शहीद गबर सिंह और उनके गांव तक को भूल गई सरकारें !
देहरादून : उत्तराखंड को वीरों की भूमि कहा जाता है। इसके बावजूद वीरों की इस भूमि पर सरकारें शहीदों की उपेक्षा करती रही हैं। शहीदों के नाम पर की गई बहुत सी घोषणाएं आज तक पूरी नहीं हुई।
इसका उदाहरण देखने को मिलता है, टिहरी जिले के मज्यूड़ गांव में। यहां प्रथमविश्व युद्ध के नायक रायफलमैन शहीद गबरसिंह के नाम पर की गई घोषणाएं कोरी घोषणाएं बनकर रह गई है। यहां तक कि शहीद का गांव आज तक सड़क से नहीं जुड़ पाया, जिस कारण अब ग्रामीणों और पूर्व सैनिकों को आंदोलन करना पड़ रह है।
गबरसिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को टिहरी जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। गबरसिंह 1913 में गढ़वाल रायफल में भर्ती हुए। भर्ती के कुछ ही समय बाद गढ़वाल रायफल के सैनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेज दिया गया, जहां 1915 में न्यू शैपल में लड़ते हुए 20 साल की उम्र में ही वे शहीद हो गए।
मरणोपरांत गबरसिंह को ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रास से सम्मानित किया गया। 21 अप्रैल को चंबा में उनकी स्मारक पर रेतलिंग परेड और मेले का आयोजन किया जाता है। शहीद के नाम पर कईं घोषणाएं कि जाती हैं, लेकिन आज तक अधिकतर घोषणाएं पूरी नहीं हो पायी है।
घोषणाओं में शहीद के गांव को सड़क से जोड़ने, उनके पैतृक मकान को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित करना और गबर सिंह मेले को सरकार से 5 लाख का अनुदान देने, सहित चंबा में सैनिक स्कूल खोलना शामिल है। लेकिन आज तक कोई भी घोषणा धरातल पर नहीं उतरी है।
शहीद के नाम पर हुई इन घोषणाओं के पूरा नहीं होने से आज गबर सिंह के परिजन, पूर्व सैनिक और मज्यूड़ के ग्रामीण खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। अपनी 8 सूत्रीय मांगों को लेकर परिजनों, पूर्व सैनिकों और ग्रामीणों ने गबरसिंह के पैतृक मकान के सामने आंदोलन शुरू कर दिया है। पूर्व सैनिकों का कहना है कि कोरी घोषणाएं कर शहीदों का अपमान किया जाता है। अब विवश होकर उन्हें आंदोलन करना पड़ रहा है।