हरदा की होशियारी भाजपा पर हर बार भारी
देहरादूनः जिस स्टिंग ऑपरेशन की सीडी को भाजपा ने हरीश रावत के खिलाफ सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र बनाकर उसे सहेजकर रखा था कि चुनाव के वक्त इसका इस्तेमाल किया जाएगा, उसी को हरदा यानी हरीश रावत ने निष्क्रिय कर दिया। इसे लेकर हरीश रावत एक बार फिर भाजपा को मात देने में कामयाब रहे। उनकी कूटनीति देखिए कि भाजपा के इस हथियार को कुंद करने के लिए हरीश रावत ने अदालत का सहारा लिया और वहां से भी जीत गए अब यह CD भाजपा चुनाव में नहीं दिखा पायेगी ।
विधायकों की खरीद फरोक्त के मामले में सीबीआई की जांच बंद कराने के लिए जब हरीश रावत ने हाईकोर्ट की शरण ली थी तो भाजपा समेत उनके विरोधियों को बड़ा ताज्जुब हुआ था। ताज्जुब इस बात का हुआ था कि जब हरदा खुद कहते हैं कि उन्होंनो किसी प्रकार का लेनदेन नहीं किया है और विधायकों को खरीदने में एक नये पैसे का इस्तेमाल नहीं हुआ है तो फिर वह कोर्ट क्यों गये। तब उन्हें शायद इस बात का अहसास भी नहीं रहा होगा कि अदालत में पहुंचा यह मामला ऐन चुनाव के वक्त उनकी मदद करेगा। और हुआ भी वहीं। भाजपा ने हरीश रावत के स्टिंग को बहुत ही सहेज कर रखा था।
चुनाव में भाजपा के प्राचर वाहनों से जरिए प्रदेश की जनता को स्टिंग की सीडी दिखाने और हरीश रावत के खिलाफ माहौल तैयार करने की योजना थी। परंतु अदालत में मामला विचाराधीन होने के कारण निर्वाचन आयोग ने इसकी प्रस्तुति पर रोक लगा दी। यानी भाजपा के हाथों से हरीश के खिलाफ एक बड़ा और अचूक हथियार छिन गया। हरीश रावत भी यही चाहते थे और इसी कारण वह इस मामले को वह कोर्ट ले गये थे। वरना इतना तो वह भी जानते थे कि कोर्ट में जाने मात्र से सीबीआई जांच नहीं रुकने वाली है।
रणनीतिक स्तर पर हरदा की यही होशियारी उन्हें अपने विरोधियों और प्रदेश के अन्य नेताओं से अलग करती है। इससे पहले जब कांग्रेस के दस विधायक भाजपा के खेमे में चले गये और हरीश रावत पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाये उस समय भी हरीश रावत ने अपने रणनीतिक कौशल से न केवल अपनी सरकार बचाई बल्कि जनता के बीच खुद को एक ऐसा मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने में सफल हुए जिससे केन्द्र की भाजपा सरकार जबरदस्ती बर्खास्त करने पर तुली हुई है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले विधायकों को भी हरीश रावत ने बागी साबित करके ही दम लिया।
पिछले करीब तीन वर्ष में ऐसे कई मौके आये जब विपक्ष हरीश रावत की घेराबंदी कर सकता था। खनन, आबकारी नीति, भू आवंटन आदि मामलों में हरीश रावत से जवाब मांगा जा सकता था। परंतु उसकी कमजोर रणनीति के कारण हरीश रावत हमेशा इस घेराबंदी को तोड़ते रहे। चुनाव का नतीजा भले ही कुछ भी हो, सरकार चाहे जिसकी बने, परंतु जहां तक रणनीति तैयार करने और उसका क्रियान्वयन करने का सवाल है अब तक हरीश रावत अपने विरोधियों पर भारी पड़ते रहे हैं।