहा कि हमें उत्तराखंड के उत्पादों का जोर-शोर से प्रचार करना होगा। उत्तराखंड के अनेकों देसी उत्पाद केवल स्वस्थ जीवन के लिये ही नहीं बल्कि जीविका के लिये भी संजीवनी का काम कर सकते हैं। हमें अपने लोकल के लिये वोकल बनना पड़ेगा।
वहीं परमार्थ निकेतन द्वारा मिड डे फ्रूट योजना को बढ़ावा देने के लिये उत्तराखंड के कई स्कूलों और काॅलेजों में फलदार पौधों का रोपण कराया गया। मिड डे फ्रूट का उद्देश्य जंक से जैविक की यात्रा है अर्थात बच्चों को जंक फूड से जैविक फूड की ओर प्रेरित करना।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि ’’स्वस्थ बचपन के लिये स्तनपान बहुत महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराए जाने से नवजात शिशुओं की मृत्यु में 20 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है। ऐसे नवजात शिशु जिन्हें माँ का दूध नहीं मिल पाता है, उनमें स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में निमोनिया एवं पेचिश होने की संभावना क्रमशः 15 गुना और 11 गुना अधिक होती है। साथ ही स्तनपान नहीं करने वाले बच्चों में मधुमेह, मोटापा, एलर्जी, दमा, ल्यूकेमिया आदि होने का भी खतरा रहता है। उन्होंने कहा कि जन-सामान्य में सामान्य स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों का अभाव होता है जिसके कारण वर्तमान समय में भारत के बच्चें में कुपोषण की समस्या काफी है।’’ स्वामी जी ने कहा कि देश के बेहतर भविष्य के लिये वर्तमान और भावी पीढ़ियों का पोषण और गुणवत्तायुक्त शिक्षण बहुत जरूरी है।